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[प्रसंगवश – 05 जून: विश्व पर्यावरण दिवस] धरती या डस्टबिन?: क्या यही हमारी सभ्यता की अंतिम तस्वीर है? - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 [प्रसंगवश – 05 जून: विश्व पर्यावरण दिवस]

धरती या डस्टबिन?: क्या यही हमारी सभ्यता की अंतिम तस्वीर है?

[प्रकृति लौटाती है, जो हम देंगे वही पाएँगे; हमारी आदतें ही बना रही हैं विनाश का नक़्शा]

      धरती अब चुप नहीं, वह चीत्कार कर रही है—नदियाँ कचरे के ढेर में दम तोड़ रही हैं, जंगल आग की लपटों में राख बन रहे हैं, और हवाएँ ज़हर बनकर हमारे फेफड़ों को जकड़ रही हैं। आसमान, जो कभी सपनों का नीला कैनवास था, आज धुंध की चादर में लिपटा है, जैसे थककर मौन हो गया हो। यह वही धरती है, जो कभी हमारी माँ थी, हमारा पालना थी। आज वह घायल है, और हम—उसके सबसे प्रिय सृजन—उसके सबसे बड़े विध्वंसक बन चुके हैं। विश्व पर्यावरण दिवस अब केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक आखिरी चेतावनी है—जागो, संभलो, वरना सब कुछ मिट जाएगा। इस वर्ष 2025 का थीम “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” हमें याद दिलाता है कि हमारी लापरवाही ने धरती को कचरे का ढेर बना दिया है। यह समय है कि हम न केवल सुनें, बल्कि उस पुकार पर कदम उठाएँ।

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर हम कुछ पौधे लगाते हैं, नारे लगाते हैं, और सोशल मीडिया पर हरे-भरे संदेश साझा करते हैं। लेकिन अगले ही दिन, वही प्लास्टिक की बोतलें सड़कों पर बिखरी मिलती हैं, वही पानी की बर्बादी शुरू हो जाती है, और वही बिजली का अनावश्यक उपयोग फिर से चालू हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक वैश्विक स्तर पर उत्पादित होता है, जिसमें से आधा एकल-उपयोग प्लास्टिक है। इसकी 36% से भी कम रीसाइक्लिंग होती है, और 8 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक हर साल समुद्रों में पहुँचता है, जो समुद्री जीवन को तबाह कर रहा है। क्या यह हमारी प्रगति का प्रतीक है? प्रश्न यह नहीं कि हमने क्या किया, प्रश्न यह है कि हमने कब महसूस किया कि हमारी धरती प्लास्टिक के बोझ तले दब रही है?

प्लास्टिक प्रदूषण अब केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, यह मानवता के लिए एक संकट है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक 2023 की स्टडी के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक्स अब हमारे खाने, पानी, और यहाँ तक कि हवा में भी मौजूद हैं, जो कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। समुद्र में तैरता प्लास्टिक कचरा मछलियों और समुद्री जीवों को निगल रहा है, और यह कचरा हमारी खाद्य श्रृंखला में शामिल होकर हमारे शरीर तक पहुँच रहा है। यूएनईपी की एक और रिपोर्ट बताती है कि यदि यही स्थिति रही, तो 2050 तक समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। यह आँकड़ा हमें झकझोरता है—क्या हम अपनी अगली पीढ़ी को एक ऐसी धरती सौंपना चाहते हैं, जहाँ समुद्र कचरे का गड्ढा बन जाए?

पर्यावरण की रक्षा केवल सरकारों या बड़े संगठनों का दायित्व नहीं। यह हमारी और आपकी जिम्मेदारी है। हर साँस जो हम लेते हैं, वह पेड़ों का उपहार है। हर बूँद जो हम पीते हैं, वह प्रकृति की अमृतधारा है। लेकिन जब यही पानी माइक्रोप्लास्टिक से दूषित हो, जब यही हवा प्रदूषण से भारी हो, तो हमारी साँसें भी खतरे में पड़ जाती हैं। विश्व बैंक की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2.2 बिलियन लोग अभी भी सुरक्षित पेयजल से वंचित हैं, और प्लास्टिक प्रदूषण इस संकट को और गहरा रहा है। इस वर्ष का थीम “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” हमें एक स्पष्ट संदेश देता है—प्लास्टिक का उपयोग कम करें, रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दें, और टिकाऊ विकल्प अपनाएँ।

आज जब ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता का ह्रास हमें घेर रहा है, तब सबसे जरूरी है अपनी सोच को बदलना। विकास का अर्थ केवल ऊँची इमारतें या चमचमाती कारें नहीं। असली विकास वह है, जिसमें धरती और मनुष्य दोनों का सम्मान हो। हमें तकनीक के साथ करुणा को जोड़ना होगा। उदाहरण के लिए, बायोडिग्रेडेबल सामग्री और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली को टिकाऊ बनाता है। अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए) के 2024 के आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 30% तक पहुँची है। लेकिन प्लास्टिक संकट को हल करने के लिए हमें और तेजी से कदम उठाने होंगे।

छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। एक कपड़े की थैली का उपयोग, प्लास्टिक स्ट्रॉ को न कहना, घर पर रीसाइक्लिंग बिन रखना, बारिश का पानी संग्रह करना—ये छोटी बातें नहीं, क्रांति के बीज हैं। यदि भारत के 140 करोड़ लोग हर साल एक पेड़ लगाएँ और एक प्लास्टिक बोतल कम करें, तो हम 140 करोड़ पेड़ों का जंगल बना सकते हैं और लाखों टन प्लास्टिक कचरे को कम कर सकते हैं। नेशनल जियोग्राफिक की एक स्टडी के अनुसार, एक वयस्क पेड़ हर साल 48 पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड सोख सकता है। सोचिए, कितना बड़ा बदलाव संभव है!

पर्यावरण केवल पेड़-पौधों या समुद्री जीवों का सवाल नहीं। यह हमारी साँसों, हमारे भोजन, और हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है। विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1970 से 2020 तक वैश्विक वन्यजीव आबादी में 68% की कमी आई है। बाघ, कछुए, और व्हेल जैसी प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। क्या हम अपने बच्चों को केवल चिड़ियाघरों में इन जीवों की तस्वीरें दिखाएँगे? प्लास्टिक प्रदूषण इन प्रजातियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। इस वर्ष का थीम हमें यही चुनौती देता है—प्लास्टिक के इस जाल को तोड़ें, ताकि हमारी धरती फिर से साँस ले सके।

प्रकृति हमें सजा नहीं देती, वह केवल लौटाती है। हमने उसे प्लास्टिक का कचरा दिया, उसने हमें दूषित समुद्र और जहरीली हवा लौटाई। हमने उसे आग दी, उसने हमें तूफान और सूखा दिया। लेकिन अगर हम उसे प्रेम, सम्मान, और देखभाल देंगे, तो वह हमें स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी, और हरी-भरी धरती लौटाएगी। इस विश्व पर्यावरण दिवस पर, “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” के संकल्प के साथ, हमें एक वचन देना होगा—हम धरती से रिश्ता निभाएँगे, न कि तोड़ेंगे। यह केवल धरती को बचाने का यज्ञ नहीं, यह हमारी मानवता को बचाने का यज्ञ है।

अपने घर से, अपने दिल से, अपने संकल्प से शुरुआत करें। एक बीज नहीं, एक उम्मीद बोएँ; एक प्लास्टिक बोतल नहीं, उसका ज़हर कम करें; एक बूँद नहीं, जीवन की धारा बचाएँ। ये छोटे-छोटे कदम महज़ कदम नहीं, वे उस क्रांति की नींव हैं, जो धरती को फिर से हरा-भरा बनाएगी। वे कदम हैं, जो नदियों को गीतों में बदल देंगे, समुद्रों को जीवन की लहरों से भर देंगे, और हवाओं को प्रेम की सौगंध से महका देंगे। अब वक्त आ गया है—लौट पड़ें प्रकृति की उस गोद में, जो हमारा पहला आलिंगन थी, हमारा आखिरी ठिकाना है। इस विश्व पर्यावरण दिवस को केवल एक तारीख न रहने दें; इसे एक नई सुबह बनाएँ—एक ऐसी सुबह, जो प्लास्टिक के कफन से मुक्त धरती का स्वप्न साकार करे। नारे अब बेकार हैं, अब तो कदमों की गूँज चाहिए। धरती की चीत्कार अब अनसुनी नहीं रह सकती—यह हमारी आखिरी पुकार है। इसे सुनें, इसे जिएं, और इसे जीत लें।

  - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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