नव गीत विधा पर विमर्श एवं जाड़ा (जड़कारे) पर केन्द्रित रचनाओं पर काव्य गोष्ठी हुई
"बोल कभी भी व्यर्थ नहीं जाया करते हैं,
शब्द शब्द के अपने अपने अर्थ निकल आया करते हैं।"
भोपाल । तुलसी साहित्य अकादमी मुख्यालय भोपाल द्वारा संचालित की जा रही सृजन श्रंखला - 43 के अंतर्गत नव गीत विधा पर विमर्श एवं जाड़ा (जड़कारे) पर केन्द्रित रचनाओं पर काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. मोहन तिवारी आनंद, राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल ने की, मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक श्री गोकुल सोनी, अति विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध गीतकार श्री दिनेश प्रभात जी तथा विशिष्ट अतिथि श्री प्रेम चंद्र गुप्ता जी रहे।
मंचस्थ अतिथियों ने माॅं सरस्वती की पूजा अर्चन कर दीप प्रज्ज्लित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
श्रीमती आशा श्रीवास्तव ने माॅं वीणापाणी की वंदना का पाठ किया।
मंचस्थ अतिथियों के स्वागत उपरांत डा.मोहन तिवारी आनंद के नवगीत संग्रह "तुम्हीं चेहरा तुम्हीं दर्पण " का लोकार्पण किया। लोकार्पण उपरांत विमर्श में नवगीत विधा पर विस्तार से विमर्श किया गया जिसमें दिनेश प्रभात, प्रेमचंद गुप्ता, गोकुल सोनी, डा.मोहन तिवारी आनंद,सुरेश पटवा तथा डा.विमल शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किये।
डा.आनंद ने लोकार्पित नवगीत संग्रह से नवगीत -"बोल कभी भी व्यर्थ नहीं जाया करते हैं।
शब्द शब्द के अपने अपने अर्थ निकल आया करते हैं।"का पाठ किया।
द्वितीय सत्र में जड़कारे पर केन्द्रित रचनाओं का पाठ किया गया जिसमें प्रथम कवि के रूप में श्री कमलेश नूर ने-" किस तरह वार करते हैं, शब्दों के तीर से।" ग़ज़ल पढ़ी।
सुन्दर लाल प्रजापति ने -"बीत जायेगी शबे ग़म क्यों उदास हो तुम" ग़ज़ल को पढ़ा।
विशेष अतिथि श्री प्रेम चंद गुप्ता जी ने -" ओढ़ कुहासा धरती सोई,और लिहाफ में सोई मुनिया। आ तू भी अब सो जा मुनिया।"
तुलसी साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष श्री शरद व्यास ने जड़कारे का गीत पढ़ा-
"ठंड लगी तो बाहर भागे,धूप लगी तो अंदर।"
श्री सुरेश पटवा जी ने -"देखो ठंड का मौसम आया ।" रचना का पाठ किया
तुलसी साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय महासचिव डा.शिव कुमार दीवान ने ठंड पर केन्द्रित दोहे पढ़े- "मौसम ने अंगड़ाई ली,ठंड कपाये अंग।1aसूरज सरमाने लगा,
मचलन लगे अनंग।।"
गोपाल देव नीरद ने-" तुम्हारे साथ मैं चेहरा नहीं बदलता था । सफ़र में पैर नहीं दिल लेके चलता था।"
धर्मदेव सिंह ने -पथिक तुम दूर मत जाना, क्षितिज से लौट भी आना, हुई हो भूल कोई तो, हमें सब माफ कर जाना।" पढ़ा।
डा.अशोक तिवारी अमन जी ने पढ़ा-"भारी ठिठुरन रात भर, अलसाई सी भोर।
ज्यों कुहरे के खौफ से,पक्षी भूले शोर।"
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री गोकुल सोनी जी ने सर्दी पर अपनी बुंदेली रचना सुनाते हुए कहा।
"बंड़ी, अचक़न, मफलर, स्वेटर पैरें बब्बा कंप रये।
इतै कपड़ा पैरैं फिर रये, देख बिजूका लग रहे।
टीचर मैडम बुने सलाई,देखौ सर्दी आई।"
दीपक पंडित ने-"शीत से ठिठुरी हुई है रात भी,
आग तपने को चली है रात भी। बंद सारी खिड़कियां और द्वार हैं। घर में ही दुबकी हुई है रात भी।"
गोष्ठी में 35 कवियों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं जिनमें मनीष बादल, शिवराज सिंह आजाद, आशा श्रीवास्तव, बिहारी लाल सोनी,मलिक सिंह मलिक,सीला सोनी,नीलम पाठ आदि प्रमुख रहे।
कार्यक्रम का संचालन डा.अशोक तिवारी अमन, अध्यक्ष तुलसी साहित्य अकादमी जिला शाखा भोपाल ने किया ।
अंत में तुलसी साहित्य अकादमी के महासचिव डा,.शिव कुमार दीवान ने सभी रचनाकारों का आभार ज्ञापित किया।
डा.मोहन तिवारी आनंद
राष्ट्रीय अध्यक्ष
तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल मध्यप्रदेश
मोबाइल -9827244327
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