काव्य :
ग़ज़ल
मैं छुपाता नहीं कमी अपनी।
हार अपनी है जीत भी अपनी।
अपना फरचम ज़रा उठा ऊँचा,
मत दिखा यार बेबसी अपनी।
तीरगी में नहीं कोई रहता,
चाहते सब हैं रौशनी अपनी।
सचसमीक्षा न हारकी मुमकिन,
कौन कहता भला कमी अपनी।
हो गया एक बार फिर आउट,
रोक पाया न हड़बड़ी अपनी।
मुझकोभाती नहीं ज़रा जगमग,
जग में मशहूर सादगी अपनी।
उसकोज़ाहिद सेकुछनहीं लेना,
उसकीजारी हैमयकशी अपनी।
- हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
मीरपुर, कैण्ट, कानपुर -208004
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