लघुकथा : संजा पर्व
"अरे कुमुद तुने संजा मांडी या नहीं।" गांव से आई वर्षीय मधु ने अपनी सहेली कुमुद से पूछा।
"ये संजा क्या होती है, हमारे यहां नहीं मांडते ।" कुमुद कंधे उचका कर बोली।
"अरे बुद्धु श्राद्ध पक्ष चल रहा है और श्राद्ध पक्ष में सोलह दिन तक अपने मालवा-निमाड़ में संजा पर्व मनाया जाता है। गोबर से संजा बाई की आकृति दिवार पर उकेरी जाती है, आरती करते हैं, संजा बाई को भोग लगाते हैं और सब सखी सहेलियां मिलकर संजा बाई के गीत गाती हैं। " मधु ने नानी के लहजे में समझाते हुए हाथ नचाकर कहा। कुमुद बोली -"आजकल ये सब कौन करता है, मोबाइल टीवी का जमाना है। तू गांव से आई हे ना इसलिए तुझे इतना पता भी है....हम सिटी में रहने वाले...ये सब क्या जाने। हमें तो इसके बारे में हमारे मम्मी पापा ने आज तक नहीं बताया और तो और मम्मी तो कभी दादी के गांव भी नहीं जाती....कहती हैं बच्चे गंवार हो जायेंगे ।" हंसते हुए कुमुद बोली। मधु ने समझाया- ग्रामीण लोगों ने ही हमारी लोक संस्कृति को आज भी बचा रखा है। दोनों सहेलियों की बात सुन रही कुमुद की मम्मी आज स्वयं को 13 वर्षीय मधु से भी छोटा महसूस कर रही थी।
- हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर मध्यप्रदेश