गोविंद प्रसाद शास्त्री स्वर्ण पदक सम्मान प्रारम्भ : "संस्कृत में एम. ए .फाइनल में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र को मिलेगा गोल्ड मेडल"
सागर । डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय ,सागर के संस्कृत विभाग में स्नातकोत्तर उत्तरार्ध कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र -छात्रा को "पंडित गोविंद प्रसाद शास्त्री" स्वर्ण पदक "/ गोल्ड मेडल मिलेगा।
यह स्वर्णपदक सरस्वती के वरद पुत्र वैदिक वाङ्गमय , व्याकरणशास्त्र साहित्यशास्त्र ,ज्योतिषशास्त्र ,दर्शनशास्त्र तथा पौरोहित्य कर्मकांड आदि विविध विधाओ के मूर्धन्य आचार्य , "ऋषिकुल लोकप्रिय दर्शन सिद्धांत विद्यालय के संस्थापक पंडित गोविंद प्रसाद शास्त्री जी ( जन्म -22अप्रैल 1907 ई महाप्रयाण 28 मार्च 1998 ई ) की पुण्य स्मृति में उनके पुत्र पंडित कृष्णकांत मिश्र,पंडित उमाकांत मिश्र,अध्यक्ष,श्यामलम् संस्था ,पंडित रमाकांत मिश्र निर्देशक ,ऋषिकुल विद्यालय,सागर तथा समस्त शास्त्री परिवार ने स्थापित कराया है।
डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के विधान अनुसार आजीवन गोल्ड मेडल स्थापित करने के लिए ढाई लाख रुपए जमा करना आवश्यक होता है । प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा,डोसा के निर्देशन में प्रशासनिक कार्यवाही पूर्ण कर आज प्रतिनिधिमंडल ने 2.50 लाख रुपये का बैंक ड्राफ्ट कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता जी को सौपा। कुलपति महोदया ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि यह स्वर्णपदक छात्रों के उत्साहवर्धन में बड़ी भूमिका निभाएगा।
प्रतिनिधिमंडल में प्रो अम्बिकादत्त शर्मा, पंडित उमाकांत मिश्र, पंडित रमाकांत मिश्र,पंडित श्रीराम शास्त्री, छोटे पंडित जी तथा डॉ ऋषभ भारद्वाज थे ।
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*संस्कृत सम्बर्धन में शास्त्री जी का योगदान*
शास्त्री जी अपने जीवनकाल में संस्कृत के संरक्षण -सम्बर्धन के लिए अनेक दृष्टि से कार्य करते रहे। उन्होंने सागरस्थ बुन्देलखण्ड के सबसे प्राचीन धर्मश्री संस्कृत ब्रह्मचर्य आश्रम ,सागर में प्राचार्य पद को अंलकृत करते हुए 21 हजार श्लोकों के प्रणेता साहित्याचार्य , अनुवाद शिरोमणि महात्मा पंडित प्रेमनारायण द्विवेदी जी एवं महामहोपाध्याय डॉ भगीरथ प्रसाद तिवारी /पद्मश्री आचार्य वागीश शास्त्री जी को दीक्षित कर संस्कृत जगत को महान रत्न दिए। इन रत्नों ने देववाणी की साधना में नवाचारों के प्रयोग से संस्कृत जगत में सागर नगर को प्रकाशित किया। शास्त्री ने संस्कृत भाषा और उसके साहित्य को रचनात्मक तथा रोजगारोन्मुखी बनाने के उद्देश्य से "सन 1967 में झंडा चौक गोपालगंज ,सागर में ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय स्थापना की। स्थापना वर्ष से ही अद्यतन विद्यालय में वेद व्याकरण, दर्शन ,ज्योतिष तथा पौरोहित्य कर्मकांड की शिक्षा दी जा रही है। विद्यालय से सैकड़ों छात्रों ने प्रवचन ,भागवद महापुराण वाचन ,कर्मकांड तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में राज्य और राष्ट्र स्तर की उपलब्धियां प्राप्त की हैं।सम्प्रति विद्यालय तद्वत संचालित है। शास्त्री जी के चार पुत्र रत्नों का सुखी समृद्ध परिवार है। मध्यम पुत्र श्यामाकांत मिश्र जी भगवान के सायुज्य को प्राप्त कर चुके हैं। श्यामकांत जी की पुण्य स्मृति में पंडित उमाकांत मिश्र ने "श्यामलम्" संस्था की स्थापना सन 2012 में की। तदोपरांत सागर शहर तथा समूचे बुन्देलखण्ड में साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में नव्य क्रांति का सूत्रपात किया। साहित्य से जनमानस को जोड़ने तथा साहित्यकारों को प्रकाश में लाने के लिए अनेक नवाचारों के प्रयोग किये गए हैं। साहित्यकारों के उत्साह वर्धन के लिए विविध प्रकार के पुरुस्कार प्रतिवर्ष दिए जाते है ।
- डॉ चंचला दवे,सागर