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सिंधी समाज की शीतला सप्तमी थदड़ी पर्व 15 अगस्त को : समाजजन देवीय प्रकोप की शांति हेतु मनाते हैं पर्व


सिंधी समाज की शीतला सप्तमी थदड़ी पर्व 15 अगस्त को : समाजजन देवीय प्रकोप की शांति हेतु मनाते हैं पर्व

खंडवा। सभी धर्मों के कुछ विशेष त्यौहार एवं पर्व होते हैं, जिन्हें संबंधित समुदाय मनाता है। ऐसा ही सिंधी समाज का एक प्रमुख त्यौहार समाजजनों द्वारा शुक्रवार 15 अगस्त को थदड़ी पर्व के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सिंधी समुदाय पूर्व संध्या पर बनाया गया भोजन ग्रहण करेंगे। जिसे दैवीय प्रकोप से जोड़कर देखा जाता है। यह जानकारी देते हुए राष्ट्रीय सिंधी समाज प्रदेश प्रवक्ता निर्मल मंगवानी ने बताया कि थदड़ी का हिंदी अर्थ है शीतल। रक्षाबंधन के आठवें दिन थदड़ी पर्व को शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन सिंधी समुदाय पूर्व संध्या पर बनाया गया भोजन ग्रहण करते हैं। यह सत्य है कि समय-समय पर मनाये जाने वाले धार्मिक तीज त्योहारों से ही हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं एवं सामाजिकता भी कायम रहती है। पुरातन काल में सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो की खुदाई के दौरान अनेक वस्तुओं के साथ ही शीतला माता की मूर्ति भी प्राप्त हुई थी, इससे यह सिद्ध होता है कि आदि काल से ही माता शीतला की पूजा-अर्चना समाज द्वारा होती रही है। थदड़ी सिन्धु सभ्यता और संस्कृति का प्रमुख पर्व है, इस दिन समाज के लोग पूर्व संध्या पर बनाये गये ठंडे व्यंजन ही खाएंगे। समाज के पंडित श्याम शर्मा एवं धर्मेंद्र शर्मा ने पर्व के महत्व का बखान करते हुए बताया कि प्राकृतिक आपदाओं में समुद्री तूफान को जल देवता के प्रकोप, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इंद्र देवता की नाराजगी मानी जाती है, इसी तरह जब किसी व्यक्ति को माता (चेचक) निकलती है तो उसे देवी के प्रकोप से जोड़ा जाता है। आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि माता चेचक के इंजेक्शन बचपन में ही लग जाते हैं। परंतु देवीय शक्ति से जुड़ा थदड़ी पर्व हजारों वर्षों पश्चात भी समाज का प्रमुख त्यौहार माना जाकर पूर्ण आस्था और विश्वास से मनाया जाता है। इस मौके पर पूर्व संध्या पर विभिन्न तरह के सिंधी व्यंजन जैसे मिठी और बेसणजी कोकी, गच्च, पकौड़ा, आलू भिंडी की सब्जी एवं दही, छाछ, दही रायता जैसे सूखी सब्जियां बनाया जा कर थदड़ी के दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ माता को अपने प्रकोप से बचाने की कामना के साथ ग्रहण किया जाता है। इस दिन प्रातः काल समाज की महिलाओं व्दारा ब्राह्मण के घर जाकर शीतला माता की पूजा अर्चना के दौरान माताजी को इन पंक्तियों से प्रसन्न किया जाता है, ठार माता ठार पहिंजे बचड़न खे ठार, माता अगे भी ठारियो थई हाडे भी ठार....। पूजन पश्चात घर आकर परिवार सहित भोजन ग्रहण करती है।

चित्र-पर्व पर समाजजनों व्दारा बनाये जाने वाली प्रसादी के रूप में गच्च, कोकी।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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