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राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस: एक राष्ट्र की आकांक्षाओं का उत्सव - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 [प्रसंगवश – 23 अगस्त: राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस]

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस: एक राष्ट्र की आकांक्षाओं का उत्सव

[चंद्रयान-3: असफलता से सफलता की सीढ़ी तक]

       23 अगस्त का सूरज जब उगा, तो वह सिर्फ़ एक दिन को नहीं, बल्कि एक युग को रोशन कर गया। यह तारीख अब केवल कागज़ पर नहीं, बल्कि हर भारतीय के हृदय पर अंकित हो चुकी है। चंद्रयान-3 की लैंडिंग ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर न केवल भारत का झंडा गाड़ा, बल्कि मानवता की आकांक्षाओं को एक नया आकाश दिया। यह क्षण वह नहीं था जब मशीनें चाँद की मिट्टी पर उतरीं; यह वह पल था जब एक राष्ट्र ने अपनी आत्मा को तारों के पार भेजा। यह दिन, राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस, विज्ञान की जीत से कहीं बढ़कर है—यह सपनों का उत्सव है, जो असफलताओं की राख से फीनिक्स की तरह उभरे।

जब चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की अनछुई सतह को स्पर्श किया, तो उसने न केवल वैज्ञानिक इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षर अंकित किए, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति का सूत्रपात किया। चंद्रयान-2 की असफलता को विश्व ने पराजय माना, पर भारत ने उसे एक प्रेरणा बनाया। इसरो के वैज्ञानिकों ने उस ठोकर को सीढ़ी में ढाला, और सिद्ध कर दिखाया कि असफलता अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का संदेश है। यह भारतीय दर्शन की वह शक्ति है, जो टूटे को जोड़ती है और असंभव को संभव बनाती है। 23 अगस्त 2023 को, जब विक्रम लैंडर ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखा, तो वह केवल एक मिशन की जीत नहीं थी—यह एक प्राचीन सभ्यता की उस अटल मान्यता की विजय थी, जो कहती है कि असंभव महज एक शब्द है, और सपने सितारों तक ले जाते हैं।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का असली महत्व इसकी वैज्ञानिक उपलब्धि में नहीं, बल्कि इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव में है। जब एक ग्रामीण स्कूल का बच्चा रात को तारों की ओर देखता है और यह सोचता है कि उसका देश उन तारों तक पहुँच चुका है, तो उसके मन में एक नया विश्वास जन्म लेता है। यह विश्वास केवल अंतरिक्ष तक सीमित नहीं है; यह उसे जीवन की हर चुनौती को पार करने की प्रेरणा देता है। इसरो की यह उपलब्धि सिर्फ़ डेटा और तकनीक की बात नहीं करती; यह हर उस व्यक्ति की कहानी कहती है जो अपने छोटे से गाँव में बड़े सपने देखता है।

चंद्रयान-3 की लागत को देखें तो यह आश्चर्यजनक है। नासा के मिशनों के सामने भारत का यह मिशन एक छोटे से बजट में रचा गया चमत्कार था। इसरो ने लगभग 615 करोड़ रुपये (लगभग 74 मिलियन डॉलर) में यह मिशन पूरा किया, जो कि हॉलीवुड की एक औसत ब्लॉकबस्टर फिल्म के बजट से भी कम है। फिर भी, इस मिशन ने न केवल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की अनछुई मिट्टी पर कदम रखा, बल्कि भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल किया, जिन्होंने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की है। यह सिद्ध करता है कि भारत की ताकत उसके संसाधनों में नहीं, बल्कि उसके संकल्प में है। यह वही देश है जो मंगल पर भी कम बजट में मंगलयान भेज चुका है, जिसकी लागत (450 करोड़ रुपये) भी कई देशों के अंतरिक्ष मिशनों की तुलना में नगण्य थी।

23 अगस्त का उत्सव केवल वैज्ञानिकों का नहीं है। यह उन गुमनाम नायकों का भी उत्सव है जो पर्दे के पीछे काम करते हैं। वे इंजीनियर, जो रात-रात भर डेटा विश्लेषण करते हैं। वे तकनीशियन, जो एक-एक तार को जोड़ते हैं। और वे परिवार, जो अपने प्रियजनों की अनुपस्थिति को सहते हैं ताकि देश का नाम आकाश में चमके। जब इसरो के नियंत्रण कक्ष में तालियों की गूंज उठी, तो वह सिर्फ़ एक लैंडर की सफलता की गूंज नहीं थी; वह उन अनगिनत बलिदानों की आवाज़ थी जो इस मिशन को साकार करने में लगे।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ की खोज ने न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान को नई दिशा दी, बल्कि मानवता के भविष्य के लिए एक नई संभावना खोली। इसरो के प्रज्ञान रोवर ने चंद्र सतह पर सल्फर और ऑक्सीजन जैसे तत्वों की उपस्थिति की पुष्टि की, जो भविष्य में चंद्रमा पर मानव बस्तियाँ स्थापित करने की दिशा में एक कदम है। यह खोज केवल वैज्ञानिक डेटा नहीं है; यह एक संदेश है कि अंतरिक्ष अब केवल दूर की कौतूहल भरी दुनिया नहीं, बल्कि मानव सभ्यता का अगला पड़ाव हो सकता है।

यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल तकनीक का प्रदर्शन नहीं है; यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का विस्तार है। जिस सभ्यता ने वेदों में तारों की गणना की, जिसने आर्यभट्ट के ज़रिए खगोलशास्त्र को नई ऊँचाइयाँ दीं, उसी सभ्यता ने आज चंद्रमा पर अपनी छाप छोड़ी है। यह संयोग नहीं है कि चंद्रयान-3 का लैंडर “विक्रम” और रोवर “प्रज्ञान” कहलाया। ये नाम हमारी प्राचीन बुद्धिमत्ता और आधुनिक महत्वाकांक्षा का संगम हैं।

23 अगस्त हमें यह भी सिखाता है कि अंतरिक्ष की खोज केवल प्रतिस्पर्धा का मैदान नहीं है। जहाँ अमेरिका और सोवियत संघ ने शीत युद्ध के दौरान अंतरिक्ष को अपनी शक्ति का प्रतीक बनाया, भारत ने इसे मानवता की साझा विरासत के रूप में देखा। चंद्रयान-3 का मिशन केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों में बड़े सपने देखते हैं। यह मिशन वैश्विक सहयोग का निमंत्रण है, न कि प्रतिद्वंद्विता का।

इस दिन का उत्सव केवल अतीत की उपलब्धि का जश्न नहीं है; यह भविष्य के लिए एक सवाल भी है। हमारा अगला कदम क्या होगा? क्या हम मंगल पर जीवन की खोज करेंगे? क्या हम सौरमंडल से बाहर की सैर करेंगे? या फिर, क्या हम अंतरिक्ष की खोज को धरती के संकटों—जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट, भूख—का हल बनाएँगे? नेशनल स्पेस डे हमें यही चुनौती देता है—सपने देखने की, और उन सपनों को हकीकत में बदलने की।

23 अगस्त हमें यह सिखाता है कि सीमाएँ केवल मन की बेड़ियाँ हैं। जब एक राष्ट्र अपनी कल्पनाओं को ब्रह्मांड की असीम ऊँचाइयों तक उड़ान देता है, तो वह न केवल चंद्रमा पर अपने कदमों की छाप छोड़ता है, बल्कि अपनी नियति को तारों की स्याही से नवीन रंग देता है। यह दिन हर भारतीय के हृदय में यह अटूट विश्वास जागृत करता है कि हमारी मंज़िलें सितारों में बसी हैं, और हमारा पथ अडिग संकल्प की ज्योति से प्रकाशित है।

  - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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