ad

कहानी : निस्वार्थ सेवा - डोली शाह ,असम


 कहानी

निस्वार्थ सेवा

डोली शाह


          सर्दियों का मौसम था ।सूरज की मीठी किरणें रोम- रोम को महका रही थी। छुट -पुट दुकाने भी लग ही चुकी थी। सर्दियों की ठिठुरन में भी दुकानदार अपने डब्बा- डब्बियों से खेल रहे थे।

          अचानक एक भरखर  युवा महिला, सपाट वदन, गेहूंआ रंग, होठों पर गहरी लालिमा, मोटे-मोटे काजल और लहराता आंचल लिए, सामने से गुजरते देख मानो सब की सिटृटी- बिट्टी गुम हो रही थी । चेहरे की हवाइयां देखते ही बन रही थी।

        इतने में एक गुमटी   पर --- अरे भैया, एक पानी की बोतल दे दीजिए,  लेकिन पैसे अभी नहीं दूंगी!

 " मेरी तो अभी तक बोहनी भी  नहीं हुई है कैसे दूं !"दुकानदार ने झट से कहा कहा।

 " दे दीजिए भैया! भगवान आपका भला करेगा!"

          बीजू  सोच में पड़ गया। लीजिए, --- बुदबुदाते स्वर में--" कैसे-कैसे लोग आ जाते हैं, "मगर शाम तक दे दीजिएगा।"

  "हां हां , दे दूंगी।

इतना कहते हैं वह वहां से चली गई। बिंजू गंभीर मन से सोचने लगा। पता नहीं आज  बिक्री- बांटा होगा भी या नहीं !सुबह-सुबह ₹20 लेकर चली गई।

          घड़ी की सुइयां बढ़ती गई। एक रुपए भी नसीब ना हुआ। बिरजू बहुत दुखी हुआ लेकिन अगली सुबह से ही मानो लक्ष्मी स्वयं उसकी दुकान पर पधार गई। सप्ताह में लाने वाली वस्तुएं अब उसे तीसरे दिन ही लानी पड़ती,  जिससे लोगों की नजरे उसे पर लगी रही।

 आसपास के लोग तो उसे व्यंग कर कह भी देते , आजकल तो वीजू पर स्वयं लक्ष्मी मेहरबान है ।हमें भी जरा उपाय बता दो। 

          अब  उसके अंदर भी मन ही मन भाव जगने लगे। बिरजू अब परिवार की हर जरूरतो को बड़ी बखूबी ढंग से पूरा करता, जिससे पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। सुख -शांति समृद्धि का वास हो गया।अब पत्नी नीलू भी बहुत खुश रहती, लेकिन नीलू की अक्सर अस्वस्थता देख बिरजू थोड़ा परेशान रहने लगा । एक दिन बिरजू को गुमसुम देख  नीलू पूछ बैठी ।

         " बात को बदलते हुए,  गुड़िया  को देख पुराने दिन स्मरण हो गये,  जब एक-एक कलम खाता के लिए वो रोती रोती स्कूल जाती थी।" बिरजू ने कहा।

    "सचमुच,  वह सोचने से वदन सिहर जाता है।" नीलू  ने कहा।

    सामने से एक महानुभव गेरुआ वस्त्र,  हाथों में कमंडल , मस्तक पर लिपटा चंदन  लिए ,  "अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो, बेटा ।"

  " बिरजू दो पल नजर दौड़ाया।  ₹500 की नोट लिए आगे बढ़ा ही था कि आशीवादों की लड़ियां देख वह खुद को रोक न पाया और नीलू की तबीयत की सूचना दी । 

" इतने में वह कहने लगे , बेटा , तुम चिंता मत करो , वक्त पर दवाइयां खिलाओ,  सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारे ऊपर तो ऐसा आशीर्वाद है जिसे चाह कर भी कोई तुम्हारा बाल भी    बांका  नहीं कर सकता ।

 " बिरजू मन ही मन  सोचता रहा, उनसे विस्तार से जानने की इच्छा व्यक्त की।  " 

"   तुमने  कुछ वर्ष  पहले शायद किसी ऐसी प्यासी को पानी पिलाया था जो बहुत ही प्यासी थी।  उसकी रोम- रोम की दुआएं  तुम्हें आज सातवां  आसमान पर ले गया। बिजू गंभीर हो उनकी बात बड़ी ध्यान से सुनता रहा। 

      नीलू भी महानुभाव की बातो  से बहुत प्रभावित हुई। सौभाग्य बश अगले सप्ताह ही सालगिरह का मौका था।     

       तौफे के तौर पर नीलू के कहने पर दोनों ने मिलकर इस जाति के लिए एक  प्लॉट दान कर दिया,  जिससे पूरी कोलोनी ने उनके फैसले का भरपूर विरोध भी किया ,लेकिन  दोनों अपने फैसले पर अडिग रहे। वहां न जाने कितनी ही गरीबों को आसरा मिल गया।      

          माता-पिता के इस सेवा भावना को देख गुड़िया भी गरीबों की सेवा के लिए सदा तत्पर रहती।   सेवा भावना मानो उसके हृदय में रक्त प्रवाह  बनकर दौड़ता था । 

           उसकी इसी भावना को देख वेलफेयर ट्रस्ट की ओर से  गुड़िया को सम्मानित भी किया गया ।  सम्मान पाकर   पूरी सभा को संबोधित करते हुए गुड़ियां ने  सब कुछ का श्रेय अपने पिता को देते हुए उनका मान बढ़ाया , जिससे माता- पिता का सीना चौड़ा हो गया और तीनों  मिलकर   सम्मान ग्रहण करते हुए  सभा को सुशोभित किया । पिता भावनाओं में बह  छलछलाई आंखों से" प्राउड ऑफ यू बेटा " तो  वही गुड़िया चरण- स्पर्श करते हुए आई एम प्राउड ऑफ यू , यू आर मायफादर एंड मदर." ....

   -   डोली शाह

निकट- पी एच ई

पोस्ट- सुलतानी छोरा

जिला- हैलाकांदी

असम-788162

मोबाइल-9395726158

मेल-.shahdolly@gmail.xom

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post