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शांति का क्रेडिट? क्षमा करें ट्रंप, ये भारत की कहानी है -प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 शांति का क्रेडिट? क्षमा करें ट्रंप, ये भारत की कहानी है

[न कोई मध्यस्थ, न कोई मोहताज: भारत खुद अपनी ताक़त है]

[भारत ने झुकना नहीं सीखा — ना तब, ना अब, ना आगे]

   जब शब्द तलवारों से भी पैने हो जाएँ और दावे विश्व मंच पर सत्य को चुनौती देने लगें, तब एक राष्ट्र की साहसिक गूंज ही वह ताकत बनती है जो प्रचार के तूफान को चीर देती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच कथित संघर्ष विराम का तमगा अपने सीने पर सजाया, दावा करते हुए कि उनके व्यापारिक दांव-पेंच ने दोनों देशों को परमाणु युद्ध की कगार से खींच लिया। यह न केवल एक आत्ममुग्ध बयान था, बल्कि भारत की संप्रभुता, उसकी कूटनीतिक परिपक्वता और स्वतंत्र निर्णय शक्ति को कमतर आंकने की साहसिक कोशिश भी थी। लेकिन भारत ने अपने अडिग रुख और ठोस जवाब से इस दावे को धूल में मिला दिया, यह सिद्ध करते हुए कि उसकी शांति और शक्ति किसी बाहरी हस्तक्षेप की मोहताज नहीं।

ट्रंप का दावा उनके चिर-परिचित अंदाज में था - भारी-भरकम, आत्मप्रशंसा से लबरेज़ और तथ्यों से परे। उन्होंने कहा - हमने भारत और पाकिस्तान को युद्ध से रोका। यह परमाणु आपदा बन सकता था। बीते 21 दिनों में, उन्होंने कम से कम 10 बार इस बात को दोहराया, यहाँ तक कि एलन मस्क के प्रशासन से अलग होने की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यही राग अलापा। उनके मुताबिक, भारत पर 26% और पाकिस्तान पर 29% टैरिफ की मार ने दोनों देशों को न केवल शांति की मेज पर ला खड़ा किया, बल्कि परमाणु युद्ध की आशंका को भी टाल दिया। ट्रंप ने बिना किसी भारतीय या पाकिस्तानी नेता का नाम लिए, उन्हें “महान नेता” करार दिया, जिन्होंने कथित तौर पर उनकी मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया। लेकिन यह दावा उस सच्चाई से कोसों दूर है, जिसे भारत ने अपने बलबूते पर रचा।

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो-टूक शब्दों में ट्रंप के दावों की हवा निकाल दी। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष को समाप्त करने में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी। यह शांति भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद और भारत की कूटनीतिक रणनीति का परिणाम थी। यह बयान न केवल ट्रंप की बयानबाजी पर करारा प्रहार था, बल्कि भारत की उस स्वतंत्र विदेश नीति का भी ऐलान था, जो किसी बाहरी शक्ति के दबाव में झुकती नहीं। जयशंकर का यह रुख भारत की उस ताकत को रेखांकित करता है, जो अपनी सीमाओं की रक्षा और शांति स्थापना में आत्मनिर्भर है।

ट्रंप का बार-बार दोहराया गया दावा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोका, एक तरह का राजनीतिक नाटक प्रतीत होता है। यह न केवल तथ्यों को तोड़ता-मरोड़ता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की गरिमा को भी ठेस पहुँचाता है। भारत और पाकिस्तान का इतिहास तनावों और संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन भारत ने हमेशा अपनी संप्रभुता को सर्वोपरि रखा। चाहे 1999 का कारगिल युद्ध हो, जहाँ भारत ने अपनी सैन्य ताकत से विजय हासिल की, या 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक, जिसने आतंकवाद को करारा जवाब दिया — भारत ने बार-बार सिद्ध किया कि वह अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकता है। ट्रंप का यह दावा कि उनकी व्यापारिक रणनीति ने शांति स्थापित की, भारत की उस स्वतंत्रता और साहस को कमतर करता है, जिसने विश्व मंच पर उसकी साख बनाई।

ट्रंप ने जिस “व्यापार” को युद्ध का विकल्प बताया, वह वास्तव में आर्थिक दबाव का एक हथियार था। भारत और पाकिस्तान पर लगाए गए टैरिफ — 26% और 29% — न केवल व्यापारिक नीति थे, बल्कि भू-राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा भी। ट्रंप का यह कहना कि - हम उन देशों के साथ व्यापार नहीं करते जो एक-दूसरे पर गोली चलाते हैं, एक सतही बयान है, जो भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देशों की जटिल स्थिति को सरल बनाकर पेश करता है। यह सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में शांति की पहल थी, या वैश्विक शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में करने का एक प्रयास? क्या यह व्यापार था, या भारत और पाकिस्तान को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने की चाल?

भारत की विदेश नीति का इतिहास गवाह है कि वह कभी भी बाहरी दबावों के सामने नहीं झुका। ऑपरेशन सिंदूर इसका ताज़ा उदाहरण है, जहाँ भारत ने न केवल सैन्य दृष्टिकोण से, बल्कि कूटनीतिक संवाद के ज़रिए भी स्थिति को अपने नियंत्रण में रखा। यह शांति कोई बाहरी मध्यस्थता का परिणाम नहीं थी, बल्कि भारत की रणनीतिक परिपक्वता, सैन्य शक्ति और संवाद की ताकत का नतीजा थी। भारत ने यह सिद्ध किया कि वह न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा कर सकता है, बल्कि विश्व मंच पर अपनी स्वतंत्रता और गरिमा को भी अक्षुण्ण रख सकता है।

ट्रंप के दावे एक गहरे वैश्विक मुद्दे को भी उजागर करते हैं — शक्तिशाली देशों की वह प्रवृत्ति, जो दूसरों की उपलब्धियों को अपने नाम करने की कोशिश करती है। लेकिन भारत कोई कमज़ोर या अनभिज्ञ राष्ट्र नहीं। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक परमाणु शक्ति संपन्न देश, जिसने अपनी नैतिक और कूटनीतिक ताकत से बार-बार विश्व को चकित किया है। भारत ने ट्रंप के दावों को न केवल खारिज किया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि उसकी शांति और सुरक्षा की नीतियाँ किसी बाहरी हस्तक्षेप पर निर्भर नहीं।

सच यह है कि ट्रंप के शब्दों का शोर कितना भी तेज़ हो, वह उस सत्य को दबा नहीं सकता जो भारत ने अपने संकल्प से गढ़ा। भारत-पाकिस्तान के बीच स्थापित शांति न किसी व्यापारिक सौदे का नतीजा थी, न ही किसी तीसरे पक्ष की कृपा का। यह भारत की इच्छाशक्ति, उसकी सैन्य ताकत और कूटनीतिक दूरदर्शिता का परिणाम थी। यह वह ताकत थी जिसने न केवल युद्ध को टाला, बल्कि विश्व मंच पर भारत की साख को और मज़बूत किया।

जब इतिहास के पन्ने पलटे जाएँगे, तो वे ट्रंप के दावों के शोर को नहीं, बल्कि भारत के संकल्प की गूंज को दर्ज करेंगे। वे उस राष्ट्र की कहानी कहेंगे जिसने अपने साहस, विवेक और गरिमा से न केवल शांति स्थापित की, बल्कि विश्व को यह दिखाया कि सच्ची ताकत बाहरी हस्तक्षेप में नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान में निहित है। भारत की यह आवाज़ प्रचार के तूफानों में भी अडिग रहेगी — एक ऐसी गूंज जो सत्य, संकल्प और स्वतंत्रता की गाथा गाती है।

  - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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