काव्य :
हद
जिंदगी की अपनी हद होती है
हर रिश्ते की भी अपनी हद
एकतरफा न तो चलती जिंदगी
न चलते जज्बाती खेल
प्यार की एक हद होती है
और नफ़रत की भी
कोई फूल बिछाये कब तक
कोई कांटे चुभाये कब तक
इंतजार मे मीठे बोल बोले
और कड़वे सुने कब तक
बिन गुनाह की माफ़ी कब तक
प्यासा भटके तलाश मे
मृग तृष्णा की हद कब तक
प्रपंच प्रतिशोध से परे
निष्पाप निष्कलंक की तलाश
आखिर कब तक कब तक
अच्छाई की हद कब तक
बुराई की मार कब तक
विश्वास मे विष का वास
आखिर कब तक कब तक
ईमानदारी के बदले आरोप की
हद आखिर कब तक
निर्दोष फांसी लटके और
दोषी अपराध करे उसकी हद
आखिर कब तक कब तक
दुआ बदुआ की हद मगर
उस परिणाम का इंतजार
आखिर कब तक कब तक
बोये आम और मिले बबूल
किस्मत की धोखा धड़ी की हद
आखिर कब तक कब तक
आंसू बहते है ज़ब दर्द होता है
आंसू की भी हद होती है
दर्द की हद कहाँ तक कब तक
साँसो की भी हद होती है
सहती है एक हद तक और
थक जाये तो छोड़ देती है
साथ तन का एक हद तक
हद पार करने वालो की हद नही
मगर हद ज़ब सीमा तोड़ती है
तब सोचने समझने की हद
नही होती हद से ज्यादा चालाक
चाहे कोई क्यों न हो
हो ज्यादा सब खत्म हद की हद
- रीना वर्मा प्रेरणा , हजारीबाग