काव्य :
कौन सा दीपक जलाऊं मैं
मोमबत्तियां प्रकाश नहीं देती अब
अज्ञान का अंधकार नही मिटातीं
रुग्ण मानसिकता का तम
व्याप्त है समाज में,
कोई दीपक गुरु,
शिक्षा नहीं दे पा रहा,
दीपक,और मोमबत्तियों की लौ
राह नहीं दिखाती,
मोमबत्तियां रोशनी देकर
थक रहीं,
मोमबत्तियां द्रवित हो गल रहीं
दीपक,
मृतात्मा की शान्ति
और श्रद्धांजलि मात्र के प्रतीक बन गए हैं
हिंसा,बलात्कार,अपराध हैं पराकाष्ठा पर
कौन सा दीपक जलाऊं मैं
मोम के हृदय न बचे अब
मोमबत्तियां ही मात्र
ब्रज क्यों जलाऊं मैं
वह सद प्रकाश कहां से
लाऊं मैं
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र,भोपाल
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