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मध्यप्रदेश से उठी आवाज़ – नारी को मिली नई परवाज़ -प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी

 


मध्यप्रदेश से उठी आवाज़ – नारी को मिली नई परवाज़

[मध्यप्रदेश का संकल्प: हर घड़ी में नारी का साथ]

          मध्यप्रदेश सरकार ने एक क्रांतिकारी और दूरदर्शी कदम उठाते हुए महिलाओं और युवतियों के लिए रात की पाली में कार्य करने के द्वार खोल दिए हैं। यह निर्णय न केवल लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक छलांग है, बल्कि यह भारत के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को नया आकार देने का एक साहसिक संकल्प भी है। मध्यप्रदेश दुकान एवं स्थापना अधिनियम, 1958 और कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत यह अनुमति प्रदान की गई है, जिसके तहत महिलाएं कारखानों में रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक और दुकानों तथा वाणिज्यिक संस्थानों में रात 9 बजे से सुबह 7 बजे तक अपनी प्रतिभा और परिश्रम का परचम लहरा सकेंगी। मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में लिया गया यह फैसला नारी सशक्तीकरण का एक चमकता सितारा है, जो यह सिद्ध करता है कि महिलाएं किसी भी समय, किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के विकास में योगदान दे सकती हैं। यह कदम न केवल मध्यप्रदेश की प्रगतिशील सोच को उजागर करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि भारत की नारी शक्ति अब हर चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

यह निर्णय उन असंख्य महिलाओं के लिए एक स्वर्णिम अवसर है, जो आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की राह पर चलना चाहती हैं। आज का युग, जब वैश्वीकरण और डिजिटल क्रांति ने 24x7 कार्य संस्कृति को जन्म दिया है, महिलाओं को रात की पाली में कार्य करने की अनुमति एक ऐसी मशाल है, जो उनके लिए उन क्षेत्रों को रोशन करती है, जो पहले समय की बंदिशों के कारण दुर्गम थे। सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवाएं, आतिथ्य, और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में रात की पाली की मांग बढ़ रही है। मध्यप्रदेश सरकार का यह कदम इन क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा, जिससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था भी सशक्त होगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर मात्र 37% है, जो पुरुषों की तुलना में काफी कम है। मध्यप्रदेश का यह कदम इस अंतर को पाटने की दिशा में एक ठोस प्रयास है, जो नारी शक्ति को आर्थिक मुख्यधारा में लाने का एक शानदार उदाहरण है।

इस निर्णय की सबसे प्रशंसनीय बात यह है कि इसे लागू करने में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। सरकार ने सख्त नियमों और शर्तों के साथ यह सुनिश्चित किया है कि कार्यस्थल पर महिलाएं न केवल सुरक्षित रहें, बल्कि सम्मान और आत्मविश्वास के साथ कार्य कर सकें। कारखानों और वाणिज्यिक संस्थानों में रात की पाली में काम करने के लिए नियोजकों को महिलाओं की लिखित सहमति लेना अनिवार्य है, और कम से कम पांच महिलाओं के समूह में ही उन्हें कार्य पर लगाया जा सकेगा। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि महिलाएं एकजुटता और आत्मविश्वास के साथ कार्य करें। लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम, 2013 का पूर्ण पालन, सुरक्षित कार्य वातावरण, शौचालय, वॉशरूम, पेयजल, और विश्राम कक्ष जैसी मूलभूत सुविधाएं अनिवार्य की गई हैं। सुपरवाइजरी स्टाफ का एक-तिहाई हिस्सा महिलाओं का होना और महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती जैसे कदम यह दर्शाते हैं कि सरकार ने सुरक्षा के हर पहलू पर गहन विचार किया है। ये उपाय न केवल महिलाओं को आत्मविश्वास प्रदान करते हैं, बल्कि नियोजकों को भी जवाबदेही का महत्व समझाते हैं।

हालांकि, इस प्रगतिशील कदम के साथ कुछ सावधानियों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती है। नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन और उनकी निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना समय की मांग है। नियमित निरीक्षण, त्वरित शिकायत निवारण प्रणाली, और पारदर्शी जवाबदेही सुनिश्चित करना होगा, ताकि किसी भी प्रकार की अनियमितता या उत्पीड़न की स्थिति में तुरंत कार्रवाई हो सके। रात की पाली का स्वास्थ्य पर प्रभाव, जैसे नींद की कमी, मानसिक तनाव, और शारीरिक थकान, भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। नियोजकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को पर्याप्त विश्राम समय, स्वास्थ्य सुविधाएं, और सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था उपलब्ध हो। विशेष रूप से, रात के समय सुरक्षित आवागमन की व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

मध्यप्रदेश का यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणादायी मॉडल है। भारत के प्रत्येक राज्य को ऐसी नीतियां अपनानी चाहिए, जो महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और सम्मान को प्राथमिकता दें। कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही कुछ क्षेत्रों में रात की पाली में महिलाओं को कार्य करने की अनुमति दी है, और उनके अनुभवों से सीखकर अन्य राज्य इस दिशा में और प्रभावी कदम उठा सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक समान नीति का निर्माण, जो राज्यों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार लचीलापन प्रदान करे, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह नीति न केवल महिलाओं को आर्थिक अवसर प्रदान करेगी, बल्कि सामाजिक स्तर पर लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने में भी मदद करेगी।

इस निर्णय का सामाजिक प्रभाव भी गहरा और दूरगामी होगा। जब महिलाएं रात की पाली में आत्मविश्वास के साथ कार्य करती दिखेंगी, तो यह समाज के लिए एक शक्तिशाली संदेश होगा कि नारी शक्ति किसी भी समय और किसी भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकती है। यह युवा लड़कियों के लिए एक प्रेरणा बनेगा, जो अपने करियर में बड़े सपने देखती हैं। साथ ही, यह परिवारों और समुदायों में महिलाओं के प्रति सम्मान और विश्वास को और मजबूत करेगा। यह कदम सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा, जो लैंगिक समानता की नींव को और मजबूत करेगा।

मध्यप्रदेश सरकार की इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी गंभीरता और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाता है। सरकार को चाहिए कि वह इस नीति की नियमित समीक्षा करे, महिलाओं, नियोजकों, और श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखे, और कार्यस्थल पर सुरक्षा और सुविधाओं के मानकों को कड़ाई से लागू करे। इसके साथ ही, महिलाओं को उनके अधिकारों और इस नीति के तहत उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाने चाहिए। यदि यह नीति प्रभावी ढंग से लागू हुई, तो यह मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक मिसाल बनेगी।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मध्यप्रदेश सरकार का यह निर्णय नारी शक्ति के सम्मान और सशक्तीकरण का एक अनुपम प्रतीक है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में लिया गया यह कदम न केवल प्रगतिशील है, बल्कि यह एक ऐसी मशाल है, जो भारत के हर कोने में नारी सशक्तीकरण की रोशनी फैलाने की क्षमता रखती है। यह नीति महिलाओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी, बशर्ते इसे सावधानी, जवाबदेही, और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए। भारत के हर राज्य को इस प्रेरणा को अपनाना चाहिए, ताकि हमारी नारी शक्ति न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो, बल्कि समाज में अपनी पूरी क्षमता के साथ एक नया इतिहास रचे। यह कदम मध्यप्रदेश से शुरू होकर पूरे देश में एक क्रांति का सूत्रपात करेगा, जो नारी शक्ति को नई दिशा और दृष्टि प्रदान करेगा।

 - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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