काव्य :
मोह,प्रेम,धन,सब झूठा
है कितनी अनिश्चित
मृत्यु तेरी निश्चितता
अकस्मात तुम आ जाती
ना कर सकती, कुछ चिंता
लग जाता है पूर्ण विराम
क्यों यूँ अचानक
जीवन लगने लगता सहसा
क्यों फिर भयानक
निज,मित्र ,सखा, सम्बन्ध
जाते छूट सभी
दिखता सत्य केवल वह
है जो यहाँ अभी
मोह,प्रेम,धन सब झूठा
झूठा, तन,संसार
झूठा अर्जन ,आकर्षण
मिथ्या जग का आधार
हे ईश्वर,हमें शक्ति दो
जियें सत्य जीवन
वह सब ही स्वीकार करें
ब्रज,देता जो जीवन
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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