बाल साहित्य शोध सृजन पीठ करेगी वर्षभर कार्यशालाएं : वरिष्ठ बाल साहित्यकारों से सलाह हेतु संगोष्ठी का आयोजन हुआ
भोपाल। बाल साहित्य सृजन पीठ की प्रथम संगोष्ठी साहित्य अकादमी में आयोजित हुई। कार्यक्रम में बाल साहित्य सृजन से संबंधित निम्न बिंदुओं पर विस्तृत चर्चा की गई :
1) बाल साहित्य का सृजन किस तरह से हो?
2)उसमें शोध की क्या-क्या संभावनाएं हैं?
3) नव वर्ष में प्रस्तावित कार्यक्रम क्या रहेंगे?
4)उनका क्रियान्वयन किस तरह से किया जाएगा?
इन बिन्दुओं पर आयोजित औपचारिक बैठक में डॉ विकास दवे, निदेशक साहित्य अकादमी के मार्गदर्शन में, बाल साहित्य शोध सृजनपीठ की निदेशक डॉक्टर मीनू पांडे के साथ श्री महेश सक्सेना- निदेशक बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल, कीर्ति श्रीवास्तव- वरिष्ठ बाल साहित्यकार एवं संपादक साहित्य समीर, सुधा दुबे - वरिष्ठ बाल साहित्यकार, श्री हरि वल्लभ शर्मा- कार्यकारी अध्यक्ष कला मंदिर, श्रीमती सीमा हरि शर्मा- वरिष्ठ साहित्यकार, श्रीमती राजकुमारी चौकसे - वरिष्ठ बाल साहित्यकार, श्रीमती प्रेक्षा सक्सेना-आकाशवाणी उद्घोषक एवं साहित्यकार,शेफालिका श्रीवास्तव - वरिष्ठ साहित्यकार, मधूलिका सक्सेना - वरिष्ठ साहित्यकार, सरिता बघेला-वरिष्ठ लघुकथाकार,मृदुल त्यागी - वरिष्ठ बाल साहित्यकार, कमलेश गुल - वरिष्ठ ग़ज़लकार एवं मुरैना से पधारे श्री राम अवतार शर्मा ने अपने अपने विचार व्यक्त किये।
चर्चा के दौरान डॉ विकास दवे ने बताया कि तीन प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है :
बच्चों की कार्यशाला बड़ों के मार्गदर्शन द्वारा,
बाल साहित्यकारों की कार्यशाला किसी वरिष्ठ बाल साहित्यकार के मार्गदर्शन द्वारा
एवं बच्चों और बड़े साहित्यकारों की सामूहिक कार्यशाला किसी वरिष्ठ बाल साहित्यकार के मार्गदर्शन द्वारा।
सभी बाल साहित्यकारों के द्वारा दिये गये सुझाव इस प्रकार रहे-
देशभर के बाल साहित्य में शोधकार्य कर चुके और कर रहे शोध अध्येताओं का सम्मेलन किया जाए।
बाल साहित्य की सभी विधाओं की कार्यशालाएं आयोजित की जाएं।
यथासंभव ये कार्यशालाएं सरकारी स्कूल और ग्रामीण क्षेत्रों में की जाएं।
ब्लाइंड स्कूल,मूक बधिर बच्चों, दिव्यांग बच्चों और अनाथालयों के बच्चों के लिए विशेष कार्यशालाएं आयोजित की जाएं।
कथा कथन कार्यशालाओं का आयोजन किया जाये।
टीचिंग, लर्निंग मटेरियल के साथ बच्चों को यदि कोई चीज़ पढ़ाई जाए तो उन्हें ज्यादा याद रहती है, इस तरह का साहित्य वर्णमाला, संख्या एवं रंग आदि के ज्ञान के लिए, निर्मित किया जा सकता है।
बच्चों को हिन्दी महीनों के नाम से संबंधित कविताओं या कहानियों का सृजन किया जाये।
वरिष्ठ साहित्यकारों जैसे प्रेमचंद,निराला और महादेवी वर्मा आदि द्वारा सृजित अप्रचलित बाल साहित्य प्रकाशित कर सामने लाया जाए।
लोक कथाएं लोक कथाओं को बच्चे सुने और उनको सुनकर वह हिंदी में लिखें। और अन्य गतिविधियों में शामिल करें।
पत्र लेखन की कार्यशालाओं का आयोजन किया जाए।
बच्चों में भाषाई संस्कारों को विकसित करने के लिए लोकोक्तियों कर मुहावरों को कहानी के रूप में प्रयोग कर प्रस्तुति दी जाए।
स्कूल्स में वार्षिक।पत्रिकाओं के संपादक मंडलों को प्रशिक्षण देने की कार्यशाला भी की जाए।
विषय परक लेखन जो कि भारतीय प्रतिमान के अनुरूप हो उस पर आधारित बाल साहित्य सृजन पर जोर दिया जाये।
बच्चों के सुंदर लेखन,शब्दकोश, भाषाई ज्ञान एवं वर्तनी शुद्धता, उच्चारण शुद्धता से संबंधित आलेख भी लिखे जाने की प्रेरणा देना है।
अंत में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने पर इस गीत को केंद्र में रखकर विभिन्न विधाओं में बाल साहित्य लेखन मर प्रकाशन का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। अगले माह तक इस विषय से संबंधित समस्त विधाओं पर लेखन आमंत्रित किया जाएगा इस पर सभी की सहमति बनी।
परिचर्चा के अगले सत्र में सभी उपस्थित बाल साहित्यकारों ने अपनी एक-एक बाल कविता-कहानी सुनाई।
सभी ने अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज कराई। भविष्य में आयोजित की जाने वाली कार्यशालाओं के लिए यह सभी सुझाव सराहनीय रहे जिनका क्रियान्वयन अतिशीघ्र ही किया जाएगा।
यह विश्वास निदेशक डॉ मीनू पांडे नयन ने सभी को दिलाया।
डॉ विकास दवे ने कहा कि आमंत्रित बाल साहित्य की समस्त रचनाओं को संकलित कर ई-पुस्तक के रूप में बाल साहित्य सृजन पीठ द्वारा प्रकाशित किया जाएगा।
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