काव्य :
पानी की बूंद
पानी की बूंदें गागर भरतीं
तडाग,नदियां, सागर भरतीं
श्रमिक के श्रम को, मान देतीं
स्वेद कण, बन बन उभरतीं
गालों पर विरहनी के, नयनों से टपकतीं
प्रेम,वेदना,पीड़ा के पर्दे खोलतीं
दूब की नोक पर चमकतीं, हीरे सा
शीत ऋतु की, सुषमा बन निखरती
नल से टपकतीं, कभी बमुश्किल
प्यास बुझातीं,जीवन, धड़कन बनतीं
बूंद बूंद बचाया करें,बूंदें ही जीवन हैं
*ब्रज*, बूंद बूंद प्रयास से ही रक्षित जीवन है
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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