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काव्य : ग़ज़ल/ग़ुल खिला दे - प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल

 


काव्य : 

ग़ज़ल/ग़ुल खिला दे

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ग़ुल खिला दे कब तलक बैठा रहेगा खार में|

शातिरों का हो चुका कब्जा हर इक बाज़ार में

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कौन से ईमान की चर्चा करें भी आज हम

आजकल ईमान बिकता है सरे बाज़ार में|

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आदमी की खाल ओढ़े भेड़िये जब चल रहे

फर्क कैसे हो भी मालुम रहबरों-गद्दार में|

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इक नदी जो आब ले कर कल हिमालय से चली

वो चली तो रुक गई कहते हैं सब हरि द्वार में|

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आज कल पाखंड लेकर जो जमाने में चलें

ये हक़ीक़त वो हुए मशहूर इज़्ज़तदार में|

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पैरवी ईमान की होती नहीं इस दौर में

लोग कुछ बैठे दिखे जजमेंट के आसार में|

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कोई बैशाखी तो खोजो जो लगा दे पार भी

अब यकीं होता सफीने की नहीं पतवार में

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हौसला रख असलियत में हौसले में जान है

ख़ास तो ये जान होती है नहीं हथियार में|

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जो उड़ानों में थे उनके पर हैं काटे जा चुके

क़ातिलों की है निज़ामत देखिए संसार में|


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प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल म.प्र.

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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