काव्य :
मजदूर सही मजबूर नहीं
मजदूर सही मजबूर नहीं,
श्रम गीत मुझे गढ़ने दो,
मेहनत के मोती से मुझको,
अपने सपने बुनने दो।
आज मेरी बेटी ने मुझसे,
एक खिलौना मांगा है,
मानो जैसे आसमान से,
चाँद सलोना मांगा है।
बोझ अगर काँधे पर बढ़ता,
है तो थोड़ा बढ़ने दो,
मेहनत के मोती से मुझको,
अपने सपने बुनने दो।
रोज सबेरे इक ख्वाहिश मैं,
मन मे पाले चलता हूँ,
बिटिया के स्वप्नों की खातिर,
हर गम हँस के सहता हूँ।
रोटी की कीमत क्या होती,
कोई मुझसे तो पूछे,
निर्धन के सपनों की गाथा,
कोई मुझसे तो पूछे।
अंधकार के इस आलम मे,
सुख की बाती चुनने दो,
मेहनत के मोती से मुझको,
अपने सपने बुनने दो।
सुन्दर सपनों की खातिर हम,
काँटे ओढ़ा करते है,
जिंदा रहने की ख्वाहिश मे, तिल-तिल कर यूँ मरते है।
एक तमन्ना इस जीवन की,
बिटिया रानी पढ़ जाए,
चकाचौंध की इस आँधी से,
बच के आगे बढ़ जाए।
आशा के सागर से मुझको,
बूँद बूँद ही भरने दो
मेहनत के मोती से मुझको,
अपने सपने बुनने दो।
- मनोज कान्हे 'शिवांश' ,इंदौर