प्रसंगवश विशेष :
दीपावली पर्व को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में मिला स्थान
भारत को मिला गौरव विश्व क्षितिज पर
- विजय प्रकाश पारीक , स्तंभकार
_प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर __
देश की विशिष्ट पहचान लाल किले से बुधवार को हुई घोषणा ने उत्साह का संचार किया है क्योंकि दीपोत्सव ज्योति पर्व हमारे देश भर में ओर हर वर्ग हर स्तर पर हर समाज द्वारा मनाया जाता है और इसके लिए समाज और परिवार द्वारा पूर्व तैयारी भी की जाती है , एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों के त्यौहार दीपावली पर्व अब विश्व के आठ सौ करोड़ से अधिक नागरिकों के लिए भी भारत की संस्कृति सामाजिकता ओर समरसता का प्रतीक प्रस्तुत करेगा । युनेस्को की घोषणा का व्यापक रूप से स्वागत हुआ है ।
एक ऐतिहासिक मान्यता
दीपावली, जिसे 'प्रकाश का त्योहार' के रूप में जाना जाता है, को अब वैश्विक स्तर पर एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा प्राप्त हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 10 दिसंबर 2025 को दीपावली को अपनी 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (इंटैंजिबल कल्चरल हेरिटेज - ICH) की प्रतिनिधि सूची' में शामिल कर लिया। यह मान्यता भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है, जो अब योग, कुंभ मेला और दुर्गा पूजा जैसे अन्य भारतीय तत्वों के साथ सूची में स्थान पा चुकी है। यह भारत का 16वां अमूर्त धरोहर तत्व है जो इस प्रतिष्ठित सूची में दर्ज किया गया।
दीपावली के महत्व, यूनेस्को के योगदान और अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की अवधारणा पर विस्तार कर देखें तो दीपावली: प्रकाश, आनंद और विजय का प्रतीक दीपावली, जिसे दीवाली या दीपोत्सव भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख और उत्सवपूर्ण पर्व है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है। दीपावली का शाब्दिक अर्थ है 'दीपों की माला', जो अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की, और अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
दीपावली की जड़ें प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में निहित हैं। मुख्य रूप से यह भगवान राम की 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। जब राम लौटे, तो अयोध्यावासियों ने दीपों से शहर को सजाया, जो आज भी इस पर्व की परंपरा का आधार है। जैन धर्म में यह भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि सिख परंपरा में गुरु हरगोबिंद जी की अमृतसर से मुक्ति के रूप में। इसके अलावा, यह लक्ष्मी पूजा का भी पर्व है, जहां धन-समृद्धि की देवी की आराधना की जाती है।
भारत के अलावा, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिजी और मॉरीशस जैसे देशों में भी दीपावली का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, जो इसकी वैश्विक अपील को दर्शाता है।
उत्सव की परंपराएं और रीति-रिवाज
दीपावली का उत्सव पांच दिनों तक चलता है: धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली (अमावस्या), अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) और भाई दूज। मुख्य दिन पर घरों को साफ-सुथरा कर रंगोली से सजाया जाता है, दीये जलाए जाते हैं, और पटाखों से आकाश जगमगाया जाता है। मिठाइयां, फलाहार और पारंपरिक व्यंजन जैसे लड्डू, काजू कतली, और हलवा साझा किए जाते हैं। यह पर्व परिवारिक एकता, दान-पुण्य और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
आधुनिक समय में दीपावली पर्यावरण संरक्षण के साथ जुड़ गई है, जहां इको-फ्रेंडली पटाखों और प्लास्टिक-मुक्त उत्सव पर जोर दिया जाता है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दौरान बाजारों में खरीदारी और हस्तशिल्प की बिक्री बढ़ जाती है।
यूनेस्को: वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षक
यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जिसकी स्थापना 16 नवंबर 1945 को पेरिस में हुई थी। इसका मुख्यालय पेरिस में स्थित है और इसका उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना है। विश्व में 194 सदस्य देशों के साथ, यूनेस्को की भूमिका सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने, वैज्ञानिक सहयोग को प्रोत्साहित करने और शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण है।
भारत यूनेस्को का संस्थापक सदस्य है और इसके तहत ताजमहल, कोंकण के चालुक्य स्मारक जैसे स्थलों को विश्व धरोहर सूची में स्थान मिला है। अमूर्त धरोहर के क्षेत्र में भी भारत सक्रिय रहा है, जहां रामलीला, चरक संहिता जैसी परंपराओं को मान्यता मिली है। यूनेस्को की ये पहलें न केवल सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करती हैं, बल्कि वैश्विक समझ को भी बढ़ाती हैं।
अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर: अदृश्य लेकिन जीवंत विरासत
अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage - ICH) का विचार 2003 में यूनेस्को द्वारा अपनाए गए कन्वेंशन से उभरा, जिसका पूरा नाम 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर संधि' है। ICH वे जीवंत परंपराएं हैं जो भौतिक रूप में नहीं दिखतीं, लेकिन समुदायों की पहचान, इतिहास और सामाजिक बंधनों को बनाए रखती हैं। इसमें शामिल हैं:
मौखिक परंपराएं और अभिव्यक्तियां: लोककथाएं, गीत, महाकाव्य।
कला और प्रदर्शन: नृत्य, संगीत, नाटक।
सामाजिक प्रथाएं, रीति-रिवाज और उत्सव: जैसे दीपावली, जो सामाजिक एकता को मजबूत करती हैं।
प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान: पारंपरिक कृषि, चिकित्सा।
हस्तशिल्प और परंपरागत कौशल: मिट्टी के बर्तन बनाना, कपड़ा बुनाई।
यूनेस्को की ICH प्रतिनिधि सूची में विश्व भर से लगभग 700 तत्व शामिल हैं, जो इनकी वैश्विक महत्व को मान्यता देते हैं। यह सूची न केवल संरक्षण को प्रोत्साहित करती है, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे लिंग समानता, शिक्षा और सामुदायिक कल्याण से जोड़ती है। दीपावली के संदर्भ में, यूनेस्को ने इसे सामाजिक बंधनों को मजबूत करने, पारंपरिक शिल्प को समर्थन देने और उदारता व कल्याण की मूल्यों को बढ़ावा देने वाली धरोहर के रूप में वर्णित किया है।
दीपावली की मान्यता का वैश्विक महत्व
यह मान्यता नई दिल्ली के लाल किले में आयोजित यूनेस्को की 20वीं अंतर-सरकारी समिति की बैठक के दौरान दी गई, जहां 79 देशों के 67 नामांकनों की समीक्षा की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'भारत के लिए ऐतिहासिक दिन' बताते हुए कहा कि दीपावली हमारी सभ्यता की आत्मा है, जो प्रकाश और धर्म का प्रतीक है। संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसे 'अपार गर्व का क्षण' कहा।
वैसे युनेस्को की सूची में भारत की 15 सांस्कृतिक विरासत शामिल हैं दीपावली त्यौहार के साथ अब 16 होंगी,। भारतीय संस्कृति मंत्रालय की तैयारी जारी है और आगे चलकर इस सांझी सांस्कृतिक विरासत में छठ पर्व ओरछा का राम राजा मंदिर ओर वाल्मीकि रामायण को भी जोड़ें जाने की है । गत दिवस घोषित दीपोत्सव ज्योति पर्व को मिली अंतरराष्ट्रीय
इस मान्यता से दीपावली की वैश्विक लोकप्रियता बढ़ेगी, जो पहले से ही भारतीय डायस्पोरा के माध्यम से दुनिया भर में मनाई जाती है। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करेगी और युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ेगी। साथ ही, यह पर्यावरण-अनुकूल उत्सवों को बढ़ावा देकर सतत विकास में योगदान देगी।
दीपावली की यह मान्यता हमें याद दिलाती है कि हमारी अमूर्त धरोहरें न केवल अतीत की स्मृतियां हैं, बल्कि भविष्य की नींव भी हैं। आइए, इस प्रकाश पर्व को और अधिक चमकदार बनाएं, ताकि अंधकार हमेशा दूर रहे। जय दीपावली! शुभ दीपावली।
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