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लघुकथा :आरक्षित सीट - डॉ. सत्येंद्र सिंह, पुणे महाराष्ट्र


 लघुकथा 

                आरक्षित सीट

 रामानंद गायकवाड जब से 60 वर्ष के हुए तो उन्होंने तुरंत सीनियर सिटीजन का कार्ड बनवा दिया और सिटी बस में सीनियर सिटीजन की सीट पर बैठ कर घूमने का प्रयास शुरू कर दिया । वैसे उन्हें घूमने का शौक नहीं था, काम के कारण घर से बाहर निकलना ही पड़ता। चालीस रुपए में दिन भर यात्रा करने का अवसर मिलने पर उन्हें खुशी हुई। परंतु उन्होंने जब देखा कि हर यात्री को चालीस रुपए में दैनिक यात्रा का पास मिलता है तो उन्हें सीनियर सिटीजन हेतु आरक्षण बेमानी लगने लगा। फिर भी आरक्षित सीट का लाभ तो था ही। इसी में उन्होंने संतोष कर लिया।

     अब जब भी बस में घुसते सीटों के ऊपर बस में देखने लगते जहां सीनियर सिटीजन के लिए आरक्षित सीट लिखा रहता तो वहां पहुंचते और सीट न खाली होने पर सीट के पास ही खड़े हो जाते तथा इंतजार करते कि  सीट पर बैठे हुए लोग अगर सीनियर सिटीजन नहीं है तो उनके लिए सीट खाली कर दें और उन्हें बैठने दें। किसी युवक को बैठा देखते तो कहते कि सीट खाली करो क्योंकि सीट सीनियर सिटीजन के लिए आरक्षित है। कभी युवक सीट से उठकर खड़े हो जाते और उन्हें बैठने देते। वे संतुष्ट होते। कभी कभी युवक बैठे रहते और उन्हें देखकर नहीं उठते तो गायकवाड़ कंडक्टर से बोलते या सीट खाली कराने के लिए इशारा करते । जब युवक सीट खाली नहीं करता बैठा रहता तो वे बड़े परेशान हो जाते।  सोचते कि देश में यह क्या हो रहा है । सरकार वृद्धो के लिए इतना कुछ कर रही है । तरह तरह की सुविधाएं दे रही है उनके शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रख रही है, लेकिन यह युवक सीनियर सिटीजन का, जो उनके पिता की उम्र के होते हैं,  उन्हें आराम देने के लिए सीट भी नहीं दे सकते जबकि सरकार ने वह सीट सीनियर सिटीजन के लिए निर्धारित कर रखी है । ऐसे ही सीनियर सिटीजन की सीट के पीछे दिव्यांग जनों के लिए दो सीट आरक्षित रहती हैं।  वहां भी कई बार उन्होंने युवकों को बैठा  पाया और कई बार यह भी देखा कि दो दिव्यांगजन बस में सवार हुए और उन्होंने जबरदस्ती उनकी आरक्षित सीट पर बैठे युवकों को दिव्यांग सीट से उठा दिया । पर वह सीनियर सिटीजन  होते हुए भी केवल कह कर रह जाते, उनको उठा नहीं पाते उन्हें बेहद अफसोस होता कि जब बस में  लिखा है कि सीट सीनियर सिटीजन के लिए है तो युवकों को उन पर नहीं बैठना चाहिए और अगर कोई सीनियर सिटीजन नहीं है तो बैठ सकते हैं परंतु कोई सीनियर सिटीजन आता है तो उन्हें सीट खाली करके सीनियर सिटीजन को बैठने देना चाहिए।  इस प्रकार की अनदेखी  व्यक्तियों की वृद्धो के प्रति लापरवाही या अपनी जिम्मेदारी से भागने की प्रवृत्ति उन्हें अच्छी नहीं लगती । कई बार सभा समारोह में जब भी उन्हें कोई मौका मिलता तो वे इस बात का उल्लेख करते कि युवक बस में सीनियर सिटीजन के लिए आरक्षित सीट पर बैठ जाते हैं और उठते नहीं । क्या इसके लिए बस चलाने वाला प्रशासन कुछ कर सकता है क्योंकि कंडक्टर के कहने पर भी ऐसे युवक नहीं उठाते तो वह भी केवल कहकर चुप रह जाता है। सीनियर सिटीजन के लिए सरकार जागरुक है पर समाज कब जागरूक होगा।

    -  डॉ. सत्येंद्र सिंह,  पुणे महाराष्ट्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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