नेशनल डॉक्टर्स डे पर विशेष :
डॉक्टर धरती के भगवान हैं, तो फिर कोताही क्यों बरते---
डॉ बी आर नलवाया शिक्षाविद मंदसौर
_प्रस्तुति - डॉ घनश्याम बटवाल_
हमारे देश में आजादी के बाद स्वास्थ्य सेवा में काफी प्रगति हुई, लेकिन अभी भी सरकारी अस्पतालों में अत्याधुनिक सुविधाओं की भारी कमी है । गत दो दशकों से देश में स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टर के खिलाफ हिंसा के मामले लगातार बढे हैं । इसमें मरीज के परिजनों द्वारा डॉक्टर के साथ मारपीट की घटनाओं को भी देखा गया है। अगर हिंसा के मामले इसी तरह जारी रहेगा तो निजी डॉक्टर गंभीर बीमारी वाले मरीज को मना करने लगेंगे ,छोटे क्लीनिक बंद होने लगेंगे, और बड़े महंगे अस्पताल रह जाएंगे, इससे सबसे अधिक नुकसान आम आदमी को होगा।
अब डॉक्टर और मरीजों के बीच विश्वास के रिश्ते को अधिक मजबूत करने की जरूरत है ,लेकिन यदि मरीज को विश्वास नहीं है, तो कई बार डॉक्टर के बेहतर प्रयास भी निष्फल हो जाते हैं,कि कोई भी डॉक्टर ऐसा नहीं है, जो अपने मरीज को नुकसान पहुंचाए। वैसे काफी डॉक्टर संवेदनशील होते हैं ,वही डॉक्टर फिर से ज्यादा मरीज के दर्द को दूर करने में अपने नैतिक कर्तव्य के फर्ज को पूरी ईमानदारी से निर्वहन करते हैं, फिर भी डॉक्टर को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा । अमीर ओर गरीब हर रोगी के रोग की समुचित इलाज की पहल करना होगी।
अप्रैल 2022 में राजस्थान दौसा जिले में डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या की घटना बेहद दुखद और हर किसी के दिल को झकझोर देने वाली रही है । इसके लिए डॉक्टर को दोषी ठहराया गया । राजस्थान में प्रसव के बाद प्रसूता को हेमरेज हुआ और पोस्टमार्टम हेमरेज का कारण बना प्रसूता मौत में डॉक्टर की गलती मानी गई। प्रशासन ने डॉक्टर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया।
आज चिकित्सा जगत में भले ही बुराईया हो ,परंतु मरीज सामने होता है, या नहीं तो भी डॉक्टर उसे बचाने का प्रयास करता है। यह मानवीय पहलू अभी जिंदा है। ऐसा एक उदाहरण कर्नाटक के सर्जन डॉक्टर गोविंद नंद कुमार ने भीषण ट्रैफिक जाम में फंसने के बाद अपनी कार वहीं छोड़कर 3 किलोमीटर का फासला दोड़कर तय किया और अहम सर्जरी के लिए अस्पताल समय पर पहुंचे। यह घटना कर्नाटक के बेंगलुरु के एक अस्पताल की हुई।
इस तरह कई डॉक्टर अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार होकर मरीज को उचित इलाज देता है । अस्पताल जाने वाले हर मरीज को भरोसा रहता है ,कि वह उसकी परेशानी दूर करेगा ,लेकिन यह भी सत्य है, कि कोई भी डॉक्टर किसी इलाज के बारे में गारंटी नहीं ले सकता । हर अनहोनी का कारण डॉक्टर की लापरवाही नहीं है या है , इसे समझना बहुत जरूरी है।
भारत में राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस का इतिहास 1 जुलाई 1991 से शुरू होता है। जब इसे पहली बार डॉक्टर विधान चंद्र राय ने केवल एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे ,बल्कि एक राजनेता भी थे , जिन्होंने भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वैसे आज डॉक्टर के समर्पण, बलिदान का सम्मान करने का दिन है, डॉक्टर अपने कर्तव्यों से परे जाकर मरीजों की अथक सेवा करते हैं ,डॉक्टर की चुनौती पूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं, और उनकी प्रतिबद्धता और अटूट समर्पण हमारे सम्मान और प्रशंसा के पात्र हैं।
आज डॉक्टर दिवस पर उनकी सेवाओं को परखना, पहचाना,मूल्यांकन किया जाना चाहिए, उनके त्याग को देखा जाना चाहिए, हम देखते हैं कि एक प्रतिशत ही ऐसे डॉक्टर हैं ,जिनकी लापरवाही की वजह से मरीज की जान जाती, जबकि 99% डॉक्टर मरीज का इलाज करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, इसलिए इनको धरती के भगवान भी कहा गया है ।देश और विदेश में कई न्यायालय के निर्णय में डॉक्टर को लापरवाही के कारण मरीजों को लाखों रुपए का जुर्माना भी देना पड़ा है इनमें लापरवाही की बातें बहुत सारी हैं जिनका वर्णन संभव नहीं है। वैसे विभिन्न अदालती फैसलों और कानूनी व्याख्याओं के आधार पर चिकित्सको से कई अपेक्षाएं की गई है।
आज डॉक्टर दिवस पर डॉक्टर को अपने कर्तव्य का निर्वहन निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, उचित इलाज की उचित फीस लेने की यही कामना देश का प्रत्येक व्यक्ति करता है।
डॉक्टर हमेशा स्वस्थ रहें प्रसन्न रहे हम उनका सम्मान करते हैं। अब डॉक्टर को सहज संबंधों के आधार पर मरीज से व्यवहार कर कमाई का जरिया न बनाते हुए, फसाद की जड़ ना बने।