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लघुकथा : तुम पास हो तो प्यारे व आसान हैं दिन -डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल


 

लघुकथा : 

तुम पास हो तो प्यारे व आसान हैं दिन

     रात के जूठे बर्तन किचन के सिंक में मैं करीब आधे साफ कर चुका था कि पत्नी वंदना बोली, "लो जी, चाय बन गयी, चाय पी लो बाकी चाय पीने के बाद साफ कर लेना"। डाइनिंग टेबल पर बैठ कर हमने चाय पी। वंदना ने बाथरूम में जाते जाते कहा कि "मैं फ्रेश  हो लेती हूं फिर तुम फ्रेश हो लेना"।

मेरी सेवानिवृत्ति के बाद और कोरोना बीमारी के आने के बाद हमारी दिनचर्या में बर्तन,कपड़े,झाडू,पोछा और खाना बनाना शामिल हो गये हैं क्योंकि कामवाली छाया और खाना बनाने वाली सुनीता बाई दोनों का आना बंद है। मेरी क्लिनिक और पार्ट टाइम जॉब भी बंद है। इस तरह से  दैनिक कार्यों में ही मेरा पत्नी के साथ समय बीत रहा है।

"पापा,आप वाशिंग मशीन में कपड़े भिगो कर चला दीजिये, तब तक मैं नीचे के कमरों में झाड़ू और पोछा कर देता हूँ", कहते हुए टीनू ऊपर के कमरे से नीचे आया। वंदना पूजा करते हुए बोली, "आप सब्जी के लिए करेला और गोभी काट दीजिये"। जब तक मैं आलू गोभी काट रहा था, वंदना ने बताया कि " करेले की सब्जी आधी पक चुकी है, पोहा तैयार है, आप और टीनू फ्रेश हो जाइए फिर नाश्ता करते हैं।"

मैं देख रहा हूँ कि परिवार में सुस्त कही जाने वाली मेरी पत्नी इन दिनों बहुत चुस्त, फुर्तीली और प्रसन्न रहने लगी है। ये शायद इसलिए कि इन दिनों टीनू भी ज़्यादा जिम्मेदार दिख रहा है और मैं भी दिन भर वंदना के आस पास ही उपलब्ध रहता हूँ।

 नाश्ते के दौरान टीनू ने पूछा, "पापा ,आप तो डॉक्टर हैं, बताइये हम सब कोरोना से बचने के लिए प्रायः हाथ धो रहे हैं, मास्क लगा रहे हैं, और सोशल डिस्टेनसिंग का पालन कर रहे हैं, क्या आपको नहीं लगता कि यदि मन में डर होगा तो शरीर में ऐसे केमिकल्स और हॉर्मोन पैदा होंगे जो हमारी बीमारी से लड़ने की क्षमता को कमज़ोर करेंगे?" " हां,  यह  सही है।" मेरे जवाब पर इंजीनियर टीनू ने कहा कि "क्या शासन को देश में भयमुक्त वातावरण नहीं बनाना चाहिए?" मैं और वंदना उसके इस बात पर सहमत हुए। "पापा, लोग एक विशेष समुदाय के लोगों की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने डॉक्टरों पर निर्दयी हमले किये हैं और पूरा देश उनकी निंदा कर रहा है, क्या आपने कभी सोचा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?" टीनू बोला।

मेरे पूछने पर वो बोला, कि "एक तो वे इतने गरीब विकसित हुए और उन्हें मदरसों में जिन धर्मगुरुओं ने पढ़ाया, उन्हें विज्ञान की शिक्षा नहीं है, न ये विश्वास है कि कोरोना बीमारी सावधानी न रखने पर जानलेवा सिद्ध हो रही है। उनकी वैज्ञानिक शिक्षा का अभाव आम लोगों से पृथक मानसिकता वाला बना चुका है उन्हें। ऐसे में, मैं तो शिक्षा को भी दोषी ठहराता हूँ।" टीनू की यह बात सुनकर हम दोनों सहमति की नज़र से उसको देखते रहे।

"मम्मी, मान लो कि कल से शासन लॉकडाउन बंद करने की घोषणा कर दे और कामवाली बाई छाया और सुनीता  कल से आने लगें तो तुम्हे कैसा लगेगा? " मैं और टीनू वंदना के मौन चेहरे को देखने लगे जिसपर अचानक आयी खुशी का भाव भी था और फिर उदासी की रेखाएं। 

मेरे पूछने पर कि "तुम्हे खुश होना चाहिए ,तुम निराश क्यों दिख रही हो?" वंदना के मुख से जैसे मूक सी यह कविता निकल पड़ी,

"तुम पास हो तो प्यारे व आसान हैं दिन

वरना तो रोज़ ही बहुत आम हैं दिन"


- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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