काव्य :
डॉ नीलिमा रंजन भोपाल की दो लघु कविताएं
1
तथास्तु
मैं गीत हूँ, संगीत हूँ
पर सुर अपने किसे सुनाऊँ ?
मैं नृत्य हूँ, नदी हूँ
पर तालबद्ध कैसे हो पाऊँ ?
मैं बरखा का मेघ हूँ
पर बरसने किस ठौर जाऊँ ?
मैं शिव हूँ, शक्ति हूँ
पर विश्वास अपने किसे बताऊँ ?
मैं अनंत पहुँचती आशा हूँ
पतंग सी लहराती कहाँ तक जाऊँ ?
असीमित संभावनाओं का यह कोष,
सदुपयोग कर विश्व को बस मैं सजाऊँ।
तथास्तु।
2
मैं सबला
मैंने थामा एक हाथ,
और चलती रही
बिन उस हाथ का चेहरा देखे-
समझती रही, सोचती रही
हमसफर है कोई।
बरसों चलने के बाद
नजर उठाई
पाया नहीं कोई चेहरा
क्या कल्पना थी मेरी।
और कहाँ गया वह हाथ
ना जाने ?
अब मैं थी अकेली
संपूर्ण !!!!
- डॉ नीलिमा रंजन ,भोपाल
Tags:
काव्य
.jpg)
