ad

परसाई: साहित्य की वह कलम जो सत्ता से कभी नहीं डरी -प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 [प्रसंगवश – 22 अगस्त: हरिशंकर परसाई जयंती]

परसाई: साहित्य की वह कलम जो सत्ता से कभी नहीं डरी

[व्यंग्य के बहाने समाज की विसंगतियों पर चोट]

      हरिशंकर परसाई का नाम हिंदी साहित्य में एक ऐसी धारदार लेखनी के साथ उभरता है, जिसने हँसी के माध्यम से समाज की गहरी खामियों को उजागर किया। उनकी जयंती, 22 अगस्त, केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उस साहित्यिक चेतना को याद करने का अवसर है, जिसने समाज के सामने सच का आईना रखा। परसाई केवल व्यंग्यकार नहीं थे; वे एक संवेदनशील कथाकार, गहरे विचारक और सामाजिक सुधारक भी थे। उनकी रचनाएँ, जैसे वैष्णव की फिसलन, तब की बात और थी, और निठल्ले की डायरी, न केवल पाठकों को हँसाती हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों पर सोचने के लिए मजबूर भी करती हैं। उनकी लेखनी का जादू यह था कि वह आम आदमी की भाषा में लिखी गई, जिससे गाँवों, कस्बों और शहरों के पाठक उनके साथ एक गहरा रिश्ता जोड़ सके।

परसाई का जन्म 22 अगस्त 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमनी गाँव में हुआ। उनका बचपन अभावों और संघर्षों में बीता। पिता का देहांत जल्दी हो गया, और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। इन कठिनाइयों ने परसाई को जीवन की कड़वी सच्चाइयों से कम उम्र में ही रूबरू करा दिया। यह अनुभव उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। उनकी रचनाएँ, जैसे प्रेमचंद के फटे जूते, सामाजिक असमानता, गरीबी और सत्ता के दुरुपयोग पर तीखा प्रहार करती हैं। परसाई की लेखनी में जो तीक्ष्णता और संवेदनशीलता दिखती है, वह उनके जीवन के इन कठिन अनुभवों की देन है। उनकी यह खासियत थी कि वे समाज की कमियों को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करते थे, लेकिन उनकी हर पंक्ति में गहरी पीड़ा और सामाजिक चेतना छिपी होती थी।

परसाई का व्यंग्य केवल हँसाने का साधन नहीं था; वह एक सामाजिक हथियार था। वे कहते थे, व्यंग्य दुख से पैदा होता है। उनकी रचनाओं में यह दुख साफ दिखाई देता है, चाहे वह सत्ता की विसंगतियों पर उनकी तीखी टिप्पणी हो, धार्मिक पाखंड पर उनकी चोट हो, या मध्यवर्गीय जीवन की छोटी-मोटी विडंबनाओं का चित्रण हो। उदाहरण के लिए, उनकी रचना इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर में वे पुलिस और प्रशासन की भ्रष्ट कार्यप्रणाली का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन इस मजाक के पीछे एक गंभीर सवाल छिपा है—क्या हमारा सिस्टम वाकई इतना भ्रष्ट और लापरवाह है? परसाई का यह अंदाज उनकी रचनाओं को समयातीत बनाता है। आज भी, जब हम उनकी रचनाएँ पढ़ते हैं, तो वे उतनी ही प्रासंगिक लगती हैं। नेताओं की वादाखिलाफी, धर्म के नाम पर राजनीति, और भ्रष्टाचार पर उनके व्यंग्य आज के भारत पर भी सटीक बैठते हैं।

परसाई की एक और खासियत थी उनकी सादगी भरी भाषा। वे जटिल शब्दों या विद्वतापूर्ण लेखन से बचते थे। उनकी लेखनी में गाँव-देहात की मिट्टी की सोंधी खुशबू थी, जो आम पाठक को तुरंत अपनी ओर खींच लेती थी। उनकी रचनाएँ, जैसे पूछो परसाई से या शिकायत मुझे भी है, में आम आदमी की भाषा और उसके रोजमर्रा के जीवन की समस्याएँ साफ झलकती हैं। यही कारण है कि परसाई का पाठक वर्ग केवल साहित्यिक हलकों तक सीमित नहीं रहा। उनकी रचनाएँ छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों में भी उतनी ही लोकप्रिय थीं। उनकी यह क्षमता थी कि वे गंभीर मुद्दों को इतने सहज ढंग से पेश करते थे कि पाठक हँसते-हँसते समाज की सच्चाई से रूबरू हो जाता था।

कम लोग जानते हैं कि परसाई ने केवल व्यंग्य ही नहीं लिखा। उन्होंने कहानियाँ, निबंध और आलोचनात्मक लेखन भी किया। उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण मिलता है। इसके अलावा, उन्होंने एक समय अध्यापन और पत्रकारिता भी की। कई अखबारों में उनके कॉलम बेहद लोकप्रिय थे। इन कॉलमों में वे तत्कालीन राजनीति, सामाजिक रूढ़ियों और प्रशासनिक खामियों पर तीखी टिप्पणियाँ करते थे। उनकी लेखनी इतनी प्रभावशाली थी कि कई बार उन्हें राजनीतिक और सामाजिक दबावों का सामना करना पड़ा। लेकिन परसाई कभी नहीं डिगे। वे अपनी लेखनी के जरिए सत्ता, धर्मगुरुओं और समाज के तथाकथित ठेकेदारों को निशाने पर लेते रहे।

परसाई का लेखन न केवल पुरुष-प्रधान समाज की विसंगतियों को उजागर करता था, बल्कि उन्होंने स्त्रियों की स्थिति पर भी अपनी कलम चलाई। उनकी रचनाओं में पितृसत्ता, घरेलू जीवन की जटिलताओं और समाज में स्त्रियों के प्रति भेदभाव पर तीखी टिप्पणियाँ मिलती हैं। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि उनकी रचनाओं में कभी-कभी पारंपरिक दृष्टिकोण भी झलकता है, लेकिन यह उनकी ईमानदारी को ही दर्शाता है। वे समाज की कमियों को, चाहे वह उनकी अपनी सोच में ही क्यों न हो, छिपाने की कोशिश नहीं करते थे। उनकी रचना भोलाराम का जीव में मध्यवर्गीय परिवार की छोटी-छोटी समस्याओं और पितृसत्तात्मक सोच का चित्रण इस बात का उदाहरण है।

परसाई की दूरदर्शिता उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी ताकत थी। उन्होंने अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों को इतनी गहराई से समझा कि उनके व्यंग्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। परसाई का निजी जीवन भी उनकी लेखनी की तरह ही सादगी और संघर्ष से भरा था। वे आर्थिक तंगी से जूझते रहे, लेकिन कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। वे मजाक में कहा करते थे, लेखक को भूखा रहना चाहिए, तभी उसकी लेखनी में आग रहती है। यह केवल एक कथन नहीं था, बल्कि उनकी जिंदगी का सच था। उनके जीवन के अंतिम वर्षों में भी आर्थिक कठिनाइयाँ बनी रहीं, लेकिन लेखन के प्रति उनकी निष्ठा कभी कम नहीं हुई। उनकी यह प्रतिबद्धता उनकी रचनाओं में भी झलकती है, जो हमेशा निडर और बेबाक रही।

परसाई ने व्यंग्य को केवल मनोरंजन की विधा नहीं रहने दिया; उन्होंने इसे सामाजिक चेतना का हथियार बनाया। उन्होंने सिद्ध किया कि व्यंग्य केवल हँसी पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि समाज को झकझोरने और उसे बदलने के लिए भी हो सकता है। उनकी रचनाएँ हमें न केवल हँसाती हैं, बल्कि हमें अपने समाज, अपनी व्यवस्था और स्वयं अपने भीतर झाँकने के लिए मजबूर करती हैं। उनकी जयंती पर उन्हें याद करना केवल एक साहित्यकार को श्रद्धांजलि देना नहीं है, बल्कि उस चेतना को जीवित रखना है, जो हमें सच्चाई से रूबरू कराती है।

परसाई की लेखनी आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने आसपास के पाखंड, भ्रष्टाचार और अन्याय को देखें और उसका विरोध करें। वे हमें सिखाते हैं कि हँसी के पीछे गंभीर चिंतन और नैतिक


जिम्मेदारी होती है। उनकी जयंती पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनकी तरह निडर और ईमानदार बने रहेंगे, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों। परसाई का साहित्य न केवल हिंदी साहित्य की धरोहर है, बल्कि यह एक ऐसी ज्योति है, जो हमें समाज की सच्चाई को देखने और उसे बदलने की प्रेरणा देती है। उनकी लेखनी की यह ताकत है कि वह हमें हँसते-हँसते सोचने पर मजबूर करती है और हमें यह एहसास दिलाती है कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज का दर्पण और उसकी आवाज है।



 - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post