काव्य :
'हँसकर आया फाग'
आया फागुन द्वार पर, मन में उठी हिलोर।
आंखों में मस्ती चढ़ी,देख बसंती शोर।
देख बसंती शोर। फिजा में नवरस छाये।
नीले पीले लाल, गुलाबी रँग मुस्काये।
पहन नए परिधान, प्रकृति ने रूप सजाया।
ले होली का रास, यार फिर फागुन आया।
रंग बसंती देख कर, उपजा मन अनुराग।
करने को अठखेलियाँ, हँसकर आया फाग।
हँसकर आया फाग, प्रेम के करे इशारे।
गूंजे गुंजन गान, चमन में अलि के न्यारे।
महके टेशू फूल, जगी है रति किवदंती।
रहे मदन सब नाच, देख ये रंग बसंती।
होली आयी खेलने, यारों के सँग रंग।
अपनी प्रेम प्रतीति के, अजब दिखाने ढंग।
अजब दिखाने ढंग, गजब की खुशियाँ लायी।
रूठ गए जो यार, मनाने उनको आयी।
गाकर मस्ती गान, हँसाओ सब हमजोली।
ले आशीषें खूब, मनाओ सब मिल होली।
होली पर मत खेलिए,यार नशे का खेल।
प्रेम शान्ति सौहार्द से,करिए सबसे मेल।
करिए सबसे मेल,सादगी गुण उर भरकर।
रखिए शुद्ध विचार,मांस भक्षण को तजकर।
दीपक इस त्योहार, बनाओ रसमय बोली।
नाच उठे हर संग,देख कर हर्षित होली।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहांपुर उप्र
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