काव्य :
एक आसरा
पत्नी स्वर्ग सिधार गई, मैं जीवन से हारा।
बच्चे कटे- कटे रहते हैं, कोई नहीं सहारा।
यहाँ अकेला पड़ा हुआ मैं दूर गगन में ताँकू।
बैठ यहाँ एकान्त में, विस्मृत स्मृतियों में मैं झाँकू।
था बेहद खुशहाल मेरा परिवार, न थी कोई चिंता।
बच्चों के पालन- पोषण में, सारा जीवन बीता।
किसी बात की कमी नहीं थी, सब सुख थे जीवन में।
पढ़ लिख गये सारे बच्चे, फिर जागी इच्छा मन में।
इन बच्चों का विवाह करें इनका संसार बसाऐं।
बच्चों के जीवन में, सुख स्वप्नों के रंग सजाऐं।
धूमधाम से विवाह किया, जीवन में खुशियाँ आईं।
किंतु बहुएँ ऐसी आईं, खुशियाँ सभी मिटाईं।
गृह क्लेशों के कारण, पत्नी की जान चली गई।
मेरी सारी खुशियाँ भी, पत्नी के साथ चली गईं।
पाँच- पाँच बहुएँ हैं, फिर भी रोटी के हैं लाले।
एक बाप भारी पड़ता है, हमने दस दस पाले।
बोझ बन गया जीवन मेरा, कुछ भी समझ न आए।
नाव मेरी मँझधार ,कौन मेरा बेड़ा पार लगाए।
हे भगवान! तू ही मेरी नैया को पार लगाना।
हो किस तरह समस्या हल, इसका उपचार बताना।
एक सितारा आकर चमका, बोला मीठी बानी।
नहीं अकेला रहेगा तू, यदि बात मेरी ये मानी।
तेरे जैसे इस समाज में कितने ही बेसहारे।
दर- दर भटक रहे हैं, बेचारे किस्मत के मारे।
बंगला तेरा बहुत बड़ा , निराश्रितों को आश्रय दे दे।
अपनी जायदाद से निज बच्चों को वंचित कर दे।
नेम प्लेट पर नाम लिखा दे, *एक आसरा*।
कितनों को ही मिल जाएगा एक आसरा।
तू बन जा उनका सहारा, वे बनेंगे तेरा सहारा।
इक दूजे के सहारे कट जाए जीवन सारा।
-राधा गोयल,विकासपुरी,दिल्ली