काव्य :
चूल्हे का तवा
एक जमाना वो भी था, चूल्हे पर तवा हंँसता था।
वो करिश्मा देखने को तो हमारा मन तरसता था।
जब भी देखते माँ को पूछते अब क्या होने वाला है।
माँ कहती थी कुछ नहीं बेटा, कोई मेहमान आने वाला है।
सारे घर में साफ सफाई, परिवार में हर्ष छा जाता था।
मानो या ना मानो सही में कोई मेहमान आ ही जाता था।
जब से तवा लगा गैस के चूल्हे पर चढ़ने,
तब से तवों का हंँसना बंद हो गया।
आप मानो या ना मानो कहता मुथा,
तब से मेहमानों का आना भी चंद हो गया।
- कवि छगनलाल मुथा-सान्डेराव
मुम्बई
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