काव्य :
सुनो बुद्ध
सुनो बुद्ध
अभी दीप नहीं जले
तुम तो अंधेरे में जाते हो ना
मैं दीप बनकर राह दिखा दूंगी
कहीं कुछ चुभ ना जाए
तुम्हारे पांवों में
आज तुम चोरी से ना जाना
कोई घुटन ना रखना अंदर
छोड़ आई आज उन्हें
सिद्धि प्राप्त करने वाले
सिद्धार्थ को
लेकिन
कुछ जीवंत सा हो उठता है
बरसों बाद भी
कोई
अतीत का टुकड़ा
बन के याद
यूं ही कभी चुभता सा है अंदर किसी कोने में
- मिष्टी गोस्वामी , दिल्ली
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