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प्रेम की कोई उम्र नहीं होती, प्रेम के पल होते हैं -- नामिता सुंदर लखनऊ-


 

प्रेम की कोई उम्र नहीं होती, प्रेम के पल होते हैं

प्रेम की कोई उम्र नहीं होती, प्रेम के पल होते हैं, यह एक स्थापित सत्य है। 

उम्र को यदि हम समय और अवधि से जोड़े  तो सचमुच प्रेम की कोई उम्र नहीं होती। वह  काल और समय की सीमा से परे होता है। संकुचन प्रेम को स्वीकार नहीं होता है। व्यापकता ही प्रेम का सार है। अब देखिए न राधा कृष्ण का प्रेम,  न जाने  कब से हम उन्हें पूजते हैं  और पूजते हैं उनके प्रेम को। युग परिवर्तित हो गया लेकिन प्रेम का यह आध्यात्मिक, स्वार्गिक सुख का स्वरूप हमारे लिए आज भी पूजनीय है।

चलिए, दैवीय प्रेम से उतरकर हम मानवीय प्रेम की श्रेणी पर आते हैं। सीरी फरहाद हों, लैला मंजनू हो, व्यक्तियों का अस्तित्व काल के गाल में समा गया किंतु उनका प्रेम, संपूर्ण समर्पण वाला प्रेम उसकी तो अजस्र धार आज तक कल कल प्रवाहित हो रही है।

हम भूले हैं क्या पन्नाधाय के राष्ट्र प्रेम को और ऐसे प्रेम के हर स्वरूप के अनगिनत दृष्टांत हमारे बीच में है जिन्हें न समय का परिवर्तन मिटा पाया है और न ही हमारी बदलती मानसिक और सामाजिक परिस्थितियां। तो यह तो सच है की प्रेम को समय सीमा और उम्र के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है।

 अब बात करते हैं प्रेम में पल होते हैं। बिल्कुल सही बात है हर वह पल जो प्रेम में डूब कर जिया जाता है वह एक उम्र से बड़ा होता है। प्रेम संबंधों का हो, ईश्वर से हो ,प्रकृति से हो, हर वह प्रेमिल क्षण जिसे हम अनुभूति के स्तर पर डूब कर जीते हैं ,वह समय के स्तर पर गुजर भी जाए तो भी हमारे भीतर हमेशा के लिए जीवित रहता है।

प्रेम संबंध एक सा होने पर भी हर पल उसकी अनुभूति में कुछ न कुछ अलग सा होता है। अब देखिए ना, दृष्टि के इस छोर से उस छोर तक के आदान-प्रदान में एक जो जुगनू सा चमक जाता है मन में, वह प्रेम का एक पल है और उसकी अनुभूति हमारे भीतर अलग से भाव जागती है। हम एक दूसरे के साथ मौन में लिपटे, बिना एक शब्द बोले किसी बहती धार के तीर या किसी पहाड़ी पर बैठे होते हैं, तो उस पल जो प्रेम जी रहे होते हैं वह पहले वाले पल के प्रेम से अलग अनुभूति देता है। और ऐसी ही अलग-अलग अनुभूतियों के बहुत से प्रेमपरक पल हम जीते हैं मात्र मनुष्यों के साथ ही नहीं प्रकृति और ईश्वर के साथ भी।

पल का यथार्थ पल की वा - स्तविकता किसी लंबी अवधि के यथार्थ और वास्तविकता से कमजोर नहीं होती है। तो हमारा कहना है की हर दिन, हर पल प्रेम में डूब कर जिया जाए फिर वह सवेरे5 उगता सूरज हो, थाली में अपनी पसंद  का भोजन, छोटे बच्चों की मुस्कानें हों या अनमोल सा साथ, कभी हाथों में हाथ डालने वाला और कभी स्मृतियों में संजोया हुआ।

हर पल, हर स्थिति में प्रेम जीने की कला सीखनी है हमें क्योंकि विनाश भी मिट जाता है एक दिन जिंदा रहता है तो केवल प्रेम।

- नामिता सुंदर

लखनऊ उत्तरप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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