काव्य :
वरिष्ठ जन हम
हम जन,वरिष्ठ है
हम मन से विशिष्ट है
हम नहीं,कभी वृद्ध हैं
अनुभवों में पके,समृद्ध हैं
सहज हैं सरल हैं
हम नहीं,क्लिष्ट हैं
दुर्बल यद्यपि काया हैं
हम मोह एवं माया हैं
करुण और सहाय हैं
उम्र का अर्जन व आय हैं
हम जीवन का सम्मान हैं
*ब्रज* हम नम्र,स्वाभिमान हैं
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र, भोपाल
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