काव्य :
पुस्तकें
कभी तुम परेशान हो अकेले हो निरंतर,
चिड़िया के चुनमुन से बच्चे हो गए छूमंतर,
जिनके लिए परेशान से खटते रहे थे तुम,
वे हो गए बड़े जिनमें थे मशगूल जीवनभर।
न आइए अवसाद में जीवन अभी भी बाकी है,
काम अलावा इनके और बहुत भी काफी है,
पुस्तकें तरह तरह की आपको बुलातीं हैं,
ये मित्र हैं ऐसीं जो कभी न रूलाती हैं।
इनमें हैं एहसास, रस, गंध और स्पर्श बहुत से,
दुख सुख राग रंग खयाल हैं बहुत से,
अब खोलिए किताब कोई, इसमें खो जाइए,
पन्नों पै इनके जीवंत पात्र जिंदगी के पाइए।
किताबें इस दुनिया में होती सबसे अच्छी साथी,
न देती वे कष्ट, न अपमान, न छोड़तीं साथ हैं,
बस दोस्त बनकर आपका करती प्रशस्त मार्ग हैं।
ले आइए रुचि की पुस्तकें और पढ़ने की आदत डालिए,
निकलेंगे समाधान भर भर कर परेशानियों के खुश हो जाइए,
समय का सदुपयोग करती हैं पुस्तकें,
जब तक आपने न पढ़ा ये नहीं बोलतीं पुस्तकें,
यूं ही नहीं आपके इंतजार में ये चुप रहतीं हैं पुस्तकें।
- श्रीमती शोभा शर्मा
उपन्यासकार, कहानीकार, कवि, संपादक, आकाशवाणी कलाकार, छतरपुर म.प्र.