'चुंडियां' के लेखक को चिकोटियां काटते रहे पंजाबीदां वक्ता
चंडीगढ़ । विगत शनिवार को मौका था इप्टा के समृद्ध नाट्यकर्मी निर्देशक और प्रगतिशील लेखक संजीवन की सातवीं पुस्तक 'चुंडियां' के पंजाब कला भवन में विमोचन का। मैं वहाँ बिना निमन्त्रण जा पहुँचा। दरअसल मैं वहां लगी कला प्रदर्शनी देखने गया था जो उस समय पूरी तरह दर्शक विहीन थी । जबकि बाहर बड़ी गाड़ियों की भीड़ थी। वहीं के एक सभागार में पंजाबी लेखकों का जमावड़ा 'चुंडियां' पुस्तक के विमोचनार्थ अतिथियों के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था। विलंबित ख्याल खामी में मैं भी प्रतीक्षारत बुद्धिजीवियों की भीड़ में समा गया।
विमोचन पूर्व प्रोफेसर हरविंदर सिंह ने पुस्तक चर्चा करते हुए लेखक के परिवार के स्वर्णिम इतिहास से बात प्रारंभ करते हुए मौजूदा दौर में युगपुरुष शून्यता का गम्भिरतापूर्ण बोध कराया। फिर पुस्तक के नाम अर्थात 'चुंडियां' पर रोशनी डालते हुए उसमें शामिल निबंधों को शिकवे की संज्ञा दे डाली। साथ ही उन्होंने छपाई की भूलों को उजागर करते हुए प्रकाशक की खूब खबर ली। मध्य प्रदेश से पधारे सेवानिवृत्ति वरिष्ठ आईपीएस और सूचना आयुक्त रह चुके सुखराज सिंह ने लेखक को साधुवाद देते हुए पुस्तक के टाइटल 'चुंडियां' पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जापान में चिकोटी काटना बहुत गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है ,परन्तु अपने यहाँ तो सावधान करने वाली चेतावनी भी है।
डाक्टर चरणजीत कौर ने लेखक को भविष्य में अपेक्षाकृत अच्छा लिखने की ताकीद दे डाली।
फिर भाषाविद् आलोचक योगराज ने 'चुंडियां' को अधूरा और अस्पष्ट निरूपित करते हुए पंजाबी मुहावरों के बेहतर इस्तेमाल की सराहना की।
पूरे आयोजन में क्षेत्रीयता की गंध साहित्यिक व्यापकता में अवरोध प्रतीत हो रही थी और मेरा पंजाबी ज्ञान भी काफी कमतर होने के कारण मैं वहाँ से अपने बेगानेपन को लादे और पंजाबीदां वक्ताओं द्वारा काटी गई चिकोटियों का स्मरण करते हुए फिर से पंजाब कला भवन की सोभा सिंह आर्ट गैलरी में चला आया जो उस समय भी आयोजक और दर्शकों की बाट जोह रही थी। - सुभाष
प्रेषक
मुकेश तिवारी
वरिष्ठ पत्रकार ग्वालियर