समर्पण काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ
मुजफ्फरनगर । हिंदी, उर्दू साहित्य को समर्पित संस्था *समर्पण* की एक रचनात्मक काव्य गोष्ठी का आयोजन योगेन्द्रपुरी रहमत नगर में आज के संयोजक संस्था उपाध्यक्ष सलामत राह़ी जी के आवास पर सम्पन्न हुई। राह़ी ने सह्रदयता से सभी शायरों व कवियों का हार्दिक सम्मान किया।
आज की गोष्ठी के अध्यक्ष श्री योगेन्द्र सोम जी रहे।
संचालन डॉ आस मोहम्मद अमीन ने किया,
मुख्य अतिथि - महबूब आलम एडवोकेट ،और नदीम अख़्तर नदीम ,रहे।
उपस्थित रचना कारों ने अपनी बेहतरीन रचनाएं पेश करके गोष्ठी को सफल बनाया।
*योगेन्द्र सोम-
"है दुनिया तमाशा तमाशों के मेले
लो आ गए हम अकेले अकेले"
*अब्दुल हक़ सह़र-
"ग़मों से लड़ रहा है दिल मुसलसल
सिपाही जंग ए मैदान में
सल़ामत राह़ी-
"जनवरी के माह में मौसम जो ठंडा हो गया
जिसको देखो कह रहा हैं चैन दिल का खो गया"
*डाॅ आस मुहम्मद अमीन- "किसी भी हाल में नाराज़गी से मत घबरा
ख़फ़ा जो होते हैं फिर वो ही प्यार करते हैं"
*सुनीता मलिक सोलंकी-
"खिलें गुलशनों सा न्यारा वतन है
यही तो हमारा जो प्यारा वतन है "
*योगेश सक्सेना-
"नज़रे बहुत हैं महफिल में
फिर भी एक नजारे की तलाश है,
वो है किसी की बाँहों में इसलिए महफिल मेरी उदास है"
*कवि सुशील स्वयं-
"हर रोज नया सबक सिखाती है जिंदगी
कभी हंसाती है कभी रुलाती है जिंदगी "
*मुहम्मद मुस्तफ़ा क़माल-
"तेरा दीवाना समझते हैं ज़माने वाले
मुझको बेगाना समझते हैं ज़माने वाले"
*रज़ा शाहपुरी-
"शिफ़ा दवा से, ज़हर से कज़ा नहीं होती
के जब तलक मेरे रब की रज़ा नहीं होती"
ब्रजेश गर्ग-
"छब्बीस जनवरी पंद्रह अगस्त है त्यौहार हमारे "
*लईक अहमद-
"ज़माने से कह दो नहीं मिट सकेगा फ़साना हमारा "
*नद़ीम अख़्तर नद़ीम-
"मान ली मेरी नसीहत जानकर अच्छा लगा
दोस्तों ने की ह़िमायत जानकर अच्छा लगा"
*कवि गुमनाम-
"छा गये है बादल नफरतों के जहान में
लगता है घर बसा लूं जा के आसमान में"
*अल्ताफ मशअल ने वतन को समर्पित,कलाम पेश किया।
गोष्ठी में उपस्थित, राष्ट्रपति पुरुस्कार प्रापत हिदायत तुल्लाखाँ, ज़फ़र ताब ख़ां आदि गणमान्य श्रोताओं की उपस्थिति ने गोष्ठी में चार चाँद लगाए,
गोष्ठी के अंत में सभी ने शायर सैयद अल़ीम अख़्तर अल़ीम और संरक्षक के बहनोई जीश़ान बेग की मृत्यु हो जाने पर दो मिनट का मौन धारण कर उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की !
सचिव समर्पण
सुनीता मलिक सोलंकी