[प्रसंगवश – 24 दिसंबर: राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस]
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: जागो, सवाल करो, बदलाव लाओ
[कानून एक साधन है, असली शक्ति उपभोक्ता है]
[हर क्लिक, हर खरीद: उपभोक्ता शक्ति का लोकतंत्र]
• प्रो. आरके जैन “अरिजीत”
24 दिसंबर भारतीय लोकतंत्र के सामाजिक इतिहास में वह निर्णायक तिथि है, जब 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने आम नागरिक को बाजार की मनमानी के विरुद्ध एक सशक्त कवच प्रदान किया। यह दिन मात्र किसी कानून की याद नहीं, बल्कि उस मानसिक क्रांति का प्रतीक है, जिसने उपभोक्ता को शोषण का मूक पात्र नहीं, बल्कि अधिकारों से लैस निर्णायक शक्ति बनाया। वर्षों से ठगे जा रहे, गलत तौल, नकली वस्तुओं और भ्रामक वादों का शिकार होते लोग पहली बार कानून की भाषा में अपने पक्ष को दर्ज कराने लगे। यही वह क्षण था, जब बाजार की सत्ता को जवाबदेह बनाने की यात्रा शुरू हुई और उपभोक्ता आत्मसम्मान के साथ खड़ा हुआ। इसी चेतना का विस्तार आज राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस 2025 की थीम “स्थायी जीवनशैली की ओर एक न्यायसंगत परिवर्तन” में दिखाई देता है, जो उपभोक्ता शक्ति को सामाजिक और पर्यावरणीय बदलाव का केंद्र मानती है।
ग्रामीण भारत की महिलाएं इस परिवर्तन की सबसे जीवंत मिसाल हैं। घरेलू जरूरतों के लिए खरीदे गए नकली सौंदर्य उत्पाद, घटिया उपकरण या मिलावटी खाद्य पदार्थ वर्षों तक उनकी चुप्पी का कारण बने रहे। लेकिन 1986 के अधिनियम और 2019 के संशोधित कानून ने उन्हें बिना वकील, बिना भय, सीधे शिकायत दर्ज करने का अधिकार दिया। आज उपभोक्ता फोरमों में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय है, जो यह दर्शाती है कि आर्थिक निर्णयों में उनकी भूमिका सशक्त हुई है। यह केवल उपभोक्ता अधिकार नहीं, बल्कि जेंडर समानता की वह शांत क्रांति है, जो घर की देहरी से निकलकर समाज की दिशा बदल रही है।
डिजिटल युग में उपभोक्ता के सामने चुनौतियों का स्वरूप बदला है। अब खतरा खुली धोखाधड़ी से अधिक ‘डार्क पैटर्न्स’ का है—छिपे शुल्क, फर्जी छूट और भ्रमित करने वाले विकल्प। 2019 के अधिनियम ने ई-कॉमर्स को उत्पाद दायित्व के दायरे में लाकर कंपनियों को सीधे जिम्मेदार बनाया। नकली सामान, गलत विवरण या डेटा दुरुपयोग पर अब कठोर कार्रवाई संभव है। ऑनलाइन खरीदारी में किया गया हर क्लिक उपभोक्ता अधिकारों से जुड़ा है, जहां डेटा गोपनीयता और पारदर्शिता मिलकर बाजार में विश्वास की नई नींव रख रहे हैं।
उपभोक्ता अधिकार अब केवल व्यक्तिगत हित तक सीमित नहीं रहे, वे पर्यावरण न्याय का भी प्रभावी माध्यम बन चुके हैं। ‘ग्रीनवॉशिंग’ के नाम पर किए जाने वाले झूठे इको-फ्रेंडली दावों को उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी जा सकती है। 2025 की सस्टेनेबल जीवनशैली की वैश्विक चेतना के साथ भारतीय उपभोक्ता प्लास्टिक-प्रदूषक और पर्यावरण-विरोधी उत्पादों को नकार रहे हैं। हर खरीदारी अब केवल सुविधा नहीं, बल्कि पृथ्वी की रक्षा का निर्णय बन रही है। यह वह अदृश्य संघर्ष है, जहां उपभोक्ता की पसंद जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध एक शांत लेकिन निर्णायक हथियार बनती है।
विज्ञापनों की चमक-दमक के पीछे न्यूरोमार्केटिंग का सूक्ष्म खेल चलता है। रंग, ध्वनि, सीमित समय के ऑफर और फोमो (फियर ऑफ मिसिंग आउट) जैसी तकनीकें उपभोक्ता के मन को नियंत्रित कर अनावश्यक खरीदारी कराती हैं। शोध बताते हैं कि बड़ी आबादी ऐसे प्रभावों में निर्णय लेती है। राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस हमें केवल जानकारी पाने का नहीं, बल्कि विज्ञापन के मनोविज्ञान को समझने का अधिकार भी सिखाता है। जागरूक उपभोक्ता अब सवाल करता है, तुलना करता है और इन अदृश्य जालों को पहचानकर तोड़ने का साहस दिखाता है।
उपभोक्तावाद और मानसिक स्वास्थ्य के बीच का संबंध अक्सर अनदेखा रह जाता है। अनियंत्रित खरीदारी, एकतरफा अनुबंध और कर्ज का बोझ तनाव व अवसाद को जन्म देता है। उपभोक्ता कानून इन अदृश्य दबावों के विरुद्ध एक ढाल बनकर खड़ा होता है, जो अनुचित शर्तों को चुनौती देने और न्याय पाने का आत्मबल देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग धोखाधड़ी या घटिया बीजों से प्रभावित किसान अब मुआवजे की मांग कर रहे हैं। यह ‘साइलेंट इंपावरमेंट’ केवल आर्थिक राहत नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन की भी गारंटी बनकर उभर रहा है।
तकनीक ने इस न्याय यात्रा को अभूतपूर्व गति और पारदर्शिता प्रदान की है। 2025 में AI-पावर्ड नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन 2.0, जागो ग्राहक जागो ऐप और वर्चुअल सुनवाई जैसी पहलें शिकायत निवारण को तेज, सरल और भरोसेमंद बना रही हैं। ब्लॉकचेन आधारित ट्रेसेबिलिटी से उत्पाद की पूरी यात्रा को स्कैन कर सत्यापित करना संभव हो गया है, जिससे धोखाधड़ी की गुंजाइश सिमटती जा रही है। ई-दाखिल और डिजिटल प्लेटफॉर्म न्याय को घर की चौखट तक पहुंचा रहे हैं। यह किसी दूर के भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि वर्तमान की वह जीवंत क्रांति है, जो उपभोक्ता को सचेत नागरिक से डिजिटल योद्धा में रूपांतरित कर रही है।
इस अधिनियम ने छोटे व्यवसायों की कार्यसंस्कृति को भी गहराई से रूपांतरित किया है। अब ईमानदारी कोई विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व की शर्त बन चुकी है। पारदर्शी मूल्य निर्धारण, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और स्पष्ट शर्तें अपनाकर छोटे उद्यम न केवल अधिक विश्वसनीय बने हैं, बल्कि प्रतिस्पर्धा में भी सशक्त होकर उभरे हैं। इसका सकारात्मक असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, जहां विश्वास विकास की नई पूंजी बन रहा है। परंतु निर्णायक शक्ति आज भी उपभोक्ता के हाथ में है—सस्टेनेबल, नैतिक और जिम्मेदार विकल्प चुनने की शक्ति। हर खरीदारी अब साधारण सौदा नहीं, बल्कि बाजार को दिशा देने वाला सामाजिक वक्तव्य बन चुकी है, जो परिवर्तन की धारा तय करती है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस एक तारीख भर नहीं, बल्कि निरंतर कॉल टू एक्शन है। अधिकार जानो, सवाल करो, शिकायत दर्ज कराओ और बाजार को जवाबदेह बनाओ। उपभोक्ता केवल खरीदार नहीं, बल्कि समाज की अर्थव्यवस्था और नैतिकता का चालक है। एक न्यायपूर्ण, सस्टेनेबल और मजबूत भारत का निर्माण हमारी जागरूकता और कर्म से संभव है। यह दिवस हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति कानून की धाराओं में नहीं, बल्कि जागरूकता और साहसिक एक्शन में निहित है। यही इस दिवस का सार है—जागो, समझो और बदलाव का हिस्सा बनो। जय उपभोक्ता, जय भारत।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
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