काव्य :
/ग़ज़ल/आशिक़ मिज़ाज हैं
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वो कह रहे तो मान ही लेते हैं आज हम|
वरना तो सख़्त रखते हैं ख़ुद का मिज़ाज हम|
दिल खोल आशिक़ी करें ये दिल का मामला,
आशिक़ मिज़ाज हैं न कोई चालबाज़ हम|
देते पनाह इश्क़ में जिसको भी हम कभी,
उसके लिए मियाद से करते रियाज़ हम|
हद पार करने पर भी उसके बेख़बर रहे ,
इंसानियत का आख़िरी रखते लिहाज़ हम|
फुटपाथ में रहा मगर वो है अमीर अब,
कितना छुपाये जानते सब हैं वो राज हम|
क्यो कर मुसाफ़िरों में होती जंग भी मगर,
जाते सभी न कोई कहता जाएं आज हम|
तौहीन हर कोई मेरी करता रहा मगर,
करते हैं चोट जैसे कोई हों भी साज हम|
मानिन्द आदमी के ही रहना मुफ़ीद है,
आदम कोई भी हो गिराते हैं न गाज़ हम|
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प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल मध्यप्रदेश
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