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सरोकार : 38 प्रतिशत आंगनवाड़ियों में बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार - डॉ. चन्दर सोनाने ,उज्जैन


 

सरोकार :

38 प्रतिशत आंगनवाड़ियों में बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार

  - डॉ. चन्दर सोनाने ,उज्जैन

                     मध्यप्रदेश में कुल 97,000 से अधिक आंगनवाड़ियां हैं। इन आंगनवाड़ियों में से 38 प्रतिशत आंगनवाड़ियों में बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं। मजेदार बात यह है कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2025-26 में कुपोषण से लड़ने के लिए 4,895 करोड़ का बजट रखा गया है। इसके बावजूद प्रदेश में गंभीर कुपोषण से शिकार बच्चों की संख्या देखते हुए यह स्पष्ट दिखता है कि कहीं न कहीं व्यवस्था में कुप्रबंध है।

                   महिला एवं बाल विकास विभाग के पोषण ट्रैकर एप के विश्लेषण में उक्त चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। प्रदेश में कुपोषण राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। गंभीर और मध्यम कुपोषण के मामले जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर अप्रैल 2025 में 5.40 प्रतिशत थे, वहीं मध्यप्रदेश में यह 7.79 प्रतिशत था। प्रदेश में अप्रैल 2024 में यह 2025 की तुलना में कम 6.87 प्रतिशत था। 2024 की तुलना में 2025 में यह प्रतिशत घटने की बजाय बढ़ गया। 6 साल से कम उम्र के 27 प्रतिशत लड़कों में दुबलापन पाया गया है। इसी आयु वर्ग में 32 प्रतिशत लड़कियों का वजन उम्र के मुताबिक कम पाया गया।

                   मध्यप्रदेश में कुपोषण से लड़ने के लिए हजारों करोड़ों रूपए का प्रावधान बजट में रखने के बावजूद अभी भी अधिकतर जिलों में पोषण की हालत सुधरी नहीं है। मई माह में प्रदेश के 55 जिलों में से 45 जिलों के बच्चे कम वजन के मामले में रेड जोन में हैं। अर्थात 20 प्रतिशत से अधिक बच्चों का वजन उम्र के अनुसार कम पाया गया है। यही नहीं 22 जिलों में बच्चों में ठिगनापन भी देखा गया है। अर्थात बच्चों की ऊँचाई उसकी उम्र के मुताबिक कम पाई गई है।

                 प्रदेश के अधिकतर जिलों में 6 साल तक की उम्र के बच्चे गंभीर और मध्यम कुपोषण से जुझ रहे हैं। बड़े जिलों में भी गंभीर कुपोषण वाले बच्चे पाये गए हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल में 27 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण वाले देखे गए। इन्दौर जिले में 45 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण वाले हैं। उज्जैन में 46 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषित पाए गए हैं। ग्वालियर और चंबल में लगभग 35 प्रतिशत गंभीर कुपोषण वाले बच्चे रजिस्टर्ड हैं।

                  प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती निर्मला भूरिया ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया था कि मध्य प्रदेश की आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित 62.88 लाख बच्चों में से 5.41 लाख कम वजन के हैं। इनमें सबसे ज्यादा धार जिले में है। धार जिले में सबसे ज्यादा 35,950 कम वजन वाले बच्चे पंजीकृत हैं। इसके बाद खरगोन में 24,596 और बड़वानी में 21,940 बच्चे पंजीकृत हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल जिले में 12,199 कम वजन वाले बच्चे हैं। इंदौर में 11,437 बच्चे कम वजन के हैं। उक्त आंकड़ों के अनुसार, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृह जिले उज्जैन में ऐसे बच्चों की संख्या 12,039 है, जबकि निवाड़ी में सबसे कम 1,438 बच्चे हैं।

                 प्रदेश में 97 हजार से आंगनवाड़ियाँ हैं। इन आंगनवाड़ियों में गर्भवती महिलाओं, धात्री महिलाओं और 6 साल तक के बच्चे दर्ज किए जाते हैं। इन बच्चों को पौष्टिक आहार प्रतिदिन मिलता रहे इसके लिए महिला बाल विकास के द्वारा इन आंगनवाड़ियों में पोषण आहार दिया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण ईकाई आंगनवाड़ी होती है। आंगनवाड़ियों की देखरेख के लिए पर एक पर्यवेक्षक की तैनाती की जाती है। एक परियोजना में करीब एक सौ आंगनवाड़ियां होती है। परियोजना अधिकारी इस परियोजना का मुख्य कर्ताधर्ता रहता है। जिले की समस्त परियोजनाओं पर एक जिला स्तर का अधिकारी होता है।

                  आंगनवाड़ियों में कुपोषित बच्चे पाए जाने पर उन्हें विशेष पोषण आहार दिया जाता है। इससे बच्चे कुपोषण से बाहर निकलने के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। कुछ वर्ष पहले महिला बाल विकास विभाग द्वारा आंगनवाड़ियों को गोद में लेने की योजना शुरू की गई थी। इस योजना में कोई भी सामाजिक, स्वयंसेवी संस्था आंगनवाड़ियों को गोद ले सकती है। एक आंगनवाड़ी के गंभीर कुपोषित बच्चों को कोई व्यक्ति भी गोद ले सकता है। एक व्यक्ति एक से अधिक कुपोषित बच्चों को गोद ले सकता है। गंभीर कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने के लिए गोद लेने वाले व्यक्ति और संस्थाओं को एक बच्चे के लिए एक माह की खाद्य सामग्री की सूची और मात्रा दी जाती थी। वह व्यक्ति और संस्था प्रतिमाह खाद्य सामग्री आंगनवाड़ियों को देता था। इससे बच्चे तेजी से कुपोषण से बाहर निकलने लगते थे।

                 अभी भी कुपोषित बच्चों को गोद लेने की आंगनवाड़ियों में यह व्यवस्था है। यह योजना अब केवल कागज पर है। किन्तु उसमें कोई भी रूचि नहीं लेता है। न तो आंगनवाड़ियों कार्यकर्ता इसमें रूचि लेती है, न पर्यवेक्षक और न ही परियोजना अधिकारी इसमें रूचि लेता है। इसी कारण से यह अत्यन्त उपयोगी योजना सुप्त अवस्था में चली गई है। इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही आंगनवाड़ियों में गंभीर कुपोषित पाए गए बच्चों की हर स्तर पर सतत समीक्षा करने की भी सख्त आवश्यकता है। समाज के सक्रिय सहयोग से और विभाग के हर स्तर के अधिकारियों कर्मचारियों के सहयोग से ही बच्चों को कुपोषण से बाहर निकाला जा सकता है।

                किसी भी सरकार का दायित्व होता है कि वे अपने राज्य में कुपोषण को समाप्त करें। विशेषकर बच्चों में गंभीर कुपोषण पाया जाना दुखद होता है। इससे वे असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं। इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकार बच्चों में पाए जाने वाले कुपोषण को समाप्त करने की दिशा में प्राथमिकता के आधार पर कार्य करें।

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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