जब अमेरिका बोला भारत की भाषा: टीआरएफ पर वैश्विक प्रहार
[टीआरएफ का पर्दाफाश: आतंक की आड़ में पाकिस्तान]
22 अप्रैल 2025 की वह काली दोपहर, जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की हरी-भरी वादियां खून से लाल हो गईं। बैसरन घाटी में घुड़सवारी का आनंद लेते, हंसी-ठिठोली करते पर्यटक एक पल में आतंक की भेंट चढ़ गए। आतंकवादियों ने पहले उनका धर्म पूछा, फिर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए 26 बेगुनाहों को गोलियों से भून दिया। यह हमला, जिसकी जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने ली, 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत में नागरिकों पर सबसे घातक आतंकी हमला था। इस नृशंसता ने न केवल भारत के दिल को चीर दिया, बल्कि वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग को और मुखर कर दिया। 17 जुलाई 2025 को अमेरिका ने टीआरएफ को विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (एसडीजीटी) घोषित कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया, जो न सिर्फ भारत की कूटनीतिक जीत है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता का प्रतीक भी है।
यह संगठन, जिसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का छद्म चेहरा माना जाता है, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद उभरा। लश्कर-ए-तैयबा, जिसे संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका पहले ही आतंकी संगठन घोषित कर चुके हैं, ने इस प्रॉक्सी का इस्तेमाल कश्मीर में हिंसा भड़काने और अंतरराष्ट्रीय जांच से बचने के लिए किया। भारतीय गृह मंत्रालय ने 2023 में इसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया था, यह बताते हुए कि इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाना, सुरक्षा बलों पर हमले करना और सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को आतंक की राह पर धकेलना है। लेकिन पहलगाम की घटना ने इस संगठन की क्रूरता को एक नई ऊंचाई दी, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।
पहलगाम की त्रासदी ने मानवता को झकझोर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के बयान रोंगटे खड़े करने वाले हैं—आतंकियों ने पीड़ितों से कलमा पढ़ने को कहा, फिर धर्म के आधार पर चुन-चुनकर हत्याएं कीं। मरने वालों में ज्यादातर हिंदू पर्यटक थे, जो कश्मीर की खूबसूरती में सुकून तलाशने आए थे। हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इस संगठन ने न केवल अपनी बर्बरता का प्रदर्शन किया, बल्कि आतंक का प्रचार कर घाटी में दहशत का माहौल बनाने की कोशिश की। भारतीय जांच एजेंसियों ने इसके सरगना को हमले का मास्टरमाइंड बताया, जो पाकिस्तान की धरती से आतंकी साजिशों को अंजाम देता है।
भारत ने इस हमले का जवाब बिजली की तेजी से दिया। 6-7 मई की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत नियंत्रण रेखा के पार और पाकिस्तानी क्षेत्र में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए गए। इन हमलों में सौ से ज्यादा आतंकी मारे गए, जिनमें मुजफ्फराबाद और मुरीदके जैसे इलाके शामिल थे, जहां 2008 के मुंबई हमले के गुनहगारों को प्रशिक्षण दिया गया था। यह कार्रवाई न केवल आतंकी नेटवर्क के लिए करारा झटका थी, बल्कि एक सख्त संदेश भी था कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर कोई समझौता नहीं करेगा।
भारत की प्रतिक्रिया यहीं नहीं रुकी। मई 2025 में सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 33 देशों की राजधानियों में भेजे गए। इनमें अल्जीरिया, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जापान और यूएई जैसे देश शामिल थे। 51 सांसदों, राजनयिकों और पूर्व नौकरशाहों ने एकजुट होकर पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन को बेनकाब किया। इन दौरों ने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को अभूतपूर्व रूप से मजबूत किया और पाकिस्तानी दुष्प्रचार को ध्वस्त कर दिया। यह कूटनीतिक आक्रामकता इतनी प्रभावी थी कि अमेरिका ने इस संगठन को आतंकी सूची में शामिल करने का फैसला लिया, जो भारत की रणनीति की जबरदस्त जीत है।
अमेरिका का यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं है। विदेशी आतंकवादी संगठन की सूची में शामिल होने से इस संगठन पर वित्तीय प्रतिबंध, यात्रा पाबंदियां और इसके नेटवर्क को कमजोर करने में मदद मिलेगी। अमेरिकी विदेश विभाग ने साफ कहा कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और भारत के साथ सहयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। बयान में पहलगाम हमले को 2008 के मुंबई हमलों के बाद सबसे घातक बताया गया, जिसने निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया। इस संगठन को लश्कर-ए-तैयबा के साथ जोड़ते हुए अमेरिका ने इसकी संलिप्तता को पूरी तरह उजागर कर दिया।
इस संगठन की स्थापना के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी का हाथ माना जाता है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के दबाव का सामना करना पड़ा। इसे ‘स्वदेशी’ संगठन के रूप में पेश कर अपनी संलिप्तता छिपाने की कोशिश की गई, लेकिन भारत और अमेरिका ने इस नकाब को पूरी तरह उतार दिया। यह संगठन न केवल लश्कर के वित्तीय चैनलों का इस्तेमाल करता है, बल्कि ऑनलाइन भर्ती और आतंकी प्रचार में भी सक्रिय है।
पहलगाम की घटना और इसके बाद की कार्रवाइयों ने साबित कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक सहयोग अपरिहार्य है। भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताकत, साथ ही अमेरिका का यह कदम, आतंकवादियों और उनके समर्थकों के लिए सख्त चेतावनी है। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और वैश्विक मंचों पर अपनी बात रखकर यह साफ कर दिया कि वह न केवल अपने नागरिकों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी हर कदम उठाएगा।
यह त्रासदी उन 26 परिवारों की कहानी है, जो कश्मीर की वादियों में सुकून की तलाश में गए थे, लेकिन आतंक की भेंट चढ़ गए। उनकी हत्या ने सवाल उठाया कि आखिर मानवता कब तक इस बर्बरता का शिकार बनेगी? लेकिन भारत और उसके सहयोगियों की एकजुटता ने यह उम्मीद जगाई है कि आतंकवाद के खिलाफ यह जंग निर्णायक मोड़ पर है। यह लड़ाई न केवल हथियारों से, बल्कि साहस, एकता और सच्चाई से जीती जाएगी।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)