परिचर्चा :
आखिर क्या कारण है युवाओं में बढ़ती नशा प्रवृत्ति ?
आज कल नशाखोरी जो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही ,इस नशाखोरी से हमारी युवापीढ़ी ज्यादा प्रभावित हो रही है। जो हमारे देश के कर्णधार है,वो ही जब नशा करेंगे तो देश का भविष्य अंधकारमय होगा।
नशखोरी में,गुटखा,तम्बाकू,सिगरेट, बीड़ी,शराब,भांग आदि जो हमारी आने वाली पीढी को खोखला कर रही है । इस विषय पर आयोजित परिचर्चा में जो विचार आए हैं , वे इस प्रकार हैं -
शकुन्तला जी के अनुसार
आज का समय आधुनिकता की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हर दिशा में बदलाव हो रहे हैं — तकनीक, सोच, रहन-सहन, और जीवनशैली में। पर इसी बदलते समाज में एक भयावह सच्चाई भी है, जो धीमे ज़हर की तरह हमारे युवाओं को निगल रही है — नशाखोरी।
जिस युवा वर्ग के कंधों पर देश के भविष्य का भार है, वही आज नशे की लत में डूबता जा रहा है। गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, शराब और अन्य नशीले पदार्थ जैसे उनके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। ये नशा न केवल उनके शरीर को खोखला कर रहा है, बल्कि उनकी सोच, मेहनत, सपने और आत्मबल को भी खत्म करता जा रहा है।
इसका कारण केवल एक नहीं है। कभी तनाव, कभी अकेलापन, कभी दोस्तों के बहकावे में आकर, और कभी सिर्फ शौक के नाम पर यह रास्ता चुन लिया जाता है। शुरुआत में मज़ा आता है, मगर धीरे-धीरे वह मज़ा आदत बन जाता है और फिर आदत लत बनकर जीवन को निगल जाती है।
नशे में डूबा युवा अपने भविष्य की चिंता नहीं करता। उसे न माता-पिता की उम्मीदों की परवाह होती है, न समाज की। धीरे-धीरे वह जिम्मेदारियों से भागता है, आत्मविश्वास खो बैठता है और कई बार अपराध की दुनिया में भी कदम रख देता है।
समस्या गंभीर है, लेकिन इसका समाधान भी हमारे ही पास है। यदि परिवार अपने बच्चों से संवाद बनाए, उन्हें सही समय पर सही दिशा दे, स्कूलों में नैतिक शिक्षा को महत्व दिया जाए, और समाज नशे को फैशन की तरह प्रस्तुत करने के बजाय इसके दुष्परिणामों को उजागर करे — तो बदलाव संभव है। युवा खुद अगर अपने भीतर झांके, अपने जीवन का लक्ष्य तय करे और खुद से प्रेम करना सीखे, तो वह कभी नशे के रास्ते पर नहीं जाएगा।
हमें यह समझना होगा कि नशे में लिप्त एक युवा केवल अपना ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का नुकसान कर रहा है। देश को आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले अपने युवाओं को नशे से मुक्त करना होगा। जागरूकता, प्रेम, समर्थन और सही मार्गदर्शन से यह जंग जीती जा सकती है।
हम जब छोटे थे तो हर रविवार की शाम सब एकसाथ बैठते थे। कोई कविता सुनाता, कोई चुटकुला और अंत में सब मिलकर भजन गाते थे।
हम सब को मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं भी नशे से दूर रहेंगे और अपने आस-पास के लोगों को भी इस बुराई से बचाने का प्रयास करेंगे। यही सच्ची देशभक्ति है, यही भविष्य को बचाने का रास्ता है क्योंकि बच्चे हमारा और देश का भविष्य हैं।
अंजु जी ने बताया कि युवाओं में नशा करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है ।आधुनिक जीवन के तनाव और दबाव इसका एक कारण है ।
बचपन में हुए दर्दनाक और प्रतिकूल अनुभव युवाओं में नशे का एक सबसे बड़ा कारण है
युवाओं में सहनशक्ति की कमी दूसरा बड़ा कारण है। आजकल युवा बहुत जल्दी अपना हौसला खो देते हैं और फिर वह नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं।
इसके अलावा साथियों का तनाव, दबाव मानसिक स्वास्थ्य विकार, सामाजिक प्रभाव,
युवाओं को मादक द्रव्यों के सेवन की ओर आकर्षित करती है।
समाज के बदलते परिवेश में कुछ अलग करने की कामना, तथा अन्य बहुत से शौक भी कुछ कारण है जो युवाओं में नशे का प्रचलन बढ़ा रहे हैं। युवाओं में नशा एक फैशन की तरह हो गया है जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
नशा करने वाला अपनी लत पूरी करने के लिए गलत काम करने लगता है। वाहन दुर्घटनाएं भी इससे बढ़ती जा रही हैं और समाज का भविष्य खतरे में जा रहा है ।नशे की तस्करी समाज में असुरक्षा फैला रही है।
बेरोजगारी , सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव, रिश्तो से जुड़ी समस्याएं भी युवाओं को नशे की तरफ धकेल रही है।
नशा ना केवल स्वास्थ्य को बर्बाद करता है, बल्कि परिवार और समाज की नींव हिला देता है।
हमारे देश में नशा को खत्म करने की बहुत आवश्यकता है। नशा एक व्यक्ति को नहीं पूरे राष्ट्र को कमजोर करता है। हमें भारत को नशा मुक्त बनाना है। इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास कर रहा होगा।इसको रोकने के लिए सबसे अहम भूमिका परिवार की आती है हमें परिवार में संवाद को खुला रखना होगा। बच्चों की समस्याओं को सुनना होगा और उन को समय देना होगा।
स्कूल और कॉलेज में ऐसे कार्यक्रम करने होंगे जिससे इनके दुष्परिणाम का ,दुष्प्रभावों का पता लगे ।सोशल मीडिया और टीवी आदि पर भी जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
युवाओं को खेल संगीत और कला आदि जैसी गतिविधियों के लिए प्रेरित करना होगा। नशा लेने वालों को नकारने की बजाय उन्हें सुधारने की कोशिश करनी होगी।
तनाव से जूझ रहे युवाओं को मनोवैज्ञानिक चिकित्सक तथा काउंसलर या हेल्पलाइन की सुविधा उपलब्ध करानी होगी । गांव में भी जागरूकता अभियान चलाने होंगे। यह भी देखना होगा कि नशे की चीजें सुलभ न हों।इसके लिए नशा माफिया खत्म करना भी बहुत जरूरी है। साथ ही नशा उपलब्ध कराने वालों पर सख्त कार्रवाई हो यह भी देखना होगा।
यदि युवाओं को नशे के चुंगल से छुड़ाना है तो यह हम सब का मिलकर प्रयास होना चाहिए। समाज का परिवार का तथा सरकार का। तीनों की कोशिशें से ही हम युवाओं को नशे के चुंगल से छुड़ा पाएंगे।
सरोज गुप्ता जी ने कहा कि नशा एक गंभीर समस्या बन गया है नशा खोरी की आदत दिनों दिन अपना जाल फैलाती जा रही है पीने पिलाने का शौक इतना बढ़ गया है कि कहीं भी छोटी सी पार्टी भी हो तो उसमें sharab avashya parosi jaati Hai hamara Yuva varg bhi धीरे-धीरे Nashe ke shikanje mein Jakarta ja raha hai jisse vah apne kartavyon se vimukh hota ja raha hai। यह बहुत चिंता का विषय है । इसके लिए कुछ आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए सबसे पहले तो स्कूलों में बच्चों को नैतिक शिक्षा अवश्य देनी चाहिए और ऐसी चीजों की हानियों के बारे में उनको बताना चाहिए दूसरी ओर परिवार को भी इस और ध्यान देना चाहिए आजकल परिवार का वातावरण भी ऐसा हो गया है कि बच्चे स्वच्छंद रहते हैं मां-बाप का नियंत्रण अधिक नहीं रहता है और इसीलिए बच्चे कभी-कभी गलत मार्ग पर चले जाते हैं तो माता-पिता को शुरू से सतर्क रहना चाहिए और बच्चों को अच्छी आदतों की ओर उन्मुख करना चाहिए और सबसे जरूरी बात यह है कि हमारी सरकार को इन उत्पादनो के ऊपर प्रतिबंध लगाना चाहिए । यदि बाजार में यह चीज उपलब्ध ही नहीं होगी तो इनका प्रयोग भी कैसे हो सकेगा लेकिन हमारी सरकार न जाने क्यों किसी भी नशे की वस्तु पर चाहे वह गुटका हो तंबाकू हो शराब हो किसी पर प्रतिबंध नहीं लगाती है यही सबसे बड़ी दुविधा की बात है । इस समस्या के लिए सभी को मिलकर कारगर कदम उठाने होंगे तभी शायद इस समस्या का समाधान हो पाएगा और हमारा युवा वर्ग कुछ सचेत हो पाएगा । शायद देश का कल्याण भी इसी में है ।
बाला जी ने कहा कि नशा आदि काल से किया जाता रहा है किन्तु आज उसका रूप अधिक विभत्स और कुत्सित हो गया है। पूर्व में नशीले पदार्थों की उपलब्धता इतनी सरल न थी,अभी तो हरेक चीज की होम डिलीवरी मिल जाती है, प्राप्ति जितनी आसान होगी उसका उपयोग उपभोग भी उतना ही अधिक होगा।
आज समाज के हर व्यक्ति की आंख मात्र और मात्र अर्थ उपार्जन पर ही रहती है,चाहे वो किसी भी कीमत पर क्युं न हो।ऐसे दूषित विषयों को प्रमोट करने में हमारे क्रिकेटर फिल्म स्टार बिज़नेस हाऊस और सबसे उपर पोलिटिशियनस का वरद हस्त है। इन सबको अथाह पैसा चाहिए, चाहे कैसे भी कहीं से भी आये।एक साधारण आदमी तो इतना सक्षम होता नहीं की वो इतने बड़े पैमाने पर ऐसी वस्तुओं का मेनेजमेंट कर सके। किन्तु शिकार तो साधारण गरीब ही बनता है,मानव कृत आपदा हो या प्राकृतिक।
आज भारत का बहुत बड़ा वर्ग किसी न किसी प्रकार के नशे की गिरफ्त में है और अनेकों घरों में कलह क्लेश का कारण भी बना हुआ है। कुछ समय पहले हमारे समाज में छोटे बड़े की मर्यादा का पालन होता था, छोटे बड़े सब एक घर में रह लेते थे, प्राइवेसी की गुंजाइश कम हुआ करती थी तो इस प्रकार के दुर्गुणोंकी गुंजाइश कम हो जाती थी। अब हालात विपरीत हैं। आज का युवा नौकरी मेहनत की बजाय शार्ट कट के जरिए अधिकाधिक धनार्जन कर लेना चाहता है, नशा बेचकर रमी सटा शेयर बाजार या रील व्लोग आदि द्वारा।
यदि हमें इन दोषों से उबरना है तो हमें अपनी सन्तानों में संतोष और शांति इन दो गुणों का बीज डालना होगा और उसके साथ परिश्रम का मार्ग चुनने पर भार देना होगा और जो मेहनत का रास्ता चुनेगा उसे निराशा और डिप्रेशन भी परेशान नहीं करेगा तो नशे की आवश्यकता स्वयंमेव कम कम हो जायेगी। देश और समाज के सुधार का आधार ही है।
आभा कुलश्रेष्ठ जी ने बताया मैं एक ऐसे धनाढ्य परिवार को जानती हूं जो जूते का व्यापार करते थे। उनके तीन में से एक लड़का नालायक निकला।15-16साल की अवस्था से ही ड्रगस लेने लगा। परिवार ने उसे मुर्गी बेचने के लिए दुकान खोल कर दी। दो-तीन मुर्गियां बेच कर ड्रग्स खरीदने लायक पैसे हो जाते तो ड्रग्स सेवन करके सो जाता और लोग मुफ्त में मुर्गियां उठा ले जाते।
परिवार की दोमंजिला कोठी थी। एक बार ऊपर की मंजिल पर रहने पति-पत्नी किरायेदार आये ।एक दिन पता चला कि पैसे के लिए उस लड़के ने पति के आफिस जाने के बाद महिला को गला घोंट कर मार दिया और जेल चला गया। सबूतों की कमी के कारण कुछ समय बाद छूटकर आ गया। लेकिन परिवार की परेशानी का कारण बना रहा।
एक विशेष बात में यहां बताना चाहती हूं जो कि उसके बड़े भाई ने हमें बताईं थी वह ये कि कुछ गरीब अनपढ़ लड़की वाले परिवार की सम्पन्नता देख कर उस नाकारा लड़के को भी अपनी बेटी देने को तैयार थे। जब कि परिवार कहता था हमारे बेटे से शादी करने की बजाय लड़की को कुएं में फेंक दो।
ये उदाहरण समझने के लिए काफी है कि नशा करने वाले स्वयं तो अपना जीवन नष्ट करते ही हैं परिवार, समाज और देश के लिए भी कष्ट दायक और खतरनाक होते हैं।
मधु गौतम जी ने चिंता जतायी की आज का युवा वर्ग देश की रीढ़ है, लेकिन यह रीढ़ धीरे-धीरे नशाखोरी की दीमक से खोखली होती जा रही है। नशा सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि एक सामाजिक, मानसिक और शारीरिक बीमारी बन चुका है, जो युवा ऊर्जा को क्षीण कर रहा है। इसके बहुत से कारण है और प्रत्येक व्यक्ति नशे की गिरफ्त में आने का कोई अलग कारण ही होता है । कई बार जिज्ञासा और साथियों का दबाव –जो दोस्तों की संगत में अक्सर ‘एक बार आज़मा कर देखो’ जैसी सोच से शुरुआत होती है।
आज के समय में तनाव अवसाद भी कई प्रमुख कारणों में से एक है। कभी पढ़ाई, करियर, पारिवारिक या भावनात्मक एक सीमा से गुजर जाता है कि उससे निकलने के लिए युवा नशे का सहारा ले लेते हैं।मीडिया और फिल्में नशे को फैशन या स्टाइल के रूप में दिखाना युवाओं को इस ओर आकर्षित करते है और वे भ्रमित हो जाते है। कई बार माता-पिता से संवादहीनता और भावनात्मक दूरी भी युवाओं को गलत राह पर ले जाती है कई दुष्परिणाम सामने आते हैं। इनसे – स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है, जैसे लीवर, फेफड़ों व मस्तिष्क की बीमारियां।मानसिक पतन – नशा मनोबल, एकाग्रता और निर्णय क्षमता को नष्ट करता है। ये कारण एक दूसरे से रिलेटेड होते हैं।आपराधिक प्रवृत्ति जन्म ले लेती है। नशे के लिए पैसे की आवश्यकता युवाओं को अपराध की ओर ले जाती है। बहुत बार संबंधों में दूरी भी इसका कारण बनते हैं और इसका असर शिक्षा और रोजगार में गिरावट के रूप में भी सामने आता है।
सबसे प्रमुख सुझाव है . संवाद और सहानुभूति – परिवार और शिक्षकों को युवाओं से नियमित और संवेदनशील संवाद करना चाहिए।
सकारात्मक विकल्प – खेल, कला, संगीत, और स्वयंसेवी गतिविधियों से युवाओं को जोड़ा जाए इससे उनकी ऊर्जाओं का पुनर्निर्देशन होगा।
काउंसलिंग और पुनर्वास – नशाग्रस्त युवाओं के लिए अच्छे स्तर के परामर्श केंद्र और पुनर्वास सुविधाएं उपलब्ध हों ।
नशाखोरी केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चिंता का विषय है। आशा की किरण यह है कि अब विद्यालयों में भी इस विषय पर ध्यान दिया जाता है।
सन 2006-2007से substance abuse पर विस्तृत चर्चा, Learn to say No आदि विषय पर बच्चों को सिखाया जाता है ।
सबसे कारगर उपाय हो सकता है कि माता पिता और बच्चों के बीच में संवाद हो और माता पिता बच्चों में सुदृढ़ नैतिक जीवन मूल्यों का विकास करें और यदि बच्चे माता पिता के व्यवहार में पारदर्शिता रहेगी तो नैतिकता का विकास दृढ़तर होगा और बच्चा स्वयं को किसी भी नकारात्मक परिस्थिति का शिकार नहीं होने देगा।
राधा गोयल जी ने बहुत विस्तार से इसके बारे मे बताया नशा स्वास्थ्य के लिए घातक है -
नशा एक ऐसी बीमारी है जो युवा पीढ़ी को लगातार अपनी चपेट में लेकर उसे कई तरह से बीमार कर रही है। युवा क्या... जिनको इसकी आदत पड़ जाती है, वह बुढ़ापे में भी नहीं छूटती। चाहे वह शराब हो सिगरेट,तंबाकू ,भाँग,चरस,गाँजा या ड्रग्स। लोग सोचते हैं कि वे बच्चे कैसे नशा कर सकते हैं जिनके पास खाने को भी पैसा नहीं होता। लेकिन कोरोनाकाल के दौरान सबने देखा होगा कि लोगों के पास खाने के लिए नहीं था। उनको मुफ्त में स्वयंसेवी संस्थाएँ भोजन उपलब्ध करा रही थीं। मंदिरों और गुरुद्वारों में लंगर लगे हुए थे जहाँ गरीब लोग खाना खा रहे थे। तब उनके पास पैसे नहीं थे। सरकार भी मुफ्त में दाल चावल गेंहू दे रही थी। जब शराब के ठेके खुल गए तब पुरुषों ने सारे प्रतिबंधों को ताक पर रखकर ₹100 में मिलने वाली शराब को ₹170 में खरीदा। सभी ने यह सब कुछ दूरदर्शन पर देखा होगा कि दारू के ठेकों पर किस कदर लंबी- लंबी लाइनें लगी हुई थीं जबकि उन दिनों परचून की दुकान पर भी लोग दो फुट की दूरी पर खड़े होते थे और मास्क लगाए होते थे। लेकिन शराब की दुकानों पर न मास्क... न ही दूरी। आखिर शराब के लिए पैसे कहाँ से आ गए।
तात्पर्य यह कि जिन्हें ऐसी लत लग जाती है, वह उसको पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इसने कई लोगों को मौत का ग्रास बना दिया। कितने परिवारों की जिन्दगी को बर्बाद कर दिया। नशे में व्यक्ति को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता। पत्नी को पीटना। नशे के लिए कुछ भी कर गुजरना।जिनको ड्रग्स लेने की आदत पड़ जाती है(जिसे वो पुड़िया कहते हैं), उसको पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं चाहे उसमें किसी का घर जलाना हो या किसी की बहन बेटी का अपहरण करना हो। मैं *प्रयास नाम के एक एनजीओ से जुड़ी हुई हूँ* जो जागरूकता अभियान चलाती है।जिसमें हुनर,शिक्षा नशा-मुक्ति, पर्यावरण संरक्षण,पौधारोपण, लड़कियों को छुट्टियों में जूडो कराटे की ट्रेनिंग, आदि कई तरह के प्रोग्राम का आयोजन कराते हैं। एक बार हमने स्लम एरिया में नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया। उद्देश्य था लोगों को नशा मुक्त करने का अभियान चलाना। उसमें कुछ युवा लड़के लड़कियों ने नाटक के माध्यम से लोगों को शराब और ड्रग की लत के कारण बच्चे किस हद तक जा सकते हैं...वह सब कुछ बताया। सच बताऊँ,कई महिलाओं की आँखों से बुरी तरह आँसू गिर रहे थे। उन्हें वह सब अपनी आपबीती लग रही थी। एक ने बताया कि उसके बेटे ने इसी लत की वजह से घर के बर्तन बेच दिए। जेवर चुरा कर बेच दिए। कुछ लड़कियों को चुराकर बेच दिया। कितने महीने से थाने में बंद है।
नाटक खत्म होने के बाद उनको समझाया कि बचपन से ही अपने बच्चों को पढ़ने लिखने भेजो। यदि जरा भी अंदेशा हो कि वो शराब पी रहे हैं या किसी तरह का नशा कर रहे हैं तो उनको नशामुक्ति केन्द्र का नंबर देकर कहा कि इस नंबर पर फोन करो। वे नशेड़ी को नशा मुक्ति केंद्र में ले जाएंगे और इनकी नशे की आदत को छुड़ा देंगे।महिलाओं ने इतने आशीर्वाद दिए कि बता नहीं सकती।
यह तो हुई उन परिवारों की बात जिनके पास पैसा नहीं होता। जिनके पास बहुत पैसा होता है, रोज घर में ही अकेले बैठकर शराब पीते हैं या दोस्तों की महफिल जमा लेते हैं और जाम से जाम टकराते हैं। शादियों में तो शराब पीना एक फैशन बन चुका है फिर चाहे अमीर हो या गरीब। अमीर महंगी शराब पीते हैं। गरीब ठर्रा।
कुछ को धन कमाने की इतनी लिप्सा होती है कि वे इसकी तस्करी भी करते हैं। यहाँ तक कि ड्रग, हेरोइन, गांजा, भाँग आदि की लत वाले इसे कालाबाजारी करके भी खरीदते हैं। चोरी करके भी खरीदते हैं।
वैसे भी अमीरों के लड़के लड़कियाँ पब में जाकर शराब सिगरेट,चरस का सेवन, बाहों में बाहें डाल अभद्र डांस, नशे की हालत में अपनी मर्यादा लाँघ जाना। एक बार जिसको यह लत लग गई वह फिर छूटती नहीं है।
नशे की लत ने इंसान को उस स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब व्यक्ति मादक पदार्थों के सेवन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह नशे के लिए जुर्म भी कर सकता है। नशे के मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं है। महिलाओं द्वारा भी मादक पदार्थों का बहुत अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है। व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में तनाव, प्रेम संबंध, दांपत्य जीवन व तलाक आदि कारण, महिलाओं में नशे की बढ़ती लत के लिए जिम्मेदार है। नशा भले ही शान और लत के लिए किया जाता हो, पर यह जिंदगी की बेवक्त आने वाली शाम का भी मुख्य कारण है। वह कब जीवन में अंधेरा कर जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। कब यह मजा जिंदगी भर की सजा बन जाए।वक्त रहते यह समझ आ जाऐ तो ही अच्छा है।
*नशा बोतल का या पुड़िया का नहीं*
*भले कामों का नशा होना अच्छी बात है जिससे परिवार, समाज व देश का कल्याण हो।*
पुष्पा शर्मा जी ने नशे की लत को बच्चों को किशोरावस्था में गलत संगति मिलने से होती है। पहले तो बीड़ी सिगरेट तंबाकू व बड़े लोगों में सिगार मदिरा पान आदि नशे थे। अब गुटका शराब व सबसे बड़ा जानलेवा नशा ड्रग्स का अधिक बोलबाला है। जो बच्चों का जीवन संकट में डाल देता है। विदेशी व देशी माफिया इस कारोबार से जुड़े हैं। गुटके से मुँह व श्वांस नली के कैंसर शराब से लीवर व अन्य रोग और ड्रग्स से पूरा शरीर ही बीमार हो जाता है।
अब समस्या यहाँ यह आती है कि किशोरों को कैसे बचाया जाय। अब जिनके घर के बड़े नशा करते हैं उनका तो कोई इलाज नजर नहीं आता पर सामान्यतःबच्चों की संगति पर माता पिता व अध्यापक ध्यान दें। उन्हें मित्रवत व्यवहार रख नशे की हानियाँ समझायें। सरकार भी कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। पर हर गली बाजार की दुकानों में गुटकों की लड़ियाँ सजी रहती है। बच्चों के लिए खरीदने पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं। पाठ्यक्रम में भी नशे की हानियाँ के अध्याय रखे जायें।घर में बच्चों को भयभीत नहीं करें बल्कि आत्मीयता से समझाएँ।
वंदना रानी दयाल जी ने बहुत अच्छी बात कही कि नशा हो तो चिंतन का हो,मनन का हो ...समाज और देश सुधार का हो.....काश कि ऐसा होता। आज तो हर जगह पाश्चात्य सभ्यता की नकल है...पहनावा ओढ़ावा हो,खान पान हो या बोलचाल हो....पर उनकी सफाई,उनकी सुव्यवस्था,उनकी वक्त पाबंदी की नकल कोई नहीं करता। जहां तक नशे की बात है,इसकी वजह बस भटकाव है या फिर फैशन कह सकते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे तौलें तो नशे के बाद थोड़ी देर के लिए जो डोपामीन रिलीज़ होता है,वही नशे के प्रति आकर्षण का केंद्रबिंदु है।उससे थोड़ी देर के लिए जो तरह तरह की चिंताओं से मुक्ति मिलती है,इंसान उसी का गुलाम होता चला जाता है।ये समझने की कोशिश नहीं करता कि ये एक मृगमरिचिका की मानिंद है जो धीरे धीरे उसे दलदल की ओर खींच रही है।
आधुनिकता का दम भरने वाले परिवारों में आज बहू बेटियां घर के बड़े बुजुर्गों के साथ चीयर्स करती दिखती हैं।उन तथाकथित आधुनिक लोगों को ये खुशफहमी होती है कि वे दकियानूसी नहीं बल्कि बड़े प्रगतिशील सोच वाले हैं। लोग शराब ,सिगरेट,गुटका ड्रग्स आदि सेवन करने के बहाने ढूंढते हैं...कभी खुशियों का जश्न मनाने के लिए,कभी किसी ग़मी से लड़ने के लिए तो कभी बस फैशनपरस्ती के लिए।अज्ञान का अंधकार दिनोदिन उन्हें लीलता जा रहा है।वे एक अंधेरी सुरंग की ओर आंखों में अज्ञानता की पट्टी बांधे बड़ी मस्ती में चले जा रहे हैं।वो भोले बनाम अज्ञानी जन नहीं जानते कि जब तक उन्हें होश आएगा,लौटने सारे रास्ते बंद हो चुके होंगे।
बहरहाल,इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं।आज का माहौल जिम्मेदार है,जिसे हम सबने मिलकर बनाया है। हम सब साथ मिलकर ही इससे मुक्ति का उपाय ढूंढ सकते हैं। ख़ासकर युवा वर्ग जो हमारे भविष्य के कर्णधार हैं,उनका मानसिक शारीरिक खोखलापन हमारे देश समाज व परिवार को भारी पड़ सकता है।कहते हैं कि परिवार ही प्रथम पाठशाला होती है।इसलिए शुरू से ही घर के बच्चे के संस्कारों की इतनी मज़बूत नींव डाली जाए कि कोई भी आंधी उसे हिला ना सके।और इसके अलावे घर में आपसी रिश्तों में इतना खुलापन हो कि दिल में कोई गांठ ना बन सके और चिंता से मुक्ति के लिए बाहर का रास्ता ना देखना पड़े।
डॉ. रानी श्रीवास्तव जी ने बताया कि - आज के युवाओं में नशाखोरी एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसके दुष्परिणाम न केवल उनके स्वास्थ्य पर पड़ते हैं, बल्कि उनके परिवार, समाज और भविष्य पर भी प्रभाव डालते हैं।
*नशाखोरी के दुष्परिणाम बहुत भयानक होते हैं।इन्हे हम ऐसे रेखांकित कर सकते हैं :
1. *शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य*: नशे की लत से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे कि मस्तिष्क की कार्यक्षमता में कमी, स्मृति ह्रास, और अवसाद जैसी समस्याएं।
2. *सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं*: नशाखोरी के कारण परिवारिक रिश्तों में तनाव, सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि, और दोस्तों के साथ संबंधों में खटास आ सकती है।
3. *आर्थिक समस्याएं*: नशे की लत के कारण आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे कि नशे की खरीद पर अधिक खर्च और काम या पढ़ाई में ध्यान न दे पाना।
4. *अपराध और कानून की समस्याएं*: नशाखोरी के कारण अपराध और कानून की समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि नशे के लिए चोरी या अन्य अपराध करना।
अब इससे बचाव कैसे हो ? तो कूछ समाधान प्रस्तुत हैं :
1. *जागरूकता और शिक्षा*: युवाओं में नशाखोरी के प्रति जागरूकता और शिक्षा बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि वे इसके दुष्परिणामों को समझ सकें।
2. *परिवार और समाज का सहयोग*: परिवार और समाज को भी युवाओं का सहयोग करना चाहिए और उन्हें नशाखोरी से बचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
3. *पेशेवर मदद*: नशाखोरी की समस्या से निपटने के लिए पेशेवर मदद लेना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जैसे कि काउंसलिंग या नशा मुक्ति केंद्र।
आशा है जागरूकता से हम समाज की इस बुराई को खत्म करने में सफल होंगे ।
डॉ सुधा कुमारी जी ने कहा - पूरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशे की बेल फलफूल रही है। इस बेल को काटने का कार्य राज्य और समाज को स्वय करना होगा। गुजरात एक ज्वलंत उदाहरण है जो एक विकसित राज्य है और यहां नशा लगभग बंद रहता है, जबकि दूसरे कई राज्य नशा करके भी गरीब और अविकसित हैं।
देश को कानून बनाकर और समाज को दबाव बनाकर आगे आना होगा क्योकि लोगों की आयु और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तीज त्योहार और मन्नत से कहीं महत्वपूर्ण है नशे की लत का समाप्त होना।
सविता सयाल जी ने अपने विचार रखे.. मुझे आज का विषय पढ़कर *उड़ता पंजाब* फिल्म की याद आ गयी जो इसी विषय पर थी । निश्चय ही युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति के अनेक कारण हैं , मानसिक तनाव के अतिरिक्त आधुनिक दिखने का दबाव, पाश्चात्य सभ्यता का बढ़ता प्रभाव एवं बेरोजगार भी इसके मुख्य कारण माने जा सकता है ।
कुछ अमीरजादे अपने पैसे का दिखावा करने के लिये भी ऐसी पार्टियों का आयोजन करते हैं । दु:ख की बात तो यह है कि अब लड़कियां भी नशे की आदि होती जा रही है । लेट नाइट पार्टी में जाना और नशा करके लौटना वह अपनी शान समझती है ।
नशे की यह आदत उन्हें किस अंधकारमय भविष्य की ओर ले जा रही है इसका उन्हें अहसास करवाने का दायित्व अभिभावकों, समाज एवं हम सब पर है । जो पिता स्वयं घर में नशा करके आते हैं सबसे पहले उन्हें इस बात को समझना होगा कि इससे उनके बच्चों पर क्या असर पड़ेगा । कुछ शरारती तत्व भी कालेज एवं शिक्षा संस्थानों के बाहर युवाओं को नशे की आदत डालने के षड़यंत्र का हिस्सा बने हुए हैं इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।
आश्चर्य की बात तो यह है कि हमारे घर के पास एक बड़ी शराब की दुकान के बाहर लिखा है कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है फिर भी लोग उसी दुकान से शराब खरीदते हैं ।
सरकार को नशे की वस्तुओं की बिक्री के कानून सख्त बनाने होंगे। अधिक से अधिक नशामुक्ति केन्द्र खोले जाये ।
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