काव्य :
स्पंदन
खग के पर, कर कर, स्पंदन
पहुंचा देते उसे,उच्च गगन
जीवन ,हो जाता है ,लयमय
तब लगता है,जीवित है,जीवन
तारों में होता,जब स्पंदन
वीणा करती ,संगीत सृजन
कानों में अनुगुंजित होते हैं,स्वर
तब लगता है,जीवित है,जीवन
मठ की घंटियों का ,कंपन
लहराता सा उनमें,स्पंदन
भक्ति धार ,बह जाती अविरल
तब लगता है,जीवित है जीवन
देखकर ,दुर्बल होंठो का कंपन
हृदयों में, जगे करुणा का स्पंदन
मानवता तब हो जाती, विजयी
ब्रज,तब लगता है,जीवित है जीवन
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र ,भोपाल
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