[प्रसंगवश – 24 जुलाई: आयकर दिवस]
आयकर दिवस: आर्थिक ईमानदारी का राष्ट्रीय उत्सव
[ईमानदारी से भरा रिटर्न, समृद्ध भारत की दिशा में कदम]
भारत की प्रगति की नींव में प्रत्येक नागरिक का योगदान एक सुनहरी कड़ी है, और 24 जुलाई को मनाया जाने वाला आयकर दिवस इस सत्य को गर्व के साथ उजागर करता है। यह दिन केवल कर भुगतान की औपचारिकता नहीं, बल्कि एक प्रेरक आह्वान है—एक ऐसा आह्वान जो हर करदाता को राष्ट्र के स्वप्नों का साझेदार बनाता है। 1860 में सर जेम्स विल्सन द्वारा प्रस्तुत आयकर अधिनियम ने भारत की आर्थिक यात्रा में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ा था। यह वह बीज था, जिसने आज एक समृद्ध, आत्मनिर्भर और वैश्विक मंच पर अग्रणी भारत की नींव रखी। 2025 में, जब देश डिजिटल क्रांति और आर्थिक नवाचार के शिखर पर खड़ा है, आयकर दिवस एक राष्ट्रीय उत्सव बन चुका है, जो नागरिकों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागृत करता है। इस वर्ष की थीम “सशक्त करदाता, समृद्ध राष्ट्र” हर करदाता के दिल में यह विश्वास जगाती है कि उनका योगदान देश को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है।
आयकर प्रणाली भारत की आर्थिक रीढ़ की तरह है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, आधारभूत संरचना, महिला सशक्तिकरण, रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों को पोषित करती है। प्रत्येक करदाता का योगदान, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, राष्ट्र के विकास में एक मजबूत ईंट जोड़ता है। यह केवल एक कानूनी दायित्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक प्रतिबद्धता है, जो हर नागरिक को देश के सपनों से जोड़ती है। जब एक करदाता अपनी आय का हिस्सा सरकार को सौंपता है, तो वह न केवल आर्थिक प्रगति में योगदान देता है, बल्कि सामाजिक समानता और कल्याण की नींव को भी सुदृढ़ करता है। 2025 में, जब भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, करदाताओं की यह भूमिका एक प्रेरक कहानी बन चुकी है।
हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने आयकर प्रणाली को अधिक पारदर्शी, सरल और करदाता-अनुकूल बनाने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। डिजिटल इंडिया के तहत फेसलेस असेसमेंट, फेसलेस अपील, प्री-फिल्ड आईटीआर फॉर्म और नई कर प्रणाली जैसे नवाचारों ने कर प्रक्रिया को न केवल सहज बनाया, बल्कि भ्रष्टाचार और मानवीय त्रुटियों को भी न्यूनतम किया है। 2025 में, एआई-सक्षम टैक्स पोर्टल और एकीकृत टैक्सपेयर हेल्पडेस्क ने करदाताओं को अभूतपूर्व सुविधा प्रदान की है। अब कर रिटर्न दाखिल करना एक समयबद्ध, तकनीकी और उपयोगकर्ता-अनुकूल प्रक्रिया बन चुकी है। छोटे करदाताओं के लिए विशेष छूट और डिजिटल स्टार्टअप्स के लिए प्रोत्साहन योजनाओं ने औपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिक लोगों को शामिल किया है। ये सुधार सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास का एक मजबूत सेतु बनाते हैं, जो आर्थिक समावेशन और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।
आयकर प्रणाली का एक अनूठा आयाम यह है कि यह प्रत्येक नागरिक को वित्तीय साक्षरता का पाठ पढ़ाती है, जो आर्थिक जागरूकता का दीपक जलाती है। कर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया व्यक्ति को अपनी आय, व्यय, निवेश और बचत का सूक्ष्म लेखा-जोखा रखने के लिए प्रेरित करती है, जिससे वह न केवल आर्थिक रूप से अनुशासित बनता है, बल्कि अपने भविष्य के प्रति सजग और सशक्त भी होता है। सरकार द्वारा संचालित ‘साक्षर करदाता अभियान’ स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक संगठनों में वित्तीय शिक्षा की अलख जगा रहा है, जो युवा पीढ़ी को जिम्मेदार और दूरदर्शी नागरिक बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। एक वित्तीय रूप से साक्षर समाज ही वह मजबूत नींव है, जो एक आत्मनिर्भर, समृद्ध और वैश्विक नेतृत्वकारी भारत का निर्माण करता है।
2025 में, आयकर प्रणाली ने पर्यावरणीय जिम्मेदारी को भी गले लगाया है। ग्रीन टैक्स इंसेंटिव्स और सस्टेनेबल इन्वेस्टमेंट छूट जैसी नीतियों ने हरित ऊर्जा, ई-मोबिलिटी और पुनर्नवीकरणीय संसाधनों में निवेश करने वालों को प्रोत्साहित किया है। यह न केवल आर्थिक विकास को गति देता है, बल्कि पर्यावरणीय नैतिकता को भी बढ़ावा देता है। इस तरह, आयकर प्रणाली अब केवल वित्तीय योगदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय प्रगति का एक समग्र मॉडल बन चुकी है।
आयकर प्रणाली का ऐतिहासिक विकास इसके महत्व को और भी स्पष्ट करता है। 1922 के आयकर अधिनियम ने एक संगठित कर प्रणाली की नींव रखी, जिसे 1961 के आयकर अधिनियम ने और मजबूत किया। 1964 में केंद्रीय राजस्व बोर्ड का विभाजन, 1981 में कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत और 2009 में बेंगलुरु में केंद्रीकृत प्रसंस्करण केंद्र (सीपीसी) की स्थापना ने कर प्रशासन को डिजिटल और कुशल बनाया। ई-सत्यापन योजना और विवाद से विश्वास योजना जैसे कदमों ने कर चोरी को कम करने और लंबित विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये योजनाएँ न केवल राजस्व संग्रह को बढ़ाती हैं, बल्कि करदाताओं और सरकार के बीच विश्वास को भी सुदृढ़ करती हैं।
आयकर दिवस केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह करदाताओं और सरकार के बीच एक जीवंत संवाद का मंच है। इस दिन देशभर में साक्षरता शिविर, आईटीआर फाइलिंग कैम्प, ऑनलाइन वेबिनार, क्विज़ प्रतियोगिताएँ और सम्मान समारोह आयोजित किए जाते हैं। उत्कृष्ट करदाताओं को सम्मानित करने से न केवल उनका मनोबल बढ़ता है, बल्कि अन्य नागरिकों को भी कर प्रणाली से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है। यह एक ऐसा अवसर है, जो करदाताओं को उनके योगदान के लिए गर्व का अनुभव कराता है और उन्हें राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका की याद दिलाता है।
कर चोरी और अवैध धन संग्रह जैसी समस्याएँ आर्थिक असमानता को बढ़ाती हैं और सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को बाधित करती हैं। आयकर दिवस इस बात पर जोर देता है कि प्रत्येक नागरिक की ईमानदारी और सक्रिय भागीदारी ही समावेशी विकास की कुंजी है। जब करदाता अपनी आय को पूरी पारदर्शिता के साथ घोषित करते हैं, तो यह न केवल सरकार के राजस्व को बढ़ाता है, बल्कि सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता को भी सुनिश्चित करता है।
आयकर दिवस एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है, जो प्रत्येक नागरिक के हृदय में कर्तव्य, उत्तरदायित्व और गौरव की ज्वाला प्रज्वलित करता है। यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि भारत का वैभवशाली भविष्य केवल सरकारी नीतियों के कंधों पर नहीं टिका, बल्कि यह हर करदाता की ईमानदारी और समर्पण से रचा जाता है। 2025 में, जब भारत आत्मनिर्भरता के शिखर पर चढ़कर वैश्विक मंच पर अपनी नेतृत्वकारी पहचान स्थापित कर रहा है, आयकर दिवस एक प्रेरक संदेश के रूप में गूंजता है—हर करदाता एक राष्ट्रनिर्माता है, जो अपने योगदान से न केवल आर्थिक समृद्धि का दीप जलाता है, बल्कि एक समावेशी, पर्यावरणीय रूप से सजग और सशक्त भारत का निर्माण करता है। यही चेतना भारत को विश्व में एक अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित करने का आधार बनेगी।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)