राज्यसभा में मीनाक्षी जैन का चयन: संस्कृति और विद्वत्ता को सम्मान
[राज्यसभा में नामित सांसदों का चयन: संस्कृति, न्याय और कूटनीति का संगम]
भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को स्वदेशी दृष्टिकोण से पुनर्जनन देने वाली एक प्रख्यात इतिहासकार, जिन्होंने अपने गहन शोध और तथ्यपरक लेखन से भारतीय इतिहास लेखन को नया आयाम दिया, वह हैं डॉ. मीनाक्षी जैन। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 80(1)(क) के खंड (3) के तहत उन्हें राज्यसभा के लिए नामित कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवा जैसे क्षेत्रों में असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों को उच्च सदन में नामित करने की शक्ति प्रदान करता है। मीनाक्षी जैन के साथ-साथ वरिष्ठ सरकारी वकील उज्ज्वल देवराव निकम, केरल के सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् सी. सदानंदन मास्ते, और पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला को भी इस सम्मान के लिए चुना गया है। यह नामांकन पूर्व में नामित सदस्यों की सेवानिवृत्ति से खाली हुई सीटों को भरने के लिए किया गया है। मीनाक्षी जैन का यह चयन न केवल उनके व्यक्तिगत योगदान को सम्मानित करता है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति को वैश्विक मंच पर सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मीनाक्षी जैन ने भारतीय इतिहास लेखन को एक ऐसी दृष्टि प्रदान की है, जो औपनिवेशिक और एकांगी दृष्टिकोण से परे जाकर भारतीय सभ्यता के गौरव को पुनःस्थापित करती है। दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी प्राप्त करने वाली मीनाक्षी जैन ने गार्गी कॉलेज में इतिहास की सहायक और बाद में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर), नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। 2020 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो उनके शोध और सांस्कृतिक योगदान का सर्वोच्च सम्मान है। उनका शोध मध्यकालीन और औपनिवेशिक भारत पर केंद्रित रहा है, जिसमें धार्मिक-सांस्कृतिक विकास और सामाजिक परिवर्तनों का गहन विश्लेषण शामिल है।
उनकी लेखन शैली तथ्यों, पुरातात्विक साक्ष्यों और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित है, जो भारतीय इतिहास को एक स्वदेशी परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुत करती है। उनकी पुस्तक राम और अयोध्या (2013), अयोध्या विवाद के ऐतिहासिक और पुरातात्विक पहलुओं को उजागर करती है। यह पुस्तक श्रीराम के ऐतिहासिक अस्तित्व और अयोध्या के धार्मिक महत्व को प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करती है, जो इस जटिल मुद्दे पर तथ्यपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करती है। उनकी एक अन्य कृति, राम के लिए संघर्ष: अयोध्या में मंदिर का मामला (2017), अयोध्या विवाद से जुड़े दस्तावेजों और अदालती साक्ष्यों का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
देवताओं का पलायन और मंदिरों का पुनर्जन्म (2019), भारतीय मंदिरों के विध्वंस, मूर्तियों की चोरी और उनके पुनर्निर्माण की कहानी को बयान करती है। यह पुस्तक मंदिरों के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को रेखांकित करती है, साथ ही यह दर्शाती है कि कैसे श्रद्धालुओं ने हर संकट में अपनी आस्था को संरक्षित किया। मीनाक्षी जैन ने मंदिर महात्म्य, शिलालेखों, वंशावलियों और विदेशी यात्रियों के लेखों का उपयोग कर इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति की निरंतरता को जीवंत किया है। उनकी पुस्तक सती: ईसाई प्रचारक, बैपटिस्ट मिशनरी और उपनिवेशकालीन विमर्श में बदलाव (2016) सती प्रथा के औपनिवेशिक काल में विकास और इसके पीछे की धार्मिक व राजनीतिक गतिशीलता का विश्लेषण करती है। यह पुस्तक औपनिवेशिक दृष्टिकोण और भारतीय समाज के बीच टकराव को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
मीनाक्षी जैन ने समानांतर रास्ते: हिन्दू-मुस्लिम संबंधों पर निबंध (2010) में 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान हिन्दू-मुस्लिम संबंधों की जटिलताओं को उजागर किया। यह पुस्तक सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर्क्रियाओं के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत करती है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दि इंडिया दे सॉ नामक तीन खंडों वाली पुस्तक का संपादन किया, जो विदेशी यात्रियों के दृष्टिकोण से भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक छवि को प्रस्तुत करती है। यह कार्य भारत को वैश्विक संदर्भ में समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।
डॉ. मीनाक्षी जैन ने भारतीय सभ्यता की मूर्ति पूजा और मंदिर परंपराओं पर गहन और प्रेरक व्याख्यान देकर अपनी विद्वता का लोहा मनवाया है। उनके एक व्याख्यान में मूर्ति पूजा की उत्पत्ति और इसके सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया गया, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और मथुरा जैसे क्षेत्रों से पहली शताब्दी ईसा पूर्व के पुरातात्विक साक्ष्यों को प्रस्तुत कर भारतीय सभ्यता की प्राचीनता और गहराई को उजागर किया। उनके दूसरे व्याख्यान में मल्तान से केरल तक आस्था के प्रतीकों को संरक्षित करने के ऐतिहासिक प्रयासों की जीवंत कहानी बयान की गई, जो श्रद्धालुओं की दृढ़ता और सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाती है। ये व्याख्यान भारतीय संस्कृति की लचीलापन और अटूट भावना को शक्तिशाली ढंग से प्रदर्शित करते हैं।
मीनाक्षी जैन का राज्यसभा के लिए नामांकन उनके अकादमिक और सांस्कृतिक योगदान का सम्मान है। उनके साथ नामित अन्य व्यक्तियों—उज्ज्वल देवराव निकम, जिन्होंने 26/11 मुंबई आतंकी हमले जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में अभियोजन पक्ष का नेतृत्व किया; सी. सदानंदन मास्ते, जिन्होंने केरल के वंचित समुदायों के उत्थान के लिए शिक्षा और सामाजिक सेवा में योगदान दिया; और हर्षवर्धन श्रृंगला, जिन्होंने अपनी कूटनीतिक सेवाओं से भारत की वैश्विक छवि को मजबूत किया—ने अपने-अपने क्षेत्रों में असाधारण कार्य किया है। ये नामांकन संविधान के अनुच्छेद 80(1)(क) के तहत किए गए हैं, जो राष्ट्रपति को 12 व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार देता है। यह प्रक्रिया उन सीटों को भरने के लिए है, जो पूर्व में नामित सदस्यों की सेवानिवृत्ति के कारण खाली हुई थीं।
मीनाक्षी जैन की राज्यसभा में उपस्थिति भारतीय इतिहास, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित नीतिगत चर्चाओं को नई गहराई प्रदान करेगी। उनकी विद्वता और तथ्यपरक दृष्टिकोण संसद में उन मुद्दों पर संतुलित विमर्श को बढ़ावा देगा, जो भारतीय सभ्यता के गौरव को पुनर्जनन देने से जुड़े हैं। उनका शोध आधारित दृष्टिकोण शिक्षा, संस्कृति और पुरातत्व के क्षेत्र में नीति निर्माण में एक नया आयाम जोड़ेगा। अन्य नामित व्यक्तियों के साथ मिलकर, वह संसद में एक ऐसा मंच तैयार करेंगी, जो भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करेगा।
मीनाक्षी जैन का यह सफर—एक इतिहासकार से लेकर संसद के उच्च सदन तक—भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को महत्व देने का प्रतीक है। उनकी पुस्तकें, व्याख्यान और शोध कार्य भारतीय इतिहास को एक नई दृष्टि से देखने की प्रेरणा देते हैं। यह नामांकन भारतीय समाज को यह संदेश देता है कि तथ्यपूर्ण और स्वदेशी दृष्टिकोण को अपनाकर हम अपनी सभ्यता के गौरव को पुनःस्थापित कर सकते हैं। मीनाक्षी जैन की उपस्थिति राज्यसभा में निश्चित रूप से भारतीय नीतियों और विमर्श को एक नई दिशा देगी, जो आने वाले वर्षों में देश के सांस्कृतिक और बौद्धिक परिदृश्य को और समृद्ध करेगी।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)