काव्य :
पूर्णिमा का चांद शरद
बिखेरें चाँदनी सी
शीतल छटा
मन मालिन्य और
दुर्भाव हटा
समेट लें स्व आभा में
जग के सब जन
व्यक्तित्व की गरिमा
हर्षित करे मन
बनें अभिनव हम
पूर्णिमा का चाँद शरद
सीमा में रहे स्वभाव
न लांघें हम हद
ऐसा है संभव,ये
कभी टेढ़ी खीर नहीं
ब्रज ,बन सकते सब
शरद की मीठी खीर यहीं
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र ,भोपाल
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