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परमाणु क्रांति 2.0: निजी भागीदारी से आत्मनिर्भर भारत - - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 

परमाणु क्रांति 2.0: निजी भागीदारी से आत्मनिर्भर भारत

[कार्बन-मुक्त शक्ति का महाविधान: भारत की ऊर्जा क्रांति]

[परमाणु शक्ति का नया सूर्योदय: भारत की संप्रभु ऊर्जा का उदय] 


प्रो. आरके जैन “अरिजीत


अंधेरे पर नहीं, रोशनी पर टिकी है किसी राष्ट्र की असली ताक़त। वही रोशनी जो कारखानों को गति देती है, तकनीक को जीवन देती है और अर्थव्यवस्था को निरंतर आगे बढ़ाती है। भारत आज उसी रोशनी के एक नए युग के द्वार पर खड़ा है, जहाँ ऊर्जा की कमी विकास की रफ़्तार तय नहीं करेगी और पर्यावरण प्रगति की कीमत नहीं बनेगा। दिसंबर 2025 में कैबिनेट द्वारा मंजूर और लोकसभा में 15 दिसंबर को पेश किए गए शांति विधेयक (सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) ने निजी निवेश के लिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को खोलने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह मात्र एक विधेयक नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता, जलवायु नेतृत्व और आर्थिक महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा का निर्णायक उद्घोष है।

लंबे समय तक भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र नीतिगत जड़ता और सरकारी एकाधिकार की सीमाओं में कैद रहा। वर्ष 1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संवेदनशीलता के तर्कों के साथ, इस क्षेत्र को बाहरी भागीदारी से दूर रखता आया। इसका नतीजा यह हुआ कि आज भारत की परमाणु क्षमता महज़ 8.88 गीगावाट पर सिमटी है, देश के कुल बिजली उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से भी कम। उसी दौर में विकसित राष्ट्र परमाणु ऊर्जा को अपनी ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ बना चुके हैं, जबकि भारत कोयले पर अत्यधिक निर्भर बना रहा। इस निर्भरता ने न केवल पर्यावरणीय दबाव बढ़ाया, बल्कि आयातित ईंधन पर खर्च का बोझ भी भारी किया। शांति विधेयक इसी ठहराव को तोड़ने वाला निर्णायक हस्तक्षेप है। यह निजी कंपनियों को रिएक्टरों के निर्माण, संचालन और सहायक गतिविधियों में भागीदारी की अनुमति देता है, जबकि ईंधन उत्पादन और परमाणु कचरा प्रबंधन जैसे अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र सरकारी नियंत्रण में ही रहेंगे।

इस ऐतिहासिक फैसले के केंद्र में 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। यह लक्ष्य कोई साधारण संकल्प नहीं, बल्कि भारत की नेट-ज़ीरो 2070 प्रतिबद्धता की मजबूत आधारशिला है। कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता घटाना, चौबीसों घंटे स्वच्छ और स्थिर बेसलोड ऊर्जा उपलब्ध कराना तथा भविष्य की तेज़ी से बढ़ती मांग को पूरा करना—ये सभी इसी लक्ष्य से गहराई से जुड़े हैं। अब तक सरकारी प्रयास इसलिए सीमित रहे क्योंकि परमाणु परियोजनाएँ अत्यंत पूंजी-गहन होती हैं; एक गीगावाट क्षमता स्थापित करने में हजारों करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी न केवल विशाल निवेश को आकर्षित करेगी, बल्कि उन्नत वैश्विक तकनीकों का द्वार भी खोलेगी। विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) भारत के ऊर्जा परिदृश्य को बदल सकते हैं—जो फैक्ट्री में निर्मित होकर स्थल पर असेंबल होते हैं, जिससे निर्माण समय और लागत दोनों कम होंगे। 

इस विधेयक की असली ताक़त इसकी संतुलित और दूरदर्शी सोच में निहित है। यह विस्तार और सुरक्षा के बीच किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करता। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा 49 प्रतिशत पर निर्धारित कर, नीति निर्माताओं ने तकनीकी सहयोग और पूंजी प्रवाह का मार्ग तो खोला है, लेकिन राष्ट्रीय संप्रभुता और रणनीतिक नियंत्रण को पूरी तरह सुरक्षित रखा है। नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 में प्रस्तावित संशोधन वर्षों से चली आ रही आपूर्तिकर्ताओं की आशंकाओं का समाधान करते हैं। दुर्घटना दायित्व से जुड़ी अनिश्चितता के कम होने से अब वैश्विक परमाणु कंपनियों के लिए भारत एक अधिक भरोसेमंद और आकर्षक निवेश गंतव्य बन सकता है। यह दृष्टिकोण अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों के अनुभवों से प्रेरित है, जहाँ निजी भागीदारी ने परमाणु ऊर्जा को न केवल सुरक्षित, बल्कि व्यावसायिक रूप से भी सफल बनाया है।

फिर भी, यह यात्रा सहज नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है। सबसे बड़ी अड़चन बीमा संरचना की कमजोरी है। वर्तमान भारतीय परमाणु बीमा पूल मात्र 1,500 करोड़ रुपये का कवर प्रदान करता है, जो निजी संचालकों के जोखिम प्रोफ़ाइल के मुकाबले अपर्याप्त है। विशेष रूप से ‘हॉट ज़ोन’ अर्थात रिएक्टर क्षेत्रों की परिसंपत्तियों को बीमा दायरे में लाना अनिवार्य होगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय पुनर्बीमा कंपनियों और वित्तीय संस्थानों का भरोसा जीता जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि व्यापक और विश्वसनीय बीमा सुरक्षा के बिना बड़े निवेशक कदम बढ़ाने से हिचकेंगे। दूसरी प्रमुख चुनौती ईंधन सुरक्षा की है। भारत वर्तमान में अपनी यूरेनियम आवश्यकताओं का लगभग 70 प्रतिशत आयात करता है, जो दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति के लिए जोखिमपूर्ण है। ऐसे में थोरियम-आधारित परमाणु तकनीक भारत के लिए गेम-चेंजर सिद्ध हो सकती है, क्योंकि विश्व के सबसे बड़े थोरियम भंडार हमारे पास हैं। उन्नत परमाणु ईंधन (एएनएईएल) जैसे प्रयोग यदि सफल होते हैं, तो वे न केवल यूरेनियम पर निर्भरता घटाएंगे, बल्कि भारत को परमाणु ईंधन तकनीक में वैश्विक अग्रणी भी बना सकते हैं।

मानव संसाधन का सुदृढ़ीकरण इस परिवर्तन की अनिवार्य शर्त है। परमाणु क्षेत्र में विश्व-स्तरीय इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और कुशल तकनीशियनों की कमी लंबे समय से इसकी गति को सीमित करती रही है। निजी भागीदारी के साथ प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार, अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्रों की स्थापना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को नई धार मिलेगी। साथ ही, परियोजनाओं की लंबी समय-सीमा को मौजूदा 11–12 वर्षों से घटाकर छह–सात वर्ष तक लाना आवश्यक होगा, जिसके लिए पेशेवर प्रबंधन, दक्ष आपूर्ति श्रृंखला और समयबद्ध निर्णय प्रक्रिया अपरिहार्य हैं। ये सुधार केवल क्षमता विस्तार तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि परमाणु ऊर्जा को लागत और विश्वसनीयता दोनों के लिहाज़ से प्रतिस्पर्धी बनाएंगे।

यह विधेयक भारत को वैश्विक परमाणु परिदृश्य में एक नई पहचान देगा। जिस समय चीन और रूस तेज़ी से अपनी परमाणु क्षमता बढ़ा रहे हैं, भारत अब निजी नवाचार और पूंजी की शक्ति के साथ इस रणनीतिक दौड़ में निर्णायक प्रवेश कर रहा है। यह ऊर्जा सुरक्षा का ठोस आश्वासन है—जो आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाएगा, मुद्रास्फीति पर दबाव कम करेगा और ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक भरोसेमंद बिजली सुनिश्चित करेगा। जलवायु परिवर्तन के इस निर्णायक दौर में परमाणु ऊर्जा सबसे स्वच्छ और स्थिर बेसलोड स्रोत के रूप में उभरती है, जो कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती का मार्ग प्रशस्त करेगी।

शांति विधेयक मात्र एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि भारत की उस दीर्घकालिक सोच का उद्घोष है जहाँ विकास और सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं, और निजी उद्यमिता राष्ट्रीय लक्ष्यों को गति देती है। यदि इसका क्रियान्वयन दूरदर्शिता और अनुशासन के साथ हुआ—बीमा, ईंधन और मानव संसाधन से जुड़ी चुनौतियों का समयबद्ध समाधान सुनिश्चित किया गया तो यह पहल भारत को स्वच्छ ऊर्जा महाशक्ति बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर सिद्ध होगी। आने वाले दशकों में, जब 100 गीगावाट की परमाणु ऊर्जा से प्रकाशित एक विकसित भारत की कल्पना साकार होगी, तब यही विधेयक उस परिवर्तनकारी यात्रा के प्रथम अध्याय के रूप में स्मरण किया जाएगा। यह केवल ऊर्जा क्रांति नहीं, बल्कि भारत की संप्रभु शक्ति और आत्मनिर्भरता के नए सूर्योदय की घोषणा है—जो अंधकार को पीछे छोड़ उजाले की नई सुबह रच रहा है।

  -  प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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