नागेश्वर ज्योर्तिलिंग अनुठा और अदभुत है - पं. विनोद दुबे
इटारसी । सावन मास के अवसर पर पूरे भारत में भगवान शिव माता पार्वती और उनके नंदी तथा गणेश, कार्तिकेय का पूजन होता है लेकिन अभिषेक भगवान शंकर का होता है।
वर्षाकाल के चार मास के चर्तुमास में भगवान शिव प्रसन्न दिखाई देते है। उनके गणो, यक्षो, गंधवो किन्नरो और मनुष्य को सेवा का विशेष फल मिलता है।
उक्त उदगार पं. विनोद दुबे ने गुजरात में स्थित श्री नागेश्वर ज्योर्तिलिंग निर्माण और अभिषेक के अवसर पर व्यक्त किए। श्री नागनाथ की लिंग मूर्ति छोटे गर्भ गृह में रखी हुई। यहॉ महादेवी के सामने नंदी नहीं है। गर्भगृह के पीछे नदी का मंदिर अलग से है।
श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में द्वादश पार्थिव ज्योर्तिलिंग का पूजन,अभिषेक एवं एक लाख रूद्रि निर्माण चल रहा है। जिसके तहत शनिवार को नागेश्वर ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक मुख्य यजमान सुनील किरण दुबे ने किया। इस स्थान की विशेषता यह है कि प्रति बारह वर्ष बाद कपिलाष्टमी के समय कुंड में काशी की गंगा का पदार्पण होता है और उस समय कुंड का पानी बिल्कुल निर्मल रहता है। ओंरगजेब ने कई बार इस मंदिर को तोड़ने के प्रयास किए थे लेकिन बार-बार उसे निराशा ही हाथ लगी और वह सैनिको सहित वापिस गया। नागेश्वर ज्योर्तिलिंग स्थान से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव जी महाराज के जुड़े रहने का प्रमाण भी मिलता है।
एक बार नामदेव जी महाराज ज्योर्तिलिंग के सामने भजन करना चाह रहे थे उन्होने भजन शुरू किए तो वहां मौजूद ब्राम्हण जो रूद्री पाठ कर रहे है उनको व्यवधान हुआ और उन्होने नामदेव जी से कहा कि वे मंदिर के दूसरी तरफ जाकर भजन कर ले। नामदेव जी मंदिर के दूसरी तरफ चल गये। लेकिन इसी बीच एक चमत्कार हुआ और मंदिर ही नामदेव जी की और घूम गया। भगवान शंकर के सम्मुख नामदेव जी भजन सुनाने लगे। ब्राम्हण लज्जित हुए और नामदेव जी से माफी मांगी।
नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के संदर्भ में पं. विनोद दुबे ने कहा कि दक्ष प्रजापति ने अश्वमेघ करवाते समय अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था, पार्वती जब अपने पति शिवजी के मना करने के बाद भी अपने पिता दक्ष के यहां पहुंची और उन्हांने वहां देखा उनके पति भगवान शंकर का स्थान अन्य देवताओं के साथ नहीं है तब वे क्रोधाग्नि में जली और अपने शरीर की आहुति दे दी। भगवान शंकर इस बात से अत्यंत दुखी हुए और अमर्दक नाम की एक विशाल झील के तट पर आकर रहने लगे, भगवान शंकर ने यहां पर अपने शरीर को भस्म कर डाला, कुछ समय बाद वनवासी पाण्डवों ने उस अमर्दक झील के परिसर में अपना आश्रम बनाया उनकी गाय पानी पीने के लिए झील पर आती थी, पानी पीने के उपरांत वे अपने स्तन से दुग्ध धाराए बहाकर झील में अर्पित करती थी,
पं. विनोद दुबे ने कहा कि एक दिन भीम ने यह चमत्कार देखा और अपने बड़े भाई धर्मराज युधिष्टिर को सारा वृतांत बताया तब धर्मराज युधिष्टिर ने कहा कि निश्चित ही कोई दिव्य देवता निवास कर रहा है फिर पाण्डवों ने झील का पानी हटाना शुरू किया झील के मध्य में पानी इतना गर्म था कि वह उबल रहा था तब भीम ने हाथ में गदा लेकर झील के पानी पर तीन बार प्रहार किया तब पानी तत्काल हट गया उसी समय पानी की जगह भीतर से खून की धाराएं निकलने नगी एवं भगवान शंकर का दिव्य ज्योर्तिलिंग झील की तलहटी पर दिखाई दिया जिसे नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के रूप में स्थापित किया गया। आज भी लाखों श्रद्धालु नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने यहां पर आते है।
ज्योर्तिलिंग पूजन में प्रतिदिन सात पवित्र नदियों का जल एवं अरब सागर का जल अभिषेक हेतु आ रहा है। आचार्य पं. सत्येन्द्र पांडे एवं पं. पीयूष पांडे पूर्ण सहयोग कर रहे है।
रविवार को काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग के पार्थिव स्वरूप की पूजन एवं रूद्राभिषेक किया जायेगा।