काव्य :
जीवन का समन्वय
आगमन है चिर प्रतीक्षित
जगत में ऋतु राज का,
जम गया हिम विंदु-सा
श्रम स्वेद सारे काज का।
खिलेंगे आशा-सुमन
कोयल की कूक वसंत में,
धूप सतरंगी भरेगी
ऊष्मा जीवंत में।
शीत सिखलाता महत्ता
शांति की वह कौन है,
रजत है वाणी मुखर तो
स्वर्ण-सा मृदु मौन है।
हिमनदी सी श्वेत-वस्त्रा
धरा हरियाली पहन,
जब जगेगी खिलेंगे
उपवन औ' गायेगा गगन।
दुख के झरने बहे तो
खुशियां भी बरसेंगी यहां,
यही है ऋतुरंग जीवन
का समन्वय है जहां।
-डाॅ. सुधा कुमारी , नई दिल्ली
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