मन की भूख और बाज़ार की चाल: कैसे डर बनता है कारोबार
[हमेशा कुछ छूट जाने का डर: और उस डर से भरा बाजार]
कभी रात के सन्नाटे में अपने फोन की स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हुए यह ख्याल आया है कि आपकी ज़िंदगी में कुछ कमी है? शायद आपका करियर उतना शानदार नहीं, आपकी त्वचा उतनी चमकदार नहीं, या आपकी लाइफस्टाइल उतनी परफेक्ट नहीं, जितनी सोशल मीडिया पर चमकती तस्वीरें बताती हैं। यह कोई संयोग नहीं है। यह एक सुनियोजित जाल है, जिसे कंपनियां आपके डर, असुरक्षा और ओवरथिंकिंग के इर्द-गिर्द बुनती हैं। आज ओवरथिंकिंग सिर्फ़ एक मानसिक आदत नहीं, बल्कि एक विशाल कारोबार बन चुका है। कंपनियां आपके मन की बेचैनी को समझती हैं और उसे भुनाने का हुनर बखूबी जानती हैं। वो आपके आत्म-संदेह को हवा देती हैं, ताकि आप उनकी चमकदार पैकिंग में लिपटे समाधान खरीदते रहें। यह एक ऐसा बाज़ार है, जो आपकी चिंता को मुद्रा बनाकर अरबों की कमाई करता है।
सोशल मीडिया पर हर स्क्रॉल के साथ आपको एक नया सपना बेचा जाता है। इंस्टाग्राम की चमचमाती तस्वीरें, लक्ज़री वेकेशन, परफेक्ट बॉडी और सक्सेस स्टोरीज़ आपके मन में एक अजीब सी बेचैनी बोती हैं। “क्या मैं पीछे रह गया हूँ?” “क्या मेरी ज़िंदगी इतनी अधूरी है?” ये सवाल आपके मन में कोई और नहीं, बल्कि मार्केटिंग की चतुर रणनीति पैदा करती है। यह तुलना का खेल है, जिसे मनोवैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किया जाता है। 2023 में स्टैटिस्टा के एक सर्वे के अनुसार, 60% से ज़्यादा युवा सोशल मीडिया की वजह से अपनी ज़िंदगी से असंतुष्ट महसूस करते हैं। कंपनियां इसे फोमो (फियर ऑफ मिसिंग आउट) कहती हैं, लेकिन असल में यह एक हथियार है। “सीमित समय का ऑफर”, “आखिरी मौका”, “सिर्फ़ आज के लिए” जैसे टैगलाइन्स आपको जल्दबाज़ी में फैसले लेने पर मजबूर करते हैं। आप सोचने लगते हैं, “अगर मैंने अभी नहीं खरीदा, तो शायद हमेशा पछताऊँगा।” इस तरह, आपकी ओवरथिंकिंग को एक आदत में बदल दिया जाता है, और यही आदत कंपनियों की जेबें भरती है।
मार्केटिंग अब सिर्फ़ उत्पाद बेचने का खेल नहीं, बल्कि आपके दिमाग को पढ़ने और उसे नियंत्रित करने की कला बन चुकी है। न्यूरोमार्केटिंग और डेटा एनालिटिक्स की मदद से कंपनियां आपके व्यवहार, आपकी पसंद और आपकी कमज़ोरियों को बारीकी से समझती हैं। 2024 में ग्लोबल डेटा रेवेन्यू मार्केट $400 बिलियन से ज़्यादा का हो चुका है, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का बड़ा हिस्सा है। आपके हर क्लिक, हर लाइक, हर सर्च को ट्रैक किया जाता है, ताकि आपको वही कंटेंट दिखाया जाए जो आपकी असुरक्षा को कुरेदे। अगर आप अपनी त्वचा को लेकर चिंतित हैं, तो स्किनकेयर विज्ञापन। अगर आप करियर में पिछड़ने से डरते हैं, तो मोटिवेशनल कोर्स और कोचिंग प्रोग्राम। यह सब इतना सुनियोजित है कि आपको लगता है ये आपके लिए ही बनाया गया है। लेकिन हकीकत में, यह सिर्फ़ आपके डर को भुनाने की रणनीति है।
पिछले एक दशक में मेंटल हेल्थ इंडस्ट्री ने अभूतपूर्व वृद्धि देखी है। 2022 में एलाइड मार्केट रिसर्च के अनुसार, ग्लोबल मेंटल हेल्थ मार्केट $383 बिलियन का था और 2030 तक इसके $537 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है। मेंटल हेल्थ ऐप्स (जैसे हेडस्पेस, बेटर हेल्प), योगा रिट्रीट्स, वेलनेस कोर्स – ये सब आपकी चिंता को कम करने का वादा करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये वाकई आपकी मदद करते हैं, या बस आपकी बेचैनी को और गहरा करते हैं? कई बार ये कंपनियां पहले आपके मन में असुरक्षा का बीज बोती हैं – “क्या आप पर्याप्त प्रोडक्टिव हैं?” “क्या आपकी नींद पूरी हो रही है?” – और फिर उसी का समाधान बेचती हैं। यह एक दुश्चक्र है: आप चिंता करते हैं, समाधान खरीदते हैं, फिर और चिंता करते हैं कि क्या यह समाधान काम कर रहा है। इस तरह, आपकी जेब खाली होती है, और आपका मन और उलझता जाता है।
“खुशी का फॉर्मूला” और “सक्सेस का मंत्र” बेचना आज का सबसे बड़ा कारोबार है। मोटिवेशनल स्पीकर्स, ऑनलाइन कोर्स, सेल्फ-हेल्प किताबें – ये सब आपको यह यकीन दिलाते हैं कि आपमें कुछ कमी है, और उसे पूरा करने का रास्ता उनकी जेब से होकर जाता है। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स जैसे कोर्सेरा और यूडेमी ने 2024 तक $8 बिलियन से ज़्यादा की इंडस्ट्री बनाई है। ये कोर्स आपको यह एहसास दिलाते हैं कि अगर आपने यह नया स्किल नहीं सीखा, तो आप पीछे छूट जाएंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये सवाल पहले आपके मन में क्यों नहीं आए? क्योंकि ये सवाल कंपनियों ने आपके मन में डाले हैं। वो आपके आत्म-संदेह को हवा देते हैं, ताकि आप उनकी सेवाएँ खरीदते रहें।
सोशल मीडिया इस व्यापार का सबसे बड़ा और सबसे चालाक खिलाड़ी है। 2025 में स्टैटिस्टा के अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में सोशल मीडिया यूज़र्स की संख्या 4.9 अरब से भी ज्यादा होगी। जितनी देर आप इन प्लेटफॉर्म्स पर स्क्रॉल करते रहते हैं, उतनी ही तेजी से आपका डेटा इकट्ठा किया जाता है और आपकी कमजोरियों की मानो रजिस्ट्री तैयार की जाती है। आपकी हर क्लिक, हर सर्च, हर लाइक को बेहद बारीकी से ट्रैक किया जाता है ताकि आपके लिए ऐसे विज्ञापन रचे जा सकें, जो आपकी असुरक्षा और बेचैनी को और गहरा कर दें। 2023 में प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में पाया गया कि 70% लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के बाद खुद को दूसरों से कमतर और असफल महसूस करते हैं। यह कोई इत्तफाक नहीं है। यह पूरी व्यवस्था ही आपके डर, आपकी तुलना और आपके अधूरेपन को भुनाने के लिए तैयार की गई है। ये प्लेटफॉर्म इस तरह डिज़ाइन किए जाते हैं कि आप जितनी देर वहां ठहरे रहें, उतनी बार आपको यह महसूस कराया जाए कि आपके जीवन में कोई कमी है – और इस कमी को भरने का एक ही रास्ता है: उनके द्वारा सुझाया गया अगला प्रोडक्ट, अगली सर्विस, अगला वादा। यह वही अदृश्य जाल है जिसमें धीरे-धीरे पूरी दुनिया उलझती जा रही है।
इस चक्र से बाहर निकलने का रास्ता है – जागरूकता। हर बार जब आप कोई उत्पाद या सेवा खरीदने की सोचें, रुककर खुद से पूछें: “क्या मुझे वाकई इसकी ज़रूरत है, या यह मेरी चिंता को भुनाने का तरीका है?” क्या यह विज्ञापन मेरे डर को हवा दे रहा है? क्या मैं सचमुच अपूर्ण हूँ, या यह बाज़ार का बनाया हुआ भ्रम है? मशहूर दार्शनिक एलन वॉट्स ने कहा था, “चिंता का मतलब है कि आप या तो भविष्य में जी रहे हैं या अतीत में, लेकिन वर्तमान में नहीं।” कंपनियां आपका वर्तमान छीनकर आपको चिंता के भविष्य में धकेल देती हैं। इस जाल से बचने के लिए अपने मन को समझें, ठहरें, और सोचें।
ओवरथिंकिंग का यह व्यापार आपके मन की कमज़ोरियों पर टिका है। कंपनियां आपके डर को पैकेज कर, उसे चमकदार समाधानों में बेचती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी उत्पाद आपकी आत्मा की शांति नहीं खरीद सकता। शांति आपके भीतर है, बस उसे पहचानने की ज़रूरत है। अगली बार जब आपकी स्क्रीन पर कोई विज्ञापन चमके, कोई ऑफर चिल्लाए, या कोई तस्वीर आपको अधूरा महसूस कराए, तो एक पल रुकें। अपनी चिंता को देखें, उसे समझें, और मुस्कुराकर उसे जाने दें। क्योंकि आपकी बेचैनी उनका बाज़ार हो सकती है, लेकिन आपकी शांति आपकी ताकत है। इस ताकत को संभालें, और इस व्यापार को चुनौती दें।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)