"देश और विदेश में हिंदी के महत्व और आवश्यकता" पर वैज्ञानिकों के साथ ऑनलाइन चर्चा आयोजित
सागर । इंडियन साइंस कम्युनिकेशन सोसायटी लखनऊ, साइंस टुगेदर, और लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरमेंट (हांग कांग) के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, 29 सितंबर को भारतीय समयानुसार दोपहर 3 बजे, ज़ूम मीटिंग के माध्यम से "देश और विदेश में हमारी हिंदी के महत्व और आवश्यकता" पर अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस गोष्ठी में विज्ञान जगत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने हिंदी भाषा के विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में उपयोग की संभावनाओं पर गहन चर्चा की। इस चर्चा ने हिंदी भाषा के वैश्विक महत्व और विज्ञान के क्षेत्र में इसके बढ़ते उपयोग पर जोर दिया, साथ ही हिंदी के व्यावसायिक और सांस्कृतिक प्रभाव को भी उजागर किया।
मुख्य अतिथि ,स्वतंत्र फिल्म समीक्षक , आलोचक डॉ. सुजाता मिश्र (सागर, मध्यप्रदेश) ने हिंदी भाषा के बढ़ते व्यवसायिक स्वरूप और वैश्विक प्रचार-प्रसार पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि हिंदी सिनेमा आज हिंदी भाषा के प्रचार का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। साथ ही, उन्होंने देवनागरी लिपि के प्रयोग पर जोर दिया और कहा कि वर्तमान पीढ़ी हिंदी को रोमन लिपि में लिख रही है, जिससे देवनागरी लिपि के प्रयोग में कमी आई है। उन्होंने आग्रह किया कि हिंदी को देवनागरी लिपि में ही लिखा जाना चाहिए ताकि लिपि का संरक्षण हो सके।
डॉ. यू.के. सरकार (निदेशक, नेशनल ब्यूरो ऑफ़ फिश जेनेटिक रिसोर्सेस, भारत) ने बताया कि इस वर्ष उनके विभाग ने हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत विज्ञान और तकनीकी शब्दावली पर हिंदी में सेमिनार और वर्कशॉप का आयोजन किया। उन्होंने बताया कि विज्ञान से जुड़े विभागों में ऐसा करना एक अनूठी और महत्वपूर्ण पहल है, क्योंकि सामान्यतः हिंदी दिवस पर साहित्यिक गतिविधियों जैसे कविता, निबंध, भाषण आदि का आयोजन होता है। विज्ञान जगत में हिंदी के उपयोग ने यह साबित किया है कि भाषा के माध्यम से जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को भी समझाना संभव है।
गोष्ठी की मॉडरेटर इकोलॉजिस्ट डॉ. काव्यांजलि शुक्ला ने हांग कांग में हिंदी के प्रयोग पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि जब कोरोना महामारी के दौरान हांग कांग में स्थिति गंभीर हो रही थी, तब उन्होंने हिंदी भाषा में वीडियो बनाकर महामारी की वास्तविकता और बचाव के उपाय सोशल मीडिया पर साझा किए, जिससे भारतीय समुदाय को सतर्क किया जा सका।
डॉ. वी.पी. सिंह ने विज्ञान और तकनीकी विषयों की पुस्तकों के हिंदी अनुवाद पर चर्चा की। उन्होंने कृषि विज्ञान और मत्स्य उद्योग में हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रयोग के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इससे किसानों और उद्योग से जुड़े कर्मियों को लाभ होगा, क्योंकि यह उनके लिए समझने और काम करने में सहायक सिद्ध होगी।
इस कार्यक्रम में डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी जुड़े थे, जिन्होंने वैज्ञानिकों से अनेक प्रश्न पूछे और उन सभी का उत्तर हिंदी भाषा में दिया गया। इस प्रकार, इस गोष्ठी ने हिंदी भाषा के वैश्विक महत्व और विज्ञान के क्षेत्र में इसके बढ़ते उपयोग पर जोर दिया।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, और यह गोष्ठी विज्ञान, शिक्षा और व्यवसायिक क्षेत्रों में हिंदी के महत्व को बढ़ावा देने में सफल रही।