अंतरिक्ष से भारत की हुंकार: शुभांशु शुक्ला की अमर उड़ान
[अंतरिक्ष में लहराता हंस: विज्ञान और विरासत की संगम-यात्रा]
जब एक भारतीय ने सितारों को छू लिया, तो वह पल केवल अंतरिक्ष की यात्रा नहीं था—वह 140 करोड़ दिलों की धड़कनों का उत्सव था, भारत की आत्मा का उद्घोष था, और हमारी सांस्कृतिक विरासत का ब्रह्मांड में लहराता तिरंगा था। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने जब ड्रैगन कैप्सूल से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की ओर कदम बढ़ाया, तो वह केवल एक अंतरिक्ष यात्री की उड़ान नहीं थी—वह भारत के सपनों, संकल्प और वैज्ञानिक शक्ति की अनंत यात्रा थी। यह वह क्षण था जब भारत ने न केवल धरती की सीमाएं लांघीं, बल्कि सितारों के पार अपनी पहचान को अमर कर दिया।
25 जून 2025 को, भारतीय समयानुसार दोपहर 12:01 बजे, फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स का फाल्कन-9 रॉकेट आकाश को चीरता हुआ अंतरिक्ष की ओर बढ़ा। ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में सवार थे भारतीय वायुसेना के शुभांशु शुक्ला, जो एक्सिओम-4 मिशन के पायलट की भूमिका में थे। उनके साथ थे कमांडर पैगी व्हिटसन (पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री, अमेरिका), मिशन विशेषज्ञ स्लावोश उज्नांस्की-विस्निव्स्की (पोलैंड), और तिबोर कपु (हंगरी)। यह मिशन नासा, एक्सिओम स्पेस और स्पेसएक्स की साझेदारी का प्रतीक है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का समर्थन प्राप्त है।
लॉन्च के महज 10 मिनट बाद, शुभांशु और उनकी टीम 7.5 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे। 28 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद, ड्रैगन कैप्सूल 26 जून 2025 को भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे आईएसएस से डॉक करने वाला है। यह 14-दिवसीय मिशन 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों का मंच है, जिनमें सात इसरो द्वारा डिजाइन किए गए हैं। ये प्रयोग भारत की वैज्ञानिक प्रगति को विश्व मंच पर चमकाने का अवसर हैं, जो न केवल तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि भारत के भविष्य के अंतरिक्ष सपनों का आधार भी है।
शुभांशु की यह यात्रा 1984 में राकेश शर्मा की ऐतिहासिक सोवियत सैल्यूट-7 मिशन के बाद भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान में शानदार वापसी है। 41 साल बाद, शुभांशु आईएसएस पहुंचने वाले पहले भारतीय बनने जा रहे हैं, जो भारत के अंतरिक्ष इतिहास में स्वर्णिम स्याही से लिखा जाएगा। यह केवल एक व्यक्ति की उड़ान नहीं, बल्कि भारत की उस जिजीविषा का प्रतीक है, जो सीमाओं को तोड़कर अनंत की ओर बढ़ रही है।
इस मिशन की आत्मा भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत है। शुभांशु ने अपने साथ एक सॉफ्ट टॉय हंस लिया, जिसे भारतीय शास्त्रों में ज्ञान और विवेक का प्रतीक माना जाता है। यह हंस अंतरिक्ष की अनंतता में तैर रहा है, जैसे भारत की सांस्कृतिक विरासत सितारों के बीच अपनी चमक बिखेर रही हो। लॉन्च के दौरान, उनके कंधे पर लहराता तिरंगा केवल एक ध्वज नहीं था—वह 140 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं, गर्व और एकता का प्रतीक था। यह तिरंगा गर्व से कह रहा था कि यह उड़ान केवल शुभांशु की नहीं, बल्कि हर उस भारतीय की है, जो खेतों से लेकर प्रयोगशालाओं तक, सपनों को हकीकत में बदल रहा है।
शुभांशु ने भारतीय खान-पान को भी अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आम का रस, गाजर का हलवा और मूंग दाल का हलवा उनके साथ गए, जो वे अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ साझा करेंगे। इसके अलावा, वे माइक्रोग्रैविटी में योग करने की योजना बना रहे हैं, जिससे भारतीय संस्कृति का वैश्विक मंच पर एक अनूठा प्रदर्शन होगा। यह वह क्षण है जब परंपरा और प्रौद्योगिकी ने एक-दूसरे का हाथ थामा, और भारत ने साबित कर दिया कि वह न केवल विज्ञान में, बल्कि संस्कृति में भी अग्रणी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह मिशन भारत के लिए एक मील का पत्थर है। शुभांशु सात भारतीय प्रयोग करेंगे, जिनमें माइक्रोग्रैविटी में मूंग और मेथी के अंकुरण का अध्ययन और मांसपेशियों की हानि का विश्लेषण शामिल है। ये प्रयोग भारत और अमेरिका की साझेदारी का परिणाम हैं और इसरो के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए महत्वपूर्ण अनुभव प्रदान करेंगे। गगनयान, जो 2026 में लॉन्च होने वाला है, भारत का पहला स्वदेशी मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन होगा। शुभांशु, जो इसके लिए चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं, इस मिशन के लिए अमूल्य अनुभव ला रहे हैं। कुल 60 से अधिक प्रयोग, जिनमें सामग्री विज्ञान, जैविक अनुसंधान और मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव शामिल हैं, भारत के भविष्य के मिशनों—जैसे 2035 तक स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने—के लिए नींव रखेंगे।
यह यात्रा केवल अंतरिक्ष तक की उड़ान नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है। यह वह क्षण है जब भारत ने साबित कर दिया कि वह न केवल धरती पर, बल्कि सितारों के बीच भी अपनी छाप छोड़ सकता है। शुभांशु की उड़ान लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो अब सपने देखने से आगे बढ़कर उन्हें हकीकत में बदलने की हिम्मत रखते हैं। यह वह दस्तक है जो ब्रह्मांड के दरवाजे पर भारत की उपस्थिति को अमर कर रही है—न केवल एक यात्री के रूप में, बल्कि एक मार्गदर्शक के रूप में।
जब शुभांशु का ड्रैगन कैप्सूल सितारों के बीच तैर रहा है, तो वह केवल एक अंतरिक्ष यान नहीं है—वह भारत के सपनों का वह पंख है, जो अनंत आकाश में उड़ रहा है। यह न कोई अंत है, न कोई पड़ाव। यह तो एक नई शुरुआत है—उस भारत की, जो अब ब्रह्मांड की गहराइयों में अपनी कहानी लिख रहा है, और जिसकी गूंज सितारों से सितारों तक अनंत काल तक गूंजेगी। यह भारत का वह उद्घोष है, जो कहता है: “हम आए हैं, और हम रहेंगे—धरती पर, आकाश में, और सितारों के पार!”
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)