लघुकथा
पति
' कुसुम कैसी है, कई दिन हो गए मिली नहीं, मैंने सोचा, मैं ही देख कर आती हूं। मेरी सहेली ठीक-ठाक है।' कुसुम की पक्की सहेली वीना ने घर में घुसते हुए कहा।
' आ बैठ, सब ठीक है, बस नौकरी की भाग दौड़, बच्चों को देखो, घर का राशन पानी लाओ। अकेले भाग भाग कर थक जाती हूं।' कुसुम धम्म से कुर्सी पर बैठते हुए बोली।
' अकेली तो तेरी पड़ोसन नीतू भी है। पति को स्वर्ग सिधारे इतने साल हो गए। हमेशा बनी संवरी, अपने बच्चों के साथ खुश रहती है और एक तू हमेशा टेंशन में , उलझी हुई सी, पहनने ओढ़ने का शौक भी खत्म- - - - '
वीना को बीच में काटते हुए कुसुम बोली,' नीतू और मेरे में बहुत फर्क है। उसके पति को तो भगवान ले गया। सब की सहानुभूति उसके साथ है। आते जाते लोग काम पूछ जाते हैं और कर भी जाते हैं पर मेरा तो जिंदा ही गायब हो गया। भगवान ले जाए तो सब्र आ जाता है पर कोई दूसरी औरत छीन ले तो जीना हराम हो जाता है। तुम बच्चों से कुछ शेयर कर नहीं सकते । अड़ोसी - पड़ोसी, रिश्तेदारों से छुपाओ, झूठ बोलो, दूर की नौकरी है। विदेश गए हुए हैं। नीतू को कोई मैरिज एनिवर्सरी या करवा चौथ पर बधाई नहीं देता। यहां लोग जब बधाई देते हैं तो जी करता है अपना सिर्फ दीवार पर दे मारूं या पति की बिना हार की फोटो पर हार डालकर मुसीबत से छुटकारा पा लूं। लोगों की प्रश्न भरी आंखों का जवाब देना और मेरे पीठ मोड़ते ही मेरे और मेरे पति के बारे में कानाफूसी मुझे सोने नहीं देती। बता यह हालत मुझे नीतू की तरह रहने दे सकते हैं ?'
यह कहते कहते कुसुम मुंह पर दोनों हाथ रखकर फूट-फूट कर रोने लगी। वीना को समझ नहीं आ रहा था कि उसको क्या कहकर सांत्वना दे।
- डॉ अंजना गर्ग
म द वि रोहतक