वीज़ा की दीवारें, टूटते सपने: भारतीय टेक पेशेवरों पर अमेरिकी सख्ती
[रिवर्स ब्रेन ड्रेन की आहट: बदलती अमेरिकी इमिग्रेशन नीति]
[एक नीति, हजारों ज़िंदगियाँ: अमेरिकी वीजा फैसले का मानवीय पक्ष]
• प्रो. आरके जैन “अरिजीत”
अमेरिका की नई वीजा नीति ने हजारों भारतीय टेक पेशेवरों और उनके परिवारों को एकाएक गहरी अनिश्चितता के भंवर में धकेल दिया है। दिसंबर 2025 में, जब बड़ी संख्या में भारतीय एच-1बी वीजा धारक छुट्टियों के दौरान भारत में थे, उसी समय अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने 15 दिसंबर से एच-1बी और एच-4 आवेदकों के लिए सोशल मीडिया व ऑनलाइन गतिविधियों की कड़ी और अनिवार्य जांच लागू कर दी। इसके तात्कालिक असर में भारत स्थित अमेरिकी दूतावासों ने दिसंबर की हजारों वीजा अपॉइंटमेंट्स रद्द कर उन्हें मार्च से जुलाई या उससे आगे, कुछ मामलों में अक्टूबर 2026 तक, पुनर्निर्धारित कर दिया। इस फैसले ने जहां पेशेवर योजनाओं को अस्त-व्यस्त कर दिया, वहीं परिवारों को भौगोलिक रूप से अलग-थलग कर दिया। कई लोग अमेरिका की नौकरी और भारत में अनिश्चित भविष्य के बीच फंस गए, जिससे मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक दबाव असहनीय स्तर तक बढ़ गया।
यह नई व्यवस्था 3 दिसंबर 2025 को घोषित की गई थी और 15 दिसंबर से प्रभावी कर दी गई। इसके तहत सभी एच-1बी, जो विशेष कौशल वाले पेशेवरों को दिया जाता है, और एच-4, जो उनके आश्रितों के लिए होता है, के आवेदकों की डिजिटल गतिविधियों की समीक्षा अनिवार्य कर दी गई। इसमें सोशल मीडिया पोस्ट, कमेंट्स, प्रोफाइल्स और अन्य सार्वजनिक ऑनलाइन डेटा शामिल है। इससे पहले यह नीति जून 2025 से केवल छात्र वीजा श्रेणियों एफ, एम और जे पर लागू थी। अब आवेदकों को फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अपने अकाउंट्स को पब्लिक रखने के निर्देश दिए गए हैं। भारत में चेन्नई और हैदराबाद जैसे कांसुलेट्स सबसे अधिक प्रभावित हुए, क्योंकि यहां टेक पेशेवरों की संख्या अधिक है और अधिकांश अपॉइंटमेंट्स कई महीनों तक आगे बढ़ा दी गईं।
इस नीति का मानवीय पक्ष बेहद गंभीर है। हैदराबाद के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की कहानी हजारों लोगों की स्थिति को दर्शाती है। वे वीजा स्टैंपिंग के लिए भारत आए थे, लेकिन अपॉइंटमेंट रद्द हो जाने से वे भारत में फंस गए, जबकि उनकी पत्नी और बच्चे अमेरिका में अकेले रह गए। कई कंपनियों ने अस्थायी रूप से रिमोट वर्क की अनुमति दी है, लेकिन यह समाधान सीमित है। प्रोजेक्ट लीडरशिप, प्रमोशन और दीर्घकालिक जॉब सिक्योरिटी पर खतरा मंडरा रहा है। कुछ मामलों में पुराने वीजा को “प्रूडेंशियल रिवोकेशन” के तहत रद्द किया गया, खासकर यदि किसी आवेदक का अतीत में कोई कानूनी संपर्क रहा हो, भले ही उसमें दोषसिद्धि न हुई हो। इससे री-एंट्री के लिए नया वीजा अनिवार्य हो जाता है। यह रिवोकेशन मुख्य रूप से पुराने कानूनी संपर्कों (जैसे गिरफ्तारी बिना दोषसिद्धि) पर आधारित है और अमेरिका में वैध रहने को प्रभावित नहीं करता, लेकिन बाहर से वापसी के लिए नया स्टैंपिंग जरूरी हो जाता है।
यह निर्णय ट्रंप प्रशासन की व्यापक इमिग्रेशन सख्ती का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। नई स्क्रीनिंग में यह भी देखा जा रहा है कि आवेदक ने कभी सेंसरशिप (फ्री स्पीच का दमन), कंटेंट मॉडरेशन, मिसइनफॉर्मेशन हैंडलिंग या फैक्ट-चेकिंग से जुड़ा काम तो नहीं किया। यह तथ्य महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री – जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन – भारतीय टैलेंट पर बड़े पैमाने पर निर्भर है। भारतीय पेशेवर न केवल तकनीकी भूमिकाएं निभाते हैं, बल्कि नवाचार और प्रोडक्ट डेवलपमेंट में भी अहम योगदान देते हैं। अब इस नीति के कारण प्रोजेक्ट्स में देरी, टैलेंट गैप और ऑपरेशनल चुनौतियां बढ़ रही हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता प्रभावित हो सकती है।
दीर्घकालिक दृष्टि से यह स्थिति “रिवर्स ब्रेन ड्रेन” को जन्म दे सकती है। कई भारतीय पेशेवर अब कनाडा, यूरोप या भारत में स्थायी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जहां इमिग्रेशन नीतियां अपेक्षाकृत स्थिर और पारदर्शी हैं। भारत सरकार ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए अमेरिका से मेरिट-आधारित और स्पष्ट प्रक्रिया अपनाने का आग्रह किया है। कूटनीतिक स्तर पर यह विषय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत-अमेरिका संबंध तकनीक, स्टार्टअप्स और इनोवेशन पर आधारित हैं। यदि टैलेंट का प्रवाह बाधित होता है, तो इसका असर केवल व्यक्तियों पर नहीं, बल्कि द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग पर भी पड़ेगा।
स्क्रीनिंग प्रक्रिया में वास्तव में क्या देखा जा रहा है, यह आधिकारिक रूप से पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। फिर भी माना जा रहा है कि अमेरिका विरोधी टिप्पणियां, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े जोखिम, राजनीतिक विचार, जॉब हिस्ट्री में विसंगतियां या संवेदनशील डिजिटल गतिविधियां जांच के दायरे में हैं। यहां तक कि कई साल पुरानी पोस्ट्स या परिवार के सदस्यों की ऑनलाइन गतिविधियां भी सवाल खड़े कर सकती हैं। यह चिंता स्वाभाविक है कि क्या एक पुराना मीम या टिप्पणी किसी के पूरे करियर को खतरे में डाल सकती है। प्राइवेसी विशेषज्ञ इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं, जबकि समर्थक इसे डिजिटल युग की अनिवार्यता बताते हैं।
ऐसी स्थिति में आवेदकों के लिए व्यावहारिक रणनीति बेहद जरूरी हो गई है। वीजा आवेदन से पहले सभी सोशल मीडिया प्रोफाइल्स की समीक्षा करना, विवादास्पद या राजनीतिक पोस्ट्स हटाना और ऑनलाइन उपस्थिति को पेशेवर बनाए रखना आवश्यक है। अपॉइंटमेंट्स कम से कम छह महीने पहले बुक करनी चाहिए और संभावित देरी के लिए पर्याप्त बफर टाइम रखना चाहिए। नियोक्ताओं से रिमोट वर्क या इमरजेंसी प्लान पर स्पष्ट बातचीत जरूरी है। यदि किसी को प्रूडेंशियल रिवोकेशन नोटिस मिला है, तो अंतरराष्ट्रीय यात्रा से पहले प्रमाणित इमिग्रेशन अटॉर्नी से सलाह लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गैर-आवश्यक विदेश यात्रा टालें और अपॉइंटमेंट पोर्टल को रोजाना चेक करें, क्योंकि कुछ मामलों में आगे देरी हो रही है।
यह नीति महज़ कुछ व्यक्तियों के सपनों और करियर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक नवाचार की उस बुनियाद को हिलाने वाली साबित हो रही है, जिस पर आधुनिक तकनीकी दुनिया खड़ी है। ट्रंप प्रशासन की यह कठोरता न केवल प्रवासी पेशेवरों के भविष्य को अनिश्चित बनाती है, बल्कि अमेरिकी टेक उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। आज की आपस में जुड़ी हुई दुनिया में तकनीकी उन्नति तभी संभव है, जब प्रतिभा का प्रवाह स्वतंत्र, सुरक्षित और भरोसेमंद हो। ऐसी परिस्थितियों में यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं और वैश्विक प्रतिभा की आवश्यकता के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाए। यदि यह संतुलन स्थापित नहीं हो पाया, तो इसका नुकसान केवल भारतीय पेशेवरों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री भी उन तेज़तर्रार दिमागों से वंचित हो सकती है, जिनके नवाचार और योगदान पर उसके भविष्य की दिशा निर्भर करती है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
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