काव्य : लोग
आधे लोग परेशान हैं
दुनियां में
अपनी
मानसिक स्थितियो से
डिप्रेशन ,
ऑटिज्म ,
मूड डिसआर्डर, नर्वसनेस,
एंकजाइटी, सिजोफ्रेनिया,
सोशल एंक्जायाटी
वगैरह वगैरह से।
और ढेर सारे लोगों को
पता ही नहीं
कि उनकी मनोदशा ठीक नहीं है।
वे उनकी बातों में परिवेश की बुराई कर
अपनी डींगे हांककर
खुद की मानसिक चिकित्सा कर लेते हैं चुपचाप ।
कुछ खीज निकालते हैं बीबी बच्चों पर
या पीते हैं शराब
और मानसिक बीमार बना देते हैं परिवेश ।
काश बन सके
वो दुनियां
जहां सब ग्रंथि मुक्त हो
सुकून से सो पायें सितारों की छांव में और
भोर के सूरज से जी भर
मन की बातें कर सकें
हवा के झोंको का , क्यारी के फूलों से
अन्तर्संवाद सुन समझ
लिख सकें
दो शब्द बेझिझक
प्यार के ।
- विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल
7000375798
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